Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 45
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - जिज्ञासुर्देवता छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    5

    कः स्वि॑देका॒की च॑रति॒ कऽउ॑ स्विज्जायते॒ पुनः॑।किस्वि॑द्धि॒मस्य॑ भेष॒जं किम्वा॒वप॑नं म॒हत्॥४५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कः। स्वि॒त्। ए॒का॒की। च॒र॒ति॒। कः। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। स्वि॒त्। जा॒य॒ते॒। पुन॒रिति॒ पुनः॑। किम्। स्वि॒त्। हि॒मस्य॑। भे॒ष॒जम्। किम्। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। आ॒वप॑न॒मित्या॒ऽवप॑नम्। म॒हत्॥४५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कः स्विदेकाकी चरति कऽउ स्विज्जायते पुनः । किँ स्विद्धिमस्य भेषजङ्किम्वावपनम्महत् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    कः। स्वित्। एकाकी। चरति। कः। ऊँऽइत्यूँ। स्वित्। जायते। पुनरिति पुनः। किम्। स्वित्। हिमस्य। भेषजम्। किम्। ऊँऽइत्यूँ। आवपनमित्याऽवपनम्। महत्॥४५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 45
    Acknowledgment

    भावार्थ - कुणाचीही मदत न घेता कोण भ्रमण करतो? पुन्हा पुन्हा कोण उत्पन्न होतो? थंडी कशामुळे नष्ट होते? सर्वात मोठे उत्पत्ती स्थान कोणते? या सर्व प्रश्नांची उत्तरे पुढील मंत्रात आहेत, हे जाणावे.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top