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  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 27
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - यज्ञो देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    यद्ध॑वि॒ष्यमृतु॒शो दे॑व॒यानं॒ त्रिर्मानु॑षाः॒ पर्यश्वं॒ नय॑न्ति।अत्रा॑ पू॒ष्णः प्र॑थ॒मो भा॒गऽए॑ति य॒ज्ञं दे॒वेभ्यः॑ प्रतिवे॒दय॑न्न॒जः॥२७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्। ह॒वि॒ष्य᳖म्। ऋ॒तु॒श इत्यृ॑तु॒ऽशः। दे॒व॒यान॒मिति॑ देव॒ऽयान॑म्। त्रिः। मानु॑षाः। परि॑। अश्व॑म्। नय॑न्ति। अत्र॑। पू॒ष्णः। प्र॒थ॒मः। भा॒गः। ए॒ति॒। य॒ज्ञम्। दे॒वेभ्यः॑। प्र॒ति॒वे॒दय॒न्निति॑ प्रतिऽवे॒दय॑न्। अ॒जः ॥२७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यद्धविष्यमृतुशो देवयानन्त्रिर्मानुषाः पर्यश्वन्नयन्ति । अत्रा पूष्णः प्रथमो भाग एति यज्ञन्देवेभ्यः प्रतिवेदयन्नजः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। हविष्यम्। ऋतुश इत्यृतुऽशः। देवयानमिति देवऽयानम्। त्रिः। मानुषाः। परि। अश्वम्। नयन्ति। अत्र। पूष्णः। प्रथमः। भागः। एति। यज्ञम्। देवेभ्यः। प्रतिवेदयन्निति प्रतिऽवेदयन्। अजः॥२७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 27
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–(য়ৎ) যে (মানুষাঃ) মনুষ্য (ঋতুশঃ) ঋতু ঋতুর যোগ্য (হবিষ্যম্) হোমে আহুতি দিবার পদার্থসমূহের জন্য হিতকারী (দেবয়ানম্) দিব্য গুণযুক্ত বিদ্বান্দিগের প্রাপ্ত করিবার সাধক (অশ্বম্) শীঘ্রগামী প্রাণীকে (ত্রিঃ) তিনবার (পরি, নয়ন্তি) সকল দিকে লইয়া যায় অথবা যাহা (অত্র) এই সংসারে (পূষ্ণঃ) পুষ্টিসম্পর্কীয় (প্রথমঃ) প্রথম (ভাগঃ) সেবনীয় (দেবেভ্যঃ) বিদ্বান্দিগের জন্য (য়জ্ঞম্) সৎকারকে (প্রতিবেদয়ন্) জানাইয়া (অজঃ) বিশেষ পশু অজ (এতি) প্রাপ্ত হয় সে সর্বদা রক্ষা করিবার যোগ্য ॥ ২৭ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–যে সব মনুষ্য ঋতু ঋতুর প্রতি উহাদের গুণগুলির অনুকূল আহার-বিহার করে তথা অশ্ব ও অজাদি পশুদের সহিত সংগতি রাখিয়া কর্ম্ম করে তাহারা অত্যন্ত সুখ লাভ করে ॥ ২৭ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - য়দ্ধ॑বি॒ষ্য᳖মৃতু॒শো দে॑ব॒য়ানং॒ ত্রির্মানু॑ষাঃ॒ পর্য়॑শ্বং॒ নয়॑ন্তি ।
    অত্রা॑ পূ॒ষ্ণঃ প্র॑থ॒মো ভা॒গऽএ॑তি য়॒জ্ঞং দে॒বেভ্যঃ॑ প্রতিবে॒দয়॑ন্ন॒জঃ ॥ ২৭ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - য়দ্ধবিষ্যমিত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । য়জ্ঞো দেবতা । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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