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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 2

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 2/ मन्त्र 3
    सूक्त - सिन्धुद्वीपम् देवता - आपः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - आपः सूक्त

    अ॑न॒भ्रयः॒ खन॑माना॒ विप्रा॑ गम्भी॒रे अ॒पसः॑। भि॒षग्भ्यो॑ भि॒षक्त॑रा॒ आपो॒ अच्छा॑ वदामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒न॒भ्रयः॑। खन॑मानाः। विप्राः॑। ग॒म्भी॒रे। अ॒पसः॑। भि॒षक्ऽभ्यः॑। भि॒षक्ऽत॑राः। आपः॑। अच्छ॑। व॒दा॒म॒सि॒ ॥२.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनभ्रयः खनमाना विप्रा गम्भीरे अपसः। भिषग्भ्यो भिषक्तरा आपो अच्छा वदामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनभ्रयः। खनमानाः। विप्राः। गम्भीरे। अपसः। भिषक्ऽभ्यः। भिषक्ऽतराः। आपः। अच्छ। वदामसि ॥२.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 2; मन्त्र » 3

    टिप्पणीः - इस मन्त्र का मिलान करो-अ० ३।७।५। तथा-अ० ६।९१।३ ॥ ३−(अनभ्रयः) अदिशदिभूशुभिभ्यः क्रिन्। उ० ४।६५। नञ् णभ हिंसायाम्−क्रिन्। अहिंसकाः (खनमानाः) खननशीला जिज्ञासवः (विप्राः) मेधाविनः (गम्भीरे) अ० १८।४।६२। गहने। कठिनस्थाने (अपसः) आपः कर्माख्यायां ह्रस्वो नुट् च वा। उ० ४।२०८। आप्नोतेः-असुन् ह्रस्वश्च। व्यापनशीलाः (भिषग्भ्यः) वैद्येभ्यः (भिषक्तराः) अधिकचिकित्सकाः (आपः) सर्वविद्याव्यापिनो विपश्चितः-दयानन्दभाष्ये, यजु० ६।१७। (अच्छ) आभिमुख्येन। सुष्ठु (वदामसि) वदामः। कथयामः ॥

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