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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 71 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 71/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - अश्विनौ छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अप॒ स्वसु॑रु॒षसो॒ नग्जि॑हीते रि॒णक्ति॑ कृ॒ष्णीर॑रु॒षाय॒ पन्था॑म् । अश्वा॑मघा॒ गोम॑घा वां हुवेम॒ दिवा॒ नक्तं॒ शरु॑म॒स्मद्यु॑योतम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अप॑ । स्वसुः॑ । उ॒षसः॑ । नक् । जि॒ही॒ते॒ । रि॒णक्ति॑ । कृ॒ष्णीः । अ॒रु॒षाय॑ । पन्था॑म् । अश्व॑ऽमघा । गोऽम॑घा । वा॒म् । हु॒वे॒म॒ । दिवा॑ । नक्त॑म् । शरु॑म् । अ॒स्मत् । यु॒यो॒त॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अप स्वसुरुषसो नग्जिहीते रिणक्ति कृष्णीररुषाय पन्थाम् । अश्वामघा गोमघा वां हुवेम दिवा नक्तं शरुमस्मद्युयोतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अप । स्वसुः । उषसः । नक् । जिहीते । रिणक्ति । कृष्णीः । अरुषाय । पन्थाम् । अश्वऽमघा । गोऽमघा । वाम् । हुवेम । दिवा । नक्तम् । शरुम् । अस्मत् । युयोतम् ॥ ७.७१.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 71; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (अश्वामघा गोमघा) हे अश्व तथा गोरूप धनसम्पन्न (वां) अध्यापक तथा उपदेशको ! हम आपसे (हुवेम) प्रार्थना करते हैं कि आप (दिवा नक्तं) दिन-रात्रि (अस्मत्) हमसे (शरुं) हिंसारूप पाप को (युयोतं) दूर करें (अप) और जिस समय (कृष्णीः) रात्रि (स्वसुः उषसः) अपनी उषारूप पुत्री का (नक् अप जिहीते) त्याग करके (अरुषाय पन्थां रिणक्ति) सूर्य्य के लिए मार्ग देती है, उस समय उपदेश करें ॥१॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे प्रजाजनों ! तुम उन ऐश्वर्य्यसम्पन्न अध्यापक तथा उपदेशकों से यह प्रार्थना करो कि आप अपने सदुपदेशों द्वारा हमको पवित्र करते हुए हिंसारूप पापपङ्क को हमसे सदैव के लिए छुड़ाकर शुद्ध करें और हे विद्वानों ! आप हम लोगों को उषःकाल=ब्राह्ममुहूर्त्त में उपदेश करें, जिस समय प्रकृति का सम्पूर्ण सौन्दर्य्य अपनी नूतन अवस्था को धारण करता और जिस समय पक्षीगण मधुरस्वर से अपने-अपने भावों द्वारा जगन्नियन्ता जगदीश के भावों को प्रकाशित करते हैं ॥ तात्पर्य्य यह है कि उत्तम शिक्षा ग्रहण करने के लिए ब्राह्म मुहूर्त्त ही अत्युत्तम काल है, क्योंकि रात्रि के विश्राम के अनन्तर उस समय बुद्धि निर्मल होने के कारण सूक्ष्म विषय को भी ग्रहण करने में समर्थ होती है, इसीलिए वेद भगवान् ने आज्ञा दी है कि तुम ब्राह्म मुहूर्त्त में उपदेश श्रवण करो ॥१॥

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