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  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 41
    ऋषिः - आसुरिर्ऋषिः देवता - वास्तुरग्निः छन्दः - आर्षी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    गृहा॒ मा बि॑भीत॒ मा वे॑पध्व॒मूर्जं॒ बिभ्र॑त॒ऽएम॑सि। ऊर्जं॒ बिभ्र॑द्वः सु॒मनाः॑ सुमे॒धा गृ॒हानैमि॒ मन॑सा॒ मोद॑मानः॥४१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गृहाः॑। मा। बि॒भी॒त॒। मा। वे॒प॒ध्व॒म्। ऊर्ज॑म्। बिभ्र॑तः। आ। इ॒म॒सि॒। ऊर्ज॑म्। बिभ्र॑त्। वः॒। सु॒मना॒ इति॑ सु॒ऽमनाः॑। सु॒मे॒धा इति॑ सुऽमे॒धाः। गृ॒हान्। ए॒मि॒। मन॑सा। मोद॑मानः ॥४१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गृहा मा बिभीत मा वेपध्वमूर्जम्बिभ्रत एमसि । ऊर्जम्बिभ्रद्वः सुमनाः सुमेधा गृहाऐमि मनसा मोदमानः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    गृहाः। मा। बिभीत। मा। वेपध्वम्। ऊर्जम्। बिभ्रतः। आ। इमसि। ऊर्जम्। बिभ्रत्। वः। सुमना इति सुऽमनाः। सुमेधा इति सुऽमेधाः। गृहान्। एमि। मनसा। मोदमानाः॥४१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 41
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    पदार्थ -

    १. गत मन्त्रों की भावना के अनुसार ‘द्युम्न और सह’ = ज्योति और शक्ति का सम्पादन करके अपने जीवन के आकाश में बृहस्पति [ ज्ञान ] व शुक्र [ वीर्य ] नक्षत्रों का उदय करके जब यह ‘आसुरि’ प्राणशक्ति को सम्पन्न करनेवाला गृहस्थ बनता है तब कहता है कि ( गृहाः ) = हे घरो! ( मा बिभीत ) = भय को छोड़ दो। ( मा वेपध्वम् ) = कम्पित मत होओ। दूसरे शब्दों में घरों में साँप आदि का व रोगकृमियों का भय न हो, और साथ ही ये घर सील की अधिकता से रोगादि के कारण शरीर में कम्प पैदा करनेवाले न हों। ( ऊर्जं बिभ्रतः ) = अन्न को धारण करते हुए तुम्हें ( आ-इमसि ) = अन्न के साथ ही हम प्राप्त होते हैं, अर्थात् घर अन्न से पूरिपूर्ण हों।

    २. इस प्रकार मन्त्र के पूर्वार्ध में घर की इन विशेषताओं का उल्लेख है कि [ क ] उनमें साँप व रोगादि का भय न हो। [ ख ] वहाँ सील के कारण ज्वरादि से कम्प न हो, [ ग ] वे अन्न से परिपूर्ण हों। अब मन्त्र के उत्तरार्ध में घर में रहनेवालों की विशेषताओं का प्रतिपादन करते हैं कि [ क ] ( ऊर्जम् ) = बल और प्राणशक्ति को ( बिभ्रत् ) = धारण करता हुआ मैं [ ख ] ( सुमनाः ) = उत्तम मनवाला—जिस मन के अन्दर किसी प्रकार की अशुभ इच्छा उत्पन्न नहीं होती उस मन को धारण करता हुआ, [ ग ] ( सुमेधाः ) = उत्तम मेधावाला [ घ ] ( मनसा मोदमानः ) = सदा प्रसन्न मनवाला ( वः गृहान् ) = तुम घरों को ( एमि ) = प्राप्त होता हूँ।

    भावार्थ -

    भावार्थ — हमारे घर रोगादि के भय से रहित, ज्वरजनित कम्प से शून्य व अन्न-रस से पूरिपूर्ण हों। इन घरों में रहनेवाले शक्तिशाली, उत्तम मनवाले, शोभन-प्रज्ञ व प्रसन्न मनोवृत्तिवाले हों।

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