ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 51/ मन्त्र 2
ऋषिः - स्वस्त्यात्रेयः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - धैवतः
ऋत॑धीतय॒ आ ग॑त॒ सत्य॑धर्माणो अध्व॒रम्। अ॒ग्नेः पि॑बत जि॒ह्वया॑ ॥२॥
स्वर सहित पद पाठऋत॑ऽधीतयः । आ । ग॒त॒ । सत्य॑ऽधर्माणः । अ॒ध्व॒रम् । अ॒ग्नेः । पि॒ब॒त॒ । जि॒ह्वया॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋतधीतय आ गत सत्यधर्माणो अध्वरम्। अग्नेः पिबत जिह्वया ॥२॥
स्वर रहित पद पाठऋतऽधीतयः। आ। गत। सत्यऽधर्माणः। अध्वरम्। अग्नेः। पिबत। जिह्वया ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 51; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 5; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 5; मन्त्र » 2
विषय - धर्मात्माओं को प्रजापालन में योग देने का उपदेश ।
भावार्थ -
भा०-हे ( सत्यधर्माण: ) सत्य न्याय को अपना धर्म जानकर उसको धारण करने और पालन करने वाले धर्मात्मा जनो ! आप लोग ( ऋत-धीतये ) ऐश्वर्य के धारण, सत्य ज्ञान और न्याय के पालन के लिये (अध्वरम् ) हिंसा और विनाश से रहित, प्रजा पालन के कार्य में ( आ गत ) आओ और योग दो। और ( अग्नेः जिह्वया ) अग्रणी, तेजस्वी नायक की वाणी से ( पिबत ) राष्ट्र का उपयोग वा पालन करो ।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:-१ गायत्री । २, ३, ४ निचृद् गायत्री । ५, ८, ९, १० निचृदुष्णिक् । ६ उष्णिक् । ७ विराडुष्णिक् ११ निचृत्त्रिष्टुप । १२ त्रिष्टुप । १३ पंक्तिः । १४, १५ अनुष्टुप् ।।
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