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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 1/ मन्त्र 7
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    उप॑ त्वाग्ने दि॒वेदि॑वे॒ दोषा॑वस्तर्धि॒या व॒यम्। नमो॒ भर॑न्त॒ एम॑सि॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑ । त्वा॒ । अ॒ग्ने॒ । दि॒वेऽदि॑वे । दोषा॑ऽवस्तः । धि॒या । व॒यम् । नमः॑ । भर॑न्तः । आ । इ॒म॒सि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उप त्वाग्ने दिवेदिवे दोषावस्तर्धिया वयम्। नमो भरन्त एमसि॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उप। त्वा। अग्ने। दिवेऽदिवे। दोषाऽवस्तः। धिया। वयम्। नमः। भरन्तः। आ। इमसि॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 7
    अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 2; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    तद् ब्रह्म कथमुपास्य प्राप्तव्यमित्युपदिश्यते।

    अन्वयः

    हे अग्ने ! वयं धिया दिवेदिवे दोषावस्तस्त्वा त्वां भरन्तो नमस्कुर्वन्तश्चोपैमसि प्राप्नुमः॥७॥

    पदार्थः

    (उप) सामीप्ये (त्वा) त्वाम् (अग्ने) सर्वोपास्येश्वर ! (दिवेदिवे) विज्ञानस्य प्रकाशाय प्रकाशाय (दोषावस्तः) अहर्निशम्। दोषेति रात्रिनामसु पठितम्। (निघं०१.७) रात्रेः प्रसङ्गाद्वस्तर् इति दिननामात्र ग्राह्यम्। (धिया) प्रज्ञया कर्मणा वा (वयम्) उपासकाः (नमः) नम्रीभावे (भरन्तः) धारयन्तः (आ) समन्तात् (इमसि) प्राप्नुमः॥७॥

    भावार्थः

    हे सर्वद्रष्टः सर्वव्यापिन्नुपासनार्ह ! वयं सर्वकर्मानुष्ठानेषु प्रतिक्षणं त्वां यतो नैव विस्मरामः, तस्मादस्माकमधर्ममनुष्ठातुमिच्छा कदाचिन्नैव भवति। कुतः? सर्वज्ञः सर्वसाक्षी भवान्सर्वाण्यस्मत्कार्य्याणि सर्वथा पश्यतीति ज्ञानात्॥७॥

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    हिन्दी (6)

    विषय

    उक्त परमेश्वर कैसे उपासना करके प्राप्त होने के योग्य है, इसका विधान अगले मन्त्र में किया है॥

    पदार्थ

    (अग्ने) हे सब के उपासना करने योग्य परमेश्वर ! (वयम्) हम लोग (धिया) अपनी बुद्धि और कर्मों से (दिवेदिवे) अनेक प्रकार के विज्ञान होने के लिये (दोषावस्तः) रात्रिदिन में निरन्तर (त्वा) आपकी (भरन्तः) उपासना को धारण और (नमः) नमस्कार आदि करते हुए (उपैमसि) आपके शरण को प्राप्त होते हैं॥७॥

    भावार्थ

    हे सब को देखने और सब में व्याप्त होनेवाले उपासना के योग्य परमेश्वर ! हम लोग सब कामों के करने में एक क्षण भी आपको नहीं भूलते, इसी से हम लोगों को अधर्म करने में कभी इच्छा भी नहीं होती, क्योंकि जो सर्वज्ञ सब का साक्षी परमेश्वर है, वह हमारे सब कामों को देखता है, इस निश्चय से॥७॥

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    विषय

    प्रभु के समीप

    पदार्थ

    गतमन्त्र में वर्णित समर्पण को ही स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि - हे अग्ने ) - हमें सब आवश्यक पदार्थों को प्राप्त करानेवाले प्रभो! वयम् ) - हम दिवेदिवे ) - प्रतिदिन दोषावस्तः ) - रात्रि और दिन, अर्थात् प्रातः सन्धिवेला और सायं सन्धिवेला में धिया ) - बुद्धिपूर्वक कर्मों के द्वारा नमः भरन्तः ) - पूजा को प्राप्त करते हुए [स्वकर्मणा तमभ्यर्च - गीता २८४६] त्वा, उप ) - आपके समीप एमसि ) - [ इमसि] सर्वथा प्राप्त होते हैं

    प्रतिदिन प्रातः - सायं प्रभु - चरणों में उपस्थित होना मानव के लिए इसलिए आवश्यक है कि इससे [] पवित्रता की भावना बनी रहती है [] शक्ति का सञ्चार होता है [] जीवन का उद्देश्य धन ही नहीं बनता और परिणामतः पारस्परिक प्रेम विनष्ट नहीं होता   वस्तुतः जैसे शरीर के लिए भोजन है, जैसे मस्तिष्क के लिए स्वाध्याय है, उसी प्रकार हृदय के लिए यह "दैनिक ध्यान' है जैसे भोजन के बिना शरीर निर्बल होकर रोगाक्रान्त हो जाता है, स्वाध्याय के बिना मस्तिष्क दुर्बल होकर ठीक विचार नहीं कर पाता, उसी प्रकार उपासना के बिना हृदय मलिन होकर वासनाओं से अभिभूत हो जाता है भोजन शरीर को सबल बनाता है, स्वाध्याय मस्तिष्क को तथा उपासना हदय को बलवान् बनाने के लिए आवश्यक है

    भावार्थ

    हम प्रतिदिन प्रातः - सायं प्रभु का उपासन करनेवाले बनें दिनभर प्रज्ञापूर्वक कार्यों को करते हुए हम उन्हें प्रभु - चरणों में अर्पित करें प्रातः शक्ति की याचना करें कि हम प्रज्ञापूर्वक कर्मों को करनेवाले बन पाएँ

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    पदार्थ

    पदार्थ = ( अग्ने ) हे परमेश्वर ! ( दिवे दिवे ) = सब दिनों में ( धिया ) = अपनी बुद्धि और कर्मों से ( वयम् ) = हम उपासक जन ( नम: ) = नम्रतापूर्वक आपको नमस्कार आदि ( भरन्तः ) = धारण करते हुए ( त्वा ) = आपके ( उप ) = समीप ( आ-इमसि ) = प्राप्त होते हैं ( दोषा ) = रात्रि में और ( वस्त: ) = दिन के समय में ।

     

    भावार्थ

    भावार्थ- हे सबके उपासनीय प्रभो ! हम सब 'ओ३म्' नाम जो आपका मुख्य नाम है इससे और गायत्री आदि वेदों के पवित्र मन्त्रों से आपकी स्तुति, प्रार्थना, उपासना सदा करें। यदि आप सदा न हो सके तो सायंकाल और प्रातः काल में आप जगत् पिता के गुण संकीर्तन रूपी स्तुति, वाञ्छित मोक्षादि वर की याचनारूप प्रार्थना, और आपके ध्यान रूप में अवश्य मन को लगायें जिससे हम सबका कल्याण हो ।

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    विषय

    उक्त परमेश्वर कैसे उपासना करके प्राप्त होने के योग्य है, इसका विधान इस मन्त्र में किया है॥

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    हे अग्ने ! वयं धिया दिवेदिवे दोषावस्तः  त्वां भरन्तः नमःकुर्वन्तः च उपैमसि प्राप्नुमः॥७॥

    पदार्थ

    (हे)=हे (अग्ने) सर्वोपास्येश्वर=सब के उपासना करने योग्य परमेश्वर ! (वयम्) उपासकाः= हम उपासक लोग, (धिया) प्रज्ञया कर्मणा वा= अपनी बुद्धि और कर्मों से, (दिवेदिवे) विज्ञानस्य प्रकाशाय प्रकाशाय= अनेक प्रकार के विज्ञान के प्रकाश को प्रकाशित करने के लिये, (दोषावस्तः) अहर्निशम्= रात्रिदिन में निरन्तर, (त्वा) त्वाम्= आपकी, (भरन्तः) धारयन्तः=उपासना को धारण, (नमः) नम्रीभावे=नमस्कार आदि, (कुर्वन्तः)= करते हुए, (च)=और, (उप) सामीप्ये=समीप से, (आ) समन्तात्=अच्छी तरह से, (इमसि) प्राप्नुमः= आपके शरण को प्राप्त होते हैं॥७॥ 

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    हे सब को देखने और सब में व्याप्त होनेवाले उपासना के योग्य परमेश्वर ! हम लोग सब कामों के करने में एक क्षण भी आपको नहीं भूलते, इसी से हम लोगों को अधर्म करने में कभी इच्छा भी नहीं होती, क्योंकि जो सर्वज्ञ सब का साक्षी परमेश्वर है, वह हमारे सब कामों को इस निश्चय से देखता है ॥७॥

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    (हे) हे (अग्ने) सब के उपासना करने योग्य परमेश्वर! (वयम्) हम उपासक लोग (धिया) अपनी बुद्धि और कर्मों से (दिवेदिवे) अनेक प्रकार के विज्ञान के प्रकाश को प्रकाशित करने के लिये, (दोषावस्तः) रात्रिदिन में निरन्तर (त्वा) आपकी, (भरन्तः) उपासना को धारण, (नमः) नमस्कार आदि (कुर्वन्तः) करते हुए (च) और (उप) समीप से (आ) अच्छी तरह से (इमसि) आपके शरण को प्राप्त होते हैं॥७॥ 

    संस्कृत भाग

    पदार्थः(महर्षिकृतः)- (उप) सामीप्ये (त्वा) त्वाम् (अग्ने) सर्वोपास्येश्वर ! (दिवेदिवे) विज्ञानस्य प्रकाशाय प्रकाशाय (दोषावस्तः) अहर्निशम्। दोषेति रात्रिनामसु पठितम्। (निघं०१.७) रात्रेः प्रसङ्गाद्वस्तर् इति दिननामात्र ग्राह्यम्। (धिया) प्रज्ञया कर्मणा वा (वयम्) उपासकाः (नमः) नम्रीभावे (भरन्तः) धारयन्तः (आ) समन्तात् (इमसि) प्राप्नुमः॥७॥

    विषयः- तद् ब्रह्म कथमुपास्य प्राप्तव्यमित्युपदिश्यते।

    अन्वयः- हे अग्ने! वयं धिया दिवेदिवे दोषावस्तस्त्वा त्वां भरन्तो नमस्कुर्वन्तश्चोपैमसि प्राप्नुमः॥७॥

    भावार्थः(महर्षिकृतः)- हे सर्वद्रष्टः सर्वव्यापिन्नुपासनार्ह ! वयं सर्वकर्मानुष्ठानेषु प्रतिक्षणं त्वां यतो नैव विस्मरामः, तस्मादस्माकमधर्ममनुष्ठातुमिच्छा कदाचिन्नैव भवति। कुतः? सर्वज्ञः सर्वसाक्षी भवान्सर्वाण्यस्मत्कार्य्याणि सर्वथा पश्यतीति ज्ञानात्॥७॥

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    Bhajan

    आज का वैदिक भजन 🙏 1119  
    ओ३म् उप॑ त्वाग्ने दि॒वेदि॑वे॒ दोषा॑वस्तर्धि॒या व॒यम् ।
    नमो॒ भर॑न्त॒ एम॑सि ॥
    ऋग्वेद 1/1/7
    सामवेद 14 

    भगवान् अभिराम 
    निष्काम दयावान्  
    तू है सर्वशक्तिमान् 
    भगवान् अभिराम 
    निष्काम दयावान्  
     
    तू दु:ख-त्राता 
    तू सुखदाता 
    क्रतु-कर्मों का तू फलदाता 
    ऋत-सत्य तेरे विधान 
    भगवान् अभिराम 
    निष्काम दयावान्  

    तू है अग्रगामी 
    हम अनुगामी 
    तेरे गुण गाते मिलके सब प्राणी 
    ज्ञानी पाते मोक्षधाम
    भगवान् अभिराम 
    निष्काम दयावान्  

    तू सर्वेश्वर 
    तू जगदीश्वर 
    ज्ञान-विज्ञान तेरे ही भीतर 
    कण-कण में विद्यमान्
    भगवान् अभिराम 
    निष्काम दयावान्  

    सद्गुण संवारे, 
    दुर्गुण बिगाड़े 
    भक्ति में प्रभु बनते हमारे (सहारे)
    भजें ओ३म् सुबह-शाम
    भगवान् अभिराम 
    निष्काम दयावान्  

    सद्बुद्धि का, तू ही प्रदाता 
    तम को हटाता - ज्योति जगाता 
    शत-शत तुझे प्रणाम
    भगवान् अभिराम 
    निष्काम दयावान्  
    तू है सर्वशक्तिमान् 
    भगवान् अभिराम 
    निष्काम दयावान्  

    रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
    रचना दिनाँक :-  
    राग :- पहाड़ी
    गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर, ताल अद्धा 16 मात्रा
                          
    शीर्षक :- बुद्धि और कर्म द्वारा नमस्कार की भेंट भजन ७००वां
    *तर्ज :- *
    721-00122

    अभिराम = आनंद देने वाला 
    निष्काम = स्वार्थ बिना कर्म 
    क्रतु = शुभ कार्य 
    अग्रगामी = आगे चलने वाला 
    अनुगामी = पीछे चलने वाला

    Vyakhya


    प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇


    बुद्धि और कर्म द्वारा नमस्कार की भेंट

    परमपिता परमात्मा आप अग्नि स्वरूप हो
    आप की असीम दया है आप प्रतिदिन निष्काम कर्म करते हुए, अभिराम गुण,  जो आनंददायक गुण है, हमें सुख और आनन्द प्रदान कर रहे हो। जब से हम उत्पन्न हुए हैं दिन के पश्चात रात और रात के पश्चात दिन आता जाता है। इस तरह यह अनवरत अविश्रांत कालचक्र चल रहा है। इस कालचक्र में हम कहां जा रहे हैं? हे मेरे प्रभु अग्निदेव! तुमने तो यह अहोरात्र इसलिए रचे हैं कि प्रत्येक अहोरात्र के साथ-साथ अपने आत्मिक उन्नति का दायां और बायां पैर आगे बढ़ाते हुए हम प्रतिदिन तुम्हारे निकट निकट पहुंचते जाएं। आप अग्रगामी है इसलिए हम अनुगामी बनकर आपके पीछे-पीछे आपके गुणों का अवलोकन करके उस मार्ग पर चलें। यह खिलते हुए फूल महकती हुई कलियां, चहकते हुए पक्षी सब आपके ही तो गीत गा रहे हैं। ध्यानी ऋषियों के मोक्ष-दाता भी तो आप ही हैं।इसलिए प्रभु हमें भी ऐसी शक्ति दो कि हम भी आपके बनाए और बताए हुए नियमों पर चलकर स्वार्थ त्यागकर प्रात: काल और सायं काल के समय अपनी बुद्धि द्वारा तुम्हारे आगे झुकते हुए, नमन करते हुए तुम्हारा सानिध्य प्राप्त करें,
     इसलिए हे सर्वेश्वर! हे जगदीश्वर! हे अग्नि स्वरूप परम देव! हम आज से निश्चय करते हैं कि हम प्रत्येक प्रात:काल और सायंकाल अपनी बुद्धि तथा कर्मों द्वारा तुम्हें नमस्कार की भेंट चढ़ाते हुए आत्मसमर्पण करते हुए ही अब जिएंगे। और इस तरह जहां प्रत्येक दिन के श्रमकाल में हमरा दायां पैर तुम्हारी तरफ बढ़ेगा, वहां प्रत्येक रात्रि काल में हमारी उन्नति का बायां पैर उस उन्नति को स्थिर करता जाएगा। तुम्हारे दिए हुए ज्ञान और विज्ञान को बुद्धि पूर्वक समझते हुए, और उस पर चलते हुए स्वार्थ त्याग कर पवित्र अंतः करण से तुम्हारी वंदना करते हुए तुम्हारी ओर आने का प्रयत्न करते हैं। दुर्गुणों को, जो हमें अवनति की ओर ले जाते हैं, उन्हें त्याग कर हम सद्गुणों से अपने जीवन का उत्थान करेंगे।
    आज से प्रतिदिन हम तुम्हारी वंदना करते हुए तुम्हारी ओर आने लगे हैं, हे प्रभु! प्रतिदिन तुम्हारे समीप आते जा रहे हैं। स्वार्थ त्यागते हुए आत्म समर्पण की भावना से नमस्कार की भेंट चढ़ाते हुए, अज्ञानरूपी तम को मिटाते हुए, तुम्हारी अग्निस्वरूप ज्योति का अनुसरण करते हुए, तुम्हारा आशीष पाने की अभिलाषा रखते हैं। तुम्हारी इस अनन्त कृपा के लिए हम तुम्हें शत् शत् प्रणाम करते हैं।

    🕉🧘‍♂️ईश भक्ति भजन
    भगवान् ग्रुप द्वारा🎧🙏
    🕉🧘‍♂️वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं❗🙏

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    विषय

    परमेश्वर, ज्ञानी, विद्वान पुरुष का वर्णन ।

    भावार्थ

    हे (अग्ने ) ज्ञानप्रकाशक ! परमेश्वर ! और विद्वन् ! ( दिवे दिवे ) प्रतिदिन, अथवा प्रत्येक प्रकार के ज्ञान प्रकाश के प्राप्त करने के लिये और (दोषा-वस्तः) दिन रात, (वयम् ) हम लोग ( घिया ) अपनी बुद्धि और क्रिया से भी ( नमः भरन्तः ) नम्र भाव, आदरभाव धारण करते हुए तुझे ( आ इमसि ) प्राप्त होते हैं। विद्वानों के पास नित्य हम ज्ञान प्राप्त करने के लिये जावें और उनका ( नमः ) अन्नादि से सत्कार करें ।

    टिप्पणी

    नमः इत्यन्न नाम । निघ० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मधुच्छन्दा वैश्वामित्र ऋषिः। अग्निर्देवता। गायत्र्यः। नवर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे सर्व दृष्टा व सर्वात व्याप्त असणाऱ्या, उपासना करण्यायोग्य परमेश्वरा! आम्ही सर्व काम करताना एक क्षणही तुला विसरत नाही. यामुळे आम्हाला अधर्म करण्याची कधी इच्छाही होत नाही. या दृढ निश्चयाने की जो सर्वज्ञ, सर्वांचा साक्षी परमेश्वर आमच्या सर्व कामांना पाहतो. ॥ ७ ॥

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    इंग्लिश (5)

    Meaning

    Agni, lord omniscient, day by day, night and day, with all our heart and soul we come to you bearing gifts of homage in faith and humility.

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    Subject

    Worship of the One God

    Anvaya

    हे अग्ने वयम् धिया दिवेदिवे दोषावस्तस्त्वा भरन्तो नमः कुर्वन्तश्चोपैमसि ॥

    Word Meaning

    उप एमसि (आ ✓ इण् गतौ = we approach with humility. दिवेदिवे ( ✓ दिवु क्रीड़ाविजि गीषाव्यवहारधुतिस्तुतिमद मोदस्वप्न कान्तिगतिषु) = for the attainment of the light of true knowledge (and nothing else); day by day (Nig. I, 9). दोषावस्तः (दोष = night Nig. I, 7 वस्तः = day Nig. I, 9) = day and night; morning and evening. धिया (✓ध्यै चिंतायाम् +विप् P. III, 2, 178 and Vārtika ध्यायतेः संप्रसारणं च ) = by means of our intellect and mind; by understanding and deeds; by thought word and deed. नमः = adoring Thee. भरन्तः (✓ डभृञ् धारणपोषणयोः + शतृ P. III, 2 124) =in a spirit of fervent adoration.

    Translation

    Oh Lord God ! in a spirit of humility and fervent devotion we approach Thy Divine Majesty morning and evening with our thoughts, (words) and actions befitting to that end that Thou wilt bless us with the light of true spiritual knowledge.

    Purport

    God sees all ; He is Omnipresent and deserving of our adoration. Hence it is but just that we should not forget Him while engaged in any of the tasks of our daily life. It is only in this way that we can secure His grace which will save us from falling away any time from the truth. The reason is, being All-knowing_and All-seeing, He is in every way acquainted with all our deeds and plans. This knowledge will help us a good deal in time of temptation.

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    Translation

    Day and night, we approach you, Lord, with reverential homage through sublime thoughts and noble deeds.

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    Subject of the mantra

    How is aforesaid God, obtainable by worship, it’s provision has been made in this mantra.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    (he)=O! (agne)=God, praiseworthy of all, (vayam)=we worshipers, (dhiyā)=by our wisdom and deeds, (divedive)=to elucidtate by the light of specific knowledge of many type, (doṣāvastaḥ) =continuously day and night, (tvā)=your, (bharantaḥ)=taking up worship, (namaḥ)=salutation, (kurvantaḥ)=doing, (ca)=and, (upa)=from proximity, (ā)=well, (imasi)=get obtained to your shelter.

    English Translation (K.K.V.)

    O God worthy of worship by all! We worshipers to propagate the light of various types of special knowledge with our intelligence and deeds, worshiping you continuously in the night and day, saluting You etc. and get to your refuge closely.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    O God worthy of all-viewing and all-pervading worship! We do not forget You even for a moment in doing all the works, that is why we are never inclined to commit unrighteousness, because the Omniscient God who is the witness of all, sees all our actions, with this certainty.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How is that God to be attained through communion is taught in the seventh Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O God; in a spirit of humility and fervent sincere devotion making obeisance to Thee, we approach Thee day and night with our intellects and good actions, so that Thou wilt bless us with the light of true knowledge.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O Omnipresent and Omniscient God who seest all, because we never forget Thee while engaged in the performance of all actions, we are never inclined to do unrighteous deeds. The reason is, the knowledge that Thou art Omniscient and therefore witness of all our actions, saves us from all evils and temptations.

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    উপ ত্বাগ্নে দিবে দিবে দোষাবস্তর্ধিয়া বয়ম্।

    নমো ভরন্ত এমসি।।৭।।

    (ঋগ্বেদ ১।১।৭)

     

    পদার্থঃ (অগ্নে) হে পরমেশ্বর! (দিবে দিবে) প্রত্যেক দিনে (ধিয়া) নিজ বুদ্ধি এবং কর্ম দ্বারা (বয়ম্) আমরা উপাসকগণ (নমঃ) নম্রতা পূর্বক নমস্কার আদি (ভরন্তঃ) আচরণ করে (ত্বা) তোমার (উপ) সামীপ্য (আ-ইমসি) প্রাপ্ত হই (দোষা) সন্ধ্যায় এবং (বস্তঃ) দিনের প্রারম্ভেও।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ হে সকলের উপাস্য পরমেশ্বর! আমরা সবাই "ও৩ম্" নাম যা তোমার মুখ্য নাম, তার দ্বারা এবং গায়ত্রী আদি বেদের পবিত্র মন্ত্র দ্বারা সদা তোমার স্তুতি, প্রার্থনা, উপাসনা করি। হে জগৎ পিতা! আমরা সায়ংকাল এবং প্রাতঃকালে তোমার গুণগানরূপী স্তুতি প্রার্থনা এবং তোমার ধ্যানরূপ উপাসনায় অবশ্যই মনকে নিযুক্ত করি যাতে আমাদের সকলের কল্যাণ হয়।।৭।।

     

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