ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 120/ मन्त्र 1
ऋषिः - उशिक्पुत्रः कक्षीवान्
देवता - अश्विनौ
छन्दः - पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
का रा॑ध॒द्धोत्रा॑श्विना वां॒ को वां॒ जोष॑ उ॒भयो॑:। क॒था वि॑धा॒त्यप्र॑चेताः ॥
स्वर सहित पद पाठका । रा॒ध॒त् । होत्रा॑ । अ॒श्वि॒ना॒ । वा॒म् । कः । वा॒म् । जोषे॑ । उ॒भयोः॑ । क॒था । वि॒धा॒ति॒ । अप्र॑ऽचेताः ॥
स्वर रहित मन्त्र
का राधद्धोत्राश्विना वां को वां जोष उभयो:। कथा विधात्यप्रचेताः ॥
स्वर रहित पद पाठका। राधत्। होत्रा। अश्विना। वाम्। कः। वाम्। जोषे। उभयोः। कथा। विधाति। अप्रऽचेताः ॥ १.१२०.१
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 120; मन्त्र » 1
अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 22; मन्त्र » 1
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अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 22; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
तत्रादौ प्रश्नोत्तरविधिमाह ।
अन्वयः
हे अश्विना वामुभयोः का होत्रा सेना विजयं राधत्। वां जोषे कथा कोऽप्रचेताः पराजयं विधाति ॥ १ ॥
पदार्थः
(का) सेना (राधत्) राध्नुयात् (होत्रा) शत्रुबलमादातुं विजयं च दातुं योग्या (अश्विना) गृहाश्रमधर्मव्यापिनौ स्त्रीपुरुषौ (वाम्) युवयोः (कः) शत्रुः (वाम्) युवयोः (जोषे) प्रीतिजनके व्यवहारे (उभयोः) (कथा) केन प्रकारेण (विधाति) विदध्यात् (अप्रचेताः) विद्याविज्ञानरहितः ॥ १ ॥
भावार्थः
सभासेनेशौ शूरविद्वद्व्यवहाराभिज्ञैः सह व्यवहरेतां पुनरेतयोः पराजयं कर्त्तुं विजयं निरोद्धुं समर्थौ स्यातां न कदाचित्कस्यापि मूर्खसहायेन प्रयोजनं सिध्यति तस्मात्सदा विद्वन्मैत्रीं सेवेताम् ॥ १ ॥
हिन्दी (1)
विषय
अब एकसौ बीसवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में प्रश्नोत्तरविधि का उपदेश करते हैं ।
पदार्थ
हे (अश्विना) गृहाश्रम धर्म में व्याप्त स्त्री-पुरुषो ! (वाम्) तुम (उभयोः) दोनों की (का) कौन (होत्रा) सेना शत्रुओं के बल को लेने और उत्तम जीत देने की (राधत्) सिद्धि करे (वाम्) तुम दोनों के (जोषे) प्रीति उत्पन्न करनेहारे व्यवहार में (कथा) कैसे (कः) कौन (अप्रचेताः) विद्या विज्ञान रहित अर्थात् मूढ़ शत्रु-हार को (विधाति) विधान करे ॥ १ ॥
भावार्थ
सभासेनाधीश शूर और विद्वान् के व्यवहारों को जाननेहारों के साथ अपना व्यवहार करें फिर शूर और विद्वान् के हार देने और उनकी जीत को रोकने को समर्थ हों, कभी किसी का मूढ़ के सहाय से प्रयोजन नहीं सिद्ध होता। इससे सब दिन विद्वानों से मित्रता रक्खें ॥ १ ॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात प्रश्नोत्तर, अध्ययन - अध्यापन व राजधर्माच्या विषयाचे वर्णन असल्यामुळे या अर्थाची मागील सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥
भावार्थ
सभा सेनाधीश यांनी शूर विद्वानांच्या व्यवहारांना जाणणाऱ्यांबरोबर आपला व्यवहार करावा. ते शूर विद्वानांना पराजित करणारे व त्यांचा विजय रोखण्यास समर्थ असणारे असावेत. कोणाचेही प्रयोजन मूर्खाच्या साह्याने सिद्ध होत नाही. त्यामुळे नेहमी विद्वानांबरोबर मैत्री करावी. ॥ १ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
What call, Ashvins, leaders and commanders, would rouse you to action and victory? Who could, if he were ignorant and unintelligent, lead you to victory and win your pleasure, and how? (None of the ignorant and unintelligent.)
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