ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 120/ मन्त्र 10
ऋषिः - उशिक्पुत्रः कक्षीवान्
देवता - अश्विनौ
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
अ॒श्विनो॑रसनं॒ रथ॑मन॒श्वं वा॒जिनी॑वतोः। तेना॒हं भूरि॑ चाकन ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒श्विनोः॑ । अ॒स॒न॒म् । रथ॑म् । अ॒न॒श्वम् । वा॒जिनी॑ऽवतोः । तेन॑ । अ॒हम् । भूरि॑ । चा॒क॒न॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अश्विनोरसनं रथमनश्वं वाजिनीवतोः। तेनाहं भूरि चाकन ॥
स्वर रहित पद पाठअश्विनोः। असनम्। रथम्। अनश्वम्। वाजिनीऽवतोः। तेन। अहम्। भूरि। चाकन ॥ १.१२०.१०
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 120; मन्त्र » 10
अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
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अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
अहं वाजिनीवतोरश्विनोर्यमश्वं रथमसनं तेन भूरि चाकन ॥ १० ॥
पदार्थः
(अश्विनोः) सभासेनेशयोः (असनम्) संभजेयम् (रथम्) रमणीयं विमानादियानम् (अनश्वम्) अविद्यामानतुरङ्गम् (वाजिनीवतोः) प्रशस्ता विज्ञानादियुक्ता सभा सेना च विद्यते ययोस्तयोः (तेन) (अहम्) (भूरि) बहु (चाकन) प्रकाशितो भवेयम्। तुजादित्वादभ्यासदीर्घः ॥ १० ॥
भावार्थः
यानि भूजलान्तरिक्षगमनार्यानि यानानि निर्मितानि भवन्ति तत्र पशवो नो युज्यन्ते किन्तु तानि जलाग्निकलायन्त्रादिभिरेव चलन्ति ॥ १० ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
(अहम्) मैं (वाजिनीवतोः) जिनके प्रशंसित विज्ञानयुक्त सभा और सेना विद्यमान हैं उन (अश्विनोः) सभासेनाधीशों के (अनश्वम्) अनश्व अर्थात् जिसमें घोड़ा आदि नहीं लगते (रथम्) उस रमण करने योग्य विमानादि यान का (असनम्) सेवन करूँ और (तेन) उससे (भूरि) बहुत (चाकन) प्रकाशित होऊँ ॥ १० ॥
भावार्थ
जो भूमि, जल और अन्तरिक्ष में चलने के विमान आदि यान बनाये जाते हैं, उनमें पशु नहीं जोड़े जाते किन्तु वे पानी और अग्नि के कलायन्त्रों से चलते हैं ॥ १० ॥
विषय
अनश्व रथ
पदार्थ
१. मैं (वाजिनीवतोः) = शक्तियुक्त क्रियावाले [वाज - शक्ति , तद्युक्तक्रिया वाजिनी] (अश्विनोः) = अश्विनीदेवों के (अनश्वम्) = अश्वों के सादृश्यवाली इन्द्रियोंवाले (रथम्) = शरीररथ को (असनम्) = प्राप्त करूँ । प्राणसाधना करने से यह शरीर प्राणापान का रथ कहलाता है । इसमें इन्द्रियों को अश्व कहा गया है । ये अश्व तो नहीं हैं पर ‘नञ्’ से तत्सादृश्यता को प्रकट करते हुए इस रथ को अनश्व कहा गया है । हम इस प्राणापान के रथ को प्राप्त करें । २. यह रथ जब प्राणापान की शक्तियुक्त क्रियाओंवाला होता है तब यह हमारी शोभा का कारण बनता है । (तेन) = उस रथ से (अहम्) = मैं (भूरि) = खूब ही (चाकन्) = [कन् दीप्तौ] चमकूँ । प्राणसाधना से हमारी क्रियाशीलता में वृद्धि होती है । यह वृद्धि हमारी शोभा को बढ़ाती है ।
भावार्थ
भावार्थ - प्राणसाधना से मेरा यह शरीर - रथ खूब क्रियावान् हो और मेरी दीप्ति का कारण बने ।
विशेष / सूचना
सूचना - यहाँ ‘अनश्वं रथम्’ ये शब्द बिना घोड़ों से चलनेवाले रथों [कारों] का संकेत देते हैं ।
विषय
विद्वान् प्रमुख नायकों और स्त्री पुरुषों के कर्तव्य ।
भावार्थ
( अश्विनोः ) शिल्प विद्याओं में कुशल, ( वाजिनीवतोः ) बलवती, वेगवती क्रिया के उत्पन्न करने में कुशल शिल्पियों के बनाये ( अनश्वं रथम् ) विना अश्व के चलने वाले रथ, विमान, मोटर गाड़ी आदि रमण करने योग्य आनन्दप्रद यान को मैं राजा और प्रजावर्ग ( असनम् ) प्राप्त करूं । और ( तेन ) उस यान आदि ऐश्वर्य से ( अहं ) मैं ( भूरि ) बहुत अधिक ( चाकन ) तेजस्वी होऊं । ( २ ) अध्यात्म में—इस देह में प्राण और अपान ये दो अश्वी हैं जो वाज अर्थात् अन्न शक्ति के स्वामी होने से वाजिनीवान् हैं। उनके इस देह रूप अश्वरहित रथ का मैं आत्मा भोग करता हूं। और उससे बहुत ( चाकन ) कामनाएं पूर्ण करता हूं । ( ३ ) इसी प्रकार मुख्य राजा अपने अधीन सभा और सेना के दो अध्यक्षों के हाथ शक्ति देकर उनके विना अश्व अर्थात् विना भोक्ता के रथ अर्थात् उत्तम व्यवस्थित राष्ट्र का भोग स्वतः करे और उससे खूब तेजस्वी हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
औशिक्पुत्रः कक्षीवानृषिः॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः- १, १२ पिपलिकामध्या निचृद्गायत्री । २ भुरिग्गायत्री । १० गायत्री । ११ पिपीलिकामध्या विराड् गायत्री । ३ स्वराट् ककुबुष्णिक् । ५ आर्ष्युष्णिक् । ६ विराडार्ष्युष्णिक् । ८ भुरिगुष्णिक् । ४ आर्ष्यनुष्टुप् । ७ स्वराडार्ष्यनुष्टुप् । ९ भुरिगनुष्टुप् । द्वादशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
भूमी, जल व अंतरिक्षात चालणारी विमान इत्यादी याने तयार केली जातात. त्यात पशू जोडले जात नाहीत; परंतु ते पाणी व अग्नीच्या कलायंत्रांनी चालतात. ॥ १० ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
I pray: let me achieve and ride the horseless automotive chariot of the Ashvins, lords of knowledge, wealth and speed, so that I may advance and amply shine.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
Let me use the admirable horseless car-in the form of an air-craft of the Ashvins (The President of the Assembly and the Commander of the Army) who are in charge of the men belonging to the Assembly and the army. I may thereby shine well and expect to gain much wealth.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(रंथम् ) रमणीयं विमानादियानम् = Beautiful car like the air-craft etc. (वाजिनीवतो:) प्रशस्ता विज्ञानादियुक्ता सभा सेना च विद्यते ययोस्तयोः Who are in charge of praiseworthy men belonging to the Assembly and the army. (चाकन) प्रकाशितो भवेयम् = Let me shine well.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
In those cars or vehicles that are manufactured to travel on earth, the sea and the firmament, horses are not used, but they move by the machines with the proper combination of water, fire and other things.
Translator's Notes
The worth रथ is derived from रमु-क्रीड़ायाम् so it may be used for any beautiful and pleasant vehicle. चाकन is from कमी. दीप्ति कान्ति गतिषु भ्वा० so it has been translated as प्रकाशितो भवेयम् । The following translation of the Mantra made by Prof. Wilson and Griffith is worth quoting to show that there is the mention of a horseless car like the aircraft here. Prof. Wilson's translation is : I have obtained, without horses, the car of the foodbestowing Ashvins, and expect to gain by it much (wealth) (Prof. Wilson's Translation of the Rigveda Vol.1, P.199) Griffith's Translation ; "I have obtained the horseless Car of Asvins rich in sacrifice, and I am well content there with." (Translation of the Hymns of the Rigveda Vol.1, P.164.) Even from these faulty translations of Wilson and Griffith, it is clear that Rishi Dayananda Sarasvati's interpretation of the Mantra is quite justified and not far-fetched as some critics suppose it to be.
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