ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 144/ मन्त्र 1
एति॒ प्र होता॑ व्र॒तम॑स्य मा॒ययो॒र्ध्वां दधा॑न॒: शुचि॑पेशसं॒ धिय॑म्। अ॒भि स्रुच॑: क्रमते दक्षिणा॒वृतो॒ या अ॑स्य॒ धाम॑ प्रथ॒मं ह॒ निंस॑ते ॥
स्वर सहित पद पाठएति॑ । प्र । होता॑ । व्र॒तम् । अ॒स्य॒ । मा॒यया॑ । ऊ॒र्ध्वाम् । दधा॑नः । शुचि॑ऽपेशसम् । धिय॑म् । अ॒भि । स्रुचः॑ । क्र॒म॒ते॒ । द॒क्षि॒णा॒ऽआ॒वृतः॑ । याः । अ॒स्य॒ । धाम॑ । प्र॒थ॒मम् । ह॒ । निंस॑ते ॥
स्वर रहित मन्त्र
एति प्र होता व्रतमस्य माययोर्ध्वां दधान: शुचिपेशसं धियम्। अभि स्रुच: क्रमते दक्षिणावृतो या अस्य धाम प्रथमं ह निंसते ॥
स्वर रहित पद पाठएति। प्र। होता। व्रतम्। अस्य। मायया। ऊर्ध्वाम्। दधानः। शुचिऽपेशसम्। धियम्। अभि। स्रुचः। क्रमते। दक्षिणाऽआवृतः। याः। अस्य। धाम। प्रथमम्। ह। निंसते ॥ १.१४४.१
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 144; मन्त्र » 1
अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 13; मन्त्र » 1
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अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 13; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथाध्यापकोपदेशकविषयमाह ।
अन्वयः
यो होता माययाऽस्य व्रतमूर्ध्वां शुचिपेशसं धियं दधानः प्रक्रमते या अस्य स्रुचो दक्षिणावृतो धियः प्रथमं धाम निंसते ता अभ्येति स ह प्राज्ञतमो जायते ॥ १ ॥
पदार्थः
(एति) प्राप्नोति (प्र) (होता) सद्गुणग्रहीता (व्रतम्) सत्याचरणशीलम् (अस्य) शिक्षकस्य (मायया) प्रज्ञया (ऊर्ध्वाम्) उत्कृष्टाम् (दधानः) (शुचिपेशसम्) पवित्ररूपाम् (धियम्) प्रज्ञां कर्म वा (अभि) (स्रुचः) विज्ञानयुक्ताः (क्रमते) प्राप्नोति (दक्षिणावृतः) या दक्षिणां वृण्वन्ति (याः) (अस्य) (धाम) दधति यस्मिंस्तत् (प्रथमम्) (ह) (निंसते) चुम्बति ॥ १ ॥
भावार्थः
ये मनुष्या आप्तस्य विदुष उपदेशाध्यापनाभ्यां विद्यायुक्तां बुद्धिमाप्नुवन्ति ते सुशीला जायन्ते ॥ १ ॥
हिन्दी (1)
विषय
अब एकसौ चवालीसवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में अध्यापक और उपदेश करनेवालों के विषय को कहते हैं ।
पदार्थ
जो (होता) सद्गुणों का ग्रहण करनेवाला पुरुष (मायया) उत्तम बुद्धि से (अस्य) इस शिक्षा करनेवाले के (व्रतम्) सत्याचरणशील को (ऊर्ध्वाम्) और उत्तम (शुचिपेशसम्) पवित्र (धियम्) बुद्धि वा कर्म को (दधानः) धारण करता हुआ (प्र, क्रमते) व्यवहारों में चलता है वा (याः) जो (अस्य) इसकी (स्रुचः) विज्ञानयुक्त (दक्षिणावृतः) दक्षिणा का आच्छादन करनेवाली बुद्धि हैं उनको और (प्रथमम्) प्रथम (धाम) धाम को (निंसते) जो प्रीति को पहुँचाता है, उन को (अभि एति) सब ओर से प्राप्त करता है (ह) वही अत्यन्त बुद्धिमान् होता है ॥ १ ॥
भावार्थ
जो मनुष्य शास्त्रवेत्ता विद्वान् के उपदेश और पढ़ाने से विद्यायुक्त बुद्धि को प्राप्त होते हैं, वे सुशील होते हैं ॥ १ ॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात अध्यापक व उपदेशक यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर मागच्या सूक्ताच्या अर्थाची संगती आहे हे जाणावे. ॥
भावार्थ
जी माणसे शास्त्रवेत्त्या विद्वानांचा उपदेश व अध्यापन या द्वारे विद्यायुक्त बुद्धी प्राप्त करतात ती सुशील असतात. ॥ १ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The yajaka who holds his clear and brilliant intelligence high with his will and power goes by the law and discipline of this Agni, light of the Divine power of the world. He moves forward to hold the sacred ladles dedicated to the service of yajna-fire and right circumambulation of the vedi, ladles which first and directly reach and take the yajamana to the sacred abode of Agni, light Divine.
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