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ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 150/ मन्त्र 1
पु॒रु त्वा॑ दा॒श्वान्वो॑चे॒ऽरिर॑ग्ने॒ तव॑ स्वि॒दा। तो॒दस्ये॑व शर॒ण आ म॒हस्य॑ ॥
स्वर सहित पद पाठपु॒रु । त्वा॒ । दा॒स्वान् । वो॒चे॒ । अ॒रिः । अ॒ग्ने॒ । तव॑ । स्वि॒त् । आ । तो॒दस्य॑ऽइव । श॒र॒णे । आ । म॒हस्य॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पुरु त्वा दाश्वान्वोचेऽरिरग्ने तव स्विदा। तोदस्येव शरण आ महस्य ॥
स्वर रहित पद पाठपुरु। त्वा। दाश्वान्। वोचे। अरिः। अग्ने। तव। स्वित्। आ। तोदस्यऽइव। शरणे। आ। महस्य ॥ १.१५०.१
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 150; मन्त्र » 1
अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
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अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विद्वद्गुणानाह ।
अन्वयः
हे अग्ने दाश्वानरिरहं महस्य तोदस्येव तव स्विदा शरणे त्वा पुर्वा वोचे ॥ १ ॥
पदार्थः
(पुरु) बहु (त्वा) त्वाम् (दाश्वान्) दाता (वोचे) वदेयम् (अरिः) प्रापकः (अग्ने) विद्वन् (तव) (स्वित्) एव (आ) (तोदस्येव) व्यथकस्येव (शरणे) गृहे (आ) (महस्य) महतः ॥ १ ॥
भावार्थः
यो यस्य भृत्यो भवेत् स तस्याऽज्ञां पालयित्वा कृतार्थो भवेत् ॥ १ ॥
हिन्दी (1)
विषय
अब एकसौ पचासवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके मन्त्र में विद्वानों के गुणों का उपदेश करते हैं ।
पदार्थ
हे (अग्ने) विद्वान् ! (दाश्वान्) दान देने और (अरिः) व्यवहारों की प्राप्ति करानेवाला मैं (महस्य) महान् (तोदस्येव) व्यथा देनेवाले के जैसे वैसे (तव) आपके (स्वित्) ही (आ, शरणे) अच्छे प्रकार घर में (त्वा) आपको (पुरु, आ, वोचे) बहुत भली-भाँति से कहूँ ॥ १ ॥
भावार्थ
जो जिसका रक्खा हुआ सेवक हो, वह उसकी आज्ञा का पालन करके कृतार्थ होवे ॥ १ ॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर मागच्या सूक्ताच्या अर्थाची संगती जाणली पाहिजे. ॥
भावार्थ
जो ज्याचा सेवक असेल त्याने त्याची आज्ञा पालन करून कृतार्थ व्हावे. ॥ १ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Faithful and dedicated, giving in homage, I sing profusely in honour and celebration of you, and come in to you for shelter and protection, Agni, lord of light as the sun, great and glorious.
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