Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 174 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 174/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - इन्द्र: छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    अजा॒ वृत॑ इन्द्र॒ शूर॑पत्नी॒र्द्यां च॒ येभि॑: पुरुहूत नू॒नम्। रक्षो॑ अ॒ग्निम॒शुषं॒ तूर्व॑याणं सिं॒हो न दमे॒ अपां॑सि॒ वस्तो॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अज॑ । वृतः॑ । इ॒न्द्र॒ । शूर॑ऽपत्नीः । द्याम् । च॒ । येभिः॑ । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । नू॒नम् । रक्षः॑ । अ॒ग्निम् । अ॒शुष॑म् । तूर्व॑याणम् । सिं॒हः । न । दमे॑ । अपां॑सि । वस्तोः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अजा वृत इन्द्र शूरपत्नीर्द्यां च येभि: पुरुहूत नूनम्। रक्षो अग्निमशुषं तूर्वयाणं सिंहो न दमे अपांसि वस्तो: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अज। वृतः। इन्द्र। शूरऽपत्नीः। द्याम्। च। येभिः। पुरुऽहूत। नूनम्। रक्षः। अग्निम्। अशुषम्। तूर्वयाणम्। सिंहः। न। दमे। अपांसि। वस्तोः ॥ १.१७४.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 174; मन्त्र » 3
    अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 16; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ राजानस्सपत्नीकाः परिवर्त्तन्तां कलाकौशलसिद्धये अग्निविद्यां विदन्त्वित्याह ।

    अन्वयः

    हे पुरुहूतेन्द्र वृतस्त्वं येभिस्सह शूरपत्नीर्द्यां च नूनमज जानीहि तैः सिंहो न दमेऽपांसि वस्तोः तूर्वयाणमशुषमग्निं रक्षो ॥ ३ ॥

    पदार्थः

    (अज) जानीहि। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (वृतः) स्वीकृतः सन् (इन्द्र) शत्रुदलविदारक (शूरपत्नीः) शूराणां स्त्रियः (द्याम्) प्रकाशम् (च) (येभिः) यैः (पुरुहूत) बहुभिस्सत्कृत (नूनम्) निश्चितम् (रक्षो) रक्षैव (अग्निम्) (अशुषम्) शोषरहितम् (तूर्वयाणम्) तूर्वाणि शीघ्रगमनानि यानानि यस्मात्तम् (सिंहः) (न) इव (दमे) गृहे (अपांसि) कर्माणि (वस्तोः) वासयितुम् ॥ ३ ॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यथा सिंहः स्वगृहे बलात्सर्वान् निरुणद्धि तथा निजबलाद्राजा स्वगृहे लाभप्राप्तये प्रयतेत। येन संयुक्तेनाग्निना यानानि तूर्णं गच्छन्ति तेन संसाधिते याने स्थित्वा सत्पत्नीका इतस्ततो गच्छन्त्वागच्छन्तु ॥ ३ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (1)

    विषय

    अब राजजन सपत्नीक परिभ्रमण करें और कलाकौशल की सिद्धि के लिये अग्निविद्या को जानें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे (पुरुहूत) बहुतों ने सत्कार किये हुए (इन्द्र) शत्रुदल के नाशक (वृतः) राज्याधिकार में स्वीकार किये हुए राजन् ! आप (येभिः) जिनके साथ (शूरपत्नीः) शूरों की पत्नी और (द्याञ्च) प्रकाश को (नूनम्) निश्चित (अज) जानो उनके साथ (सिंहः) सिंह के (न) समान (दमे) घर में (अपांसि) कर्मों के (वस्तोः) रोकने को (तूर्वयाणम्) शीघ्र गमस करानेवाले यान जिससे सिद्ध होते उस (अशुषम्) शोषरहित जिसमें अर्थात् लोहा, तांबा, पीतल आदि धातु पिघिला करें गीले हुआ करें उस (अग्निम्) अग्नि को (रक्षो) अवश्य रक्खो ॥ ३ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे सिंह अपने भिटे में बल से सबको रोकता ले जाता है, वैसे राजा निज बल से अपने घर में लाभप्राप्ति के लिये प्रयत्न करे। जिस अच्छे प्रकार प्रयोग किये अग्नि से यान शीघ्र जाते हैं, उस अग्नि से सिद्ध किये हुए यान पर स्थिर होकर स्त्री-पुरुष इधर-उधर से आवें-जावें ॥ ३ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा सिंह बलपूर्वक सर्वांना आपल्या गुहेत घेऊन जातो तसे राजाने आपल्या बलाने आपल्या स्थानी लाभप्राप्तीसाठी प्रयत्न करावा. चांगल्या प्रकारे प्रयोगात आणलेल्या अग्नीने याने शीघ्र गमन करतात. त्या अग्नीने सिद्ध केलेल्या यानात बसून स्त्री-पुरुषांनी इकडे तिकडे भ्रमण करावे. ॥ ३ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Immortal Indra, destroyer of suffering, elected and invoked by all, surely you drive high up to the lights of heaven with the Maruts, tempestuous powers of nature and humanity. With the same powers, like a lion, pray protect the brave women of the land. Preserve the inextinguishable fire that moves high speed vehicles to their destination. Keep the morning fires burning and let the waters of the home flow on and on.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top