ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 46/ मन्त्र 1
ऋषिः - प्रस्कण्वः काण्वः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
ए॒षो उ॒षा अपू॑र्व्या॒ व्यु॑च्छति प्रि॒या दि॒वः । स्तु॒षे वा॑मश्विना बृ॒हत् ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षो इति॑ । उ॒षाः । अपू॑र्व्या । वि । उ॒च्छ॒ति॒ । प्रि॒या । दि॒वः । स्तु॒षे । वा॒म् । अ॒श्वि॒ना॒ । बृ॒हत् ॥
स्वर रहित मन्त्र
एषो उषा अपूर्व्या व्युच्छति प्रिया दिवः । स्तुषे वामश्विना बृहत् ॥
स्वर रहित पद पाठएषो इति । उषाः । अपूर्व्या । वि । उच्छति । प्रिया । दिवः । स्तुषे । वाम् । अश्विना । बृहत्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 46; मन्त्र » 1
अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 33; मन्त्र » 1
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अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 33; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
(एषो) इयम् (उषाः) दाहनिमित्तशीला (अपूर्व्या) न पूर्वैः कृता। अत्र पूर्वैः कृतमिनियौ च। अ० ४।४।१३४। अनेनायं सिद्धः। (वि) विविधार्थे (उच्छति) विवसति (प्रिया) या प्रीणाति सर्वान् सा (दिवः) सूर्य्यप्रकाशात् (स्तुषे) तद्गुणान् प्रकाशयसि (वाम्) द्वे (अश्विना) अश्विनौ सूर्य्याचन्द्रमसाविवाध्यापिकोपदेशिके (बृहत्) महद्दिनम् ॥१॥
अन्वयः
तत्रोषरश्विवद्वर्त्तमानानां विदुषीणां गुणा उपदिश्यन्ते।
पदार्थः
हे विदुषि ! या त्वं यथैषो अपूर्व्या दिव अद्भुता सती प्रियोषा बृहदुच्छति तथा मां व्युच्छसि यथाऽश्विनौ स्तुषे तथाऽहमपि त्वां विवासयामि स्तौमि च ॥१॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालंकारः। याः स्त्रियः सूर्यचन्द्रोषर्वत्सर्वान् प्राणिनः सुखयन्ति ता एवानन्दाप्ता भवन्ति नेतराः ॥१॥
हिन्दी (1)
विषय
अब छयालीसवें सूक्त का आरम्भ है। इसके पहिले मन्त्र में उषा और सूर्य चन्द्र के दृष्टान्त से विद्वान् स्त्रियों के गुणों का प्रकाश किया है।
पदार्थ
हे विदुषि ! जो तू जैसे (एषो) यह (अपूर्व्या) किसी की हुई न (दिवः) सूर्य्य प्रकाश से उत्पन्न हुई (प्रिया) सबको प्रीति की बढ़ाने वाली (उषाः) दाहशील उषा अर्थात् प्रातःकाल की वेला (बृहत्) बड़े दिन को (उच्छति) प्रकाशित करती है वैसे मुझ को (व्युच्छति) आनन्दित करती हो और जैसे वह (अश्विना) सूर्य और चन्द्रमा के तुल्य पढ़ाने और उपदेश करने हारी स्त्रियों के (स्तुषे) गुणों का प्रकाश करती हो वैसे मैं भी तुझ को सुखों में वसाऊं और तेरी प्रशंसा भी करूं ॥१॥
भावार्थ
इस मंत्र में वाचकलुप्तोपमालंकार है। जो स्त्री लोग सूर्य चन्द्र और उषा के सदृश सब प्राणियों को सुख देती हैं वे आनन्द को प्राप्त होती हैं इनसे विपरीत कभी नहीं हो सकतीं ॥१॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात उषा व अश्वी यांचे प्रत्यक्ष वर्णन केलेले आहे. त्यामुळे या सूक्तार्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी. ॥
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्या स्त्रिया सूर्य, चंद्र व उषाप्रमाणे सर्व प्राण्यांना सुख देतात. त्यांना आनंद प्राप्त होतो. या विपरीत इतर स्त्रिया तो प्राप्त करू शकत नाहीत. ॥ १ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
This glorious dawn, darling of the sun, shines forth from heaven and proclaims the day. Ashvins, harbingers of this glory, I admire you immensely — infinitely.
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