ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 55/ मन्त्र 5
स इन्म॒हानि॑ समि॒थानि॑ म॒ज्मना॑ कृ॒णोति॑ यु॒ध्म ओज॑सा॒ जने॑भ्यः। अधा॑ च॒न श्रद्द॑धति॒ त्विषी॑मत॒ इन्द्रा॑य॒ वज्रं॑ नि॒घनि॑घ्नते व॒धम् ॥
स्वर सहित पद पाठसः । इत् । म॒हानि॑ । स॒म्ऽइ॒थानि॑ । म॒ज्मना॑ । कृ॒णोति॑ । यु॒ध्मः । ओज॑सा । जने॑भ्यः । अध॑ । च॒न । श्रत् । द॒ध॒ति॒ । त्विषि॑ऽमते । इन्द्रा॑य । वज्र॑म् । नि॒ऽघनि॑घ्नते । व॒धम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
स इन्महानि समिथानि मज्मना कृणोति युध्म ओजसा जनेभ्यः। अधा चन श्रद्दधति त्विषीमत इन्द्राय वज्रं निघनिघ्नते वधम् ॥
स्वर रहित पद पाठसः। इत्। महानि। सम्ऽइथानि। मज्मना। कृणोति। युध्मः। ओजसा। जनेभ्यः। अध। चन। श्रत्। दधति। त्विषिऽमते। इन्द्राय। वज्रम्। निऽघनिघ्नते। वधम् ॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 55; मन्त्र » 5
अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 19; मन्त्र » 5
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अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 19; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥
अन्वयः
यदि स युध्मो मज्मनौजसा जनेभ्य उपदेशेन महानि समिथानि कृणोति करोति वज्रमिव वधं निघनिघ्नतेऽधाथ तर्ह्यस्मा इत् त्विषीमत इन्द्राय चन जनाः श्रद्दधति ॥ ५ ॥
पदार्थः
(सः) (इत्) एव (महानि) महान्ति पूज्यानि (समिथानि) सम्यक् यन्ति यानि विज्ञानानि तानि (मज्मना) बलेन। मज्मेति बलनामसु पठितम्। (निघं०२.९) (कृणोति) करोति (युध्मः) अविद्याकुटुम्बस्य प्रहर्त्ता (ओजसा) पराक्रमेण (जनेभ्यः) मनुष्येभ्यः (अध) अथ। निपातस्य च इति दीर्घः। (चन) अपि (श्रत्) सत्यम्। श्रदिति सत्यनामसु पठितम्। (निघं०३.१०) (दधति) धरन्ति (त्विषीमते) प्रशस्तप्रकाशान्तःकरणवते (इन्द्राय) परमैश्वर्य्ययोजकाय (वज्रम्) शस्त्रमिवाज्ञानच्छेदकमुपदेशम् (निघनिघ्नते) यो हन्ति स निघ्नः स इवाचरति। अत्र निघ्नशब्दाद् आचारे क्विप् ततो लट् शपः श्लुः व्यत्ययेन आत्मनेपदं च। (वधम्) हननम् ॥ ५ ॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्यो मेघमुत्पाद्य छित्वा वर्षित्वा स्वप्रकाशेन सर्वानानन्दयति तथाऽध्यापकोपदेशकावन्धपरम्परां निवार्य विद्यान्यायादीन् प्रकाश्य सर्वाः प्रजाः सुखिनीः कुर्याताम् ॥ ५ ॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर वह कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थ
जो (सः) वह (युध्मः) युद्ध करनेवाला उपदेशक (मज्मना) बल वा (ओजसा) पराक्रम से युक्त हो के (जनेभ्यः) मनुष्यादिकों के सुख के लिये उपदेश से (महानि) बड़े पूजनीय (समिथानि) संग्रामों को जीतनेवाले के तुल्य अविद्या विजय को (कृणोति) करता है (वज्रम्) वज्रप्रहार के समान शत्रुओं के (वधम्) मारने को (निघनिघ्नते) मारनेवाले के समान आचरण करता है, तो (अध) इसके अनन्तर (इत्) ही (अस्मै) इस (त्विषीमते) प्रशंसनीय प्रकाशयुक्त (इन्द्राय) परमैश्वर्य्य की प्राप्ति करानेवाले के लिये सब मनुष्य लोग (चन) भी (श्रद्दधति) प्रीति से सत्य का धारण करते हैं ॥ ५ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य मेघ को उत्पन्न, काट और वर्षा करके अपने प्रकाश से सब मनुष्यों को आनन्दयुक्त करता है, वैसे ही अध्यापक और उपदेशक लोग विद्या को प्राप्त करा और अविद्या को जीत के अन्धपरम्परा को निवारण कर विद्यान्यायादि का प्रकाश करके सब प्रजा को सुखी करें ॥ ५ ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य मेघ उत्पन्न करतो त्याला खंडित करून वृष्टी करवितो व आपल्या प्रकाशाने सर्व माणसांना आनंदी करतो तसेच अध्यापक व उपदेशक यांनी विद्या प्राप्त करून अविद्येवर मात करून अंध परंपरेचे निवारण करून विद्या, न्याय इत्यादींनी प्रजेला सुखी करावे. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Great warrior as he is, fighting with the brilliance of his knowledge, wealth and power against ignorance, injustice and poverty, he wins great battles for the people. He strikes the thunderbolt against evil, wickedness and hoarding for the glory of the order, and then the people vest full faith in him, lord of splendour and majesty as he is.
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