ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 63/ मन्त्र 1
ऋषि: - नोधा गौतमः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - भुरिगार्षीपङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
त्वं म॒हाँ इ॑न्द्र॒ यो ह॒ शुष्मै॒र्द्यावा॑ जज्ञा॒नः पृ॑थि॒वी अमे॑ धाः। यद्ध॑ ते॒ विश्वा॑ गि॒रय॑श्चि॒दभ्वा॑ भि॒या दृ॒ळ्हासः॑ कि॒रणा॒ नैज॑न् ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । म॒हान् । इ॒न्द्र॒ । यः । ह॒ । शुष्मैः॑ । द्यावा॑ । ज॒ज्ञा॒नः । पृ॒थि॒वी इति॑ । अमे॑ । घाः॒ । यत् । ह॒ । ते॒ । विश्वा॑ । गि॒रयः॑ । चि॒त् । अभ्वा॑ । भि॒या । दृ॒ळ्हासः॑ । कि॒रणाः॑ । न । ऐज॑न् ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं महाँ इन्द्र यो ह शुष्मैर्द्यावा जज्ञानः पृथिवी अमे धाः। यद्ध ते विश्वा गिरयश्चिदभ्वा भिया दृळ्हासः किरणा नैजन् ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम्। महान्। इन्द्र। यः। ह। शुष्मैः। द्यावा। जज्ञानः। पृथिवी इति। अमे। धाः। यत्। ह। ते। विश्वा। गिरयः। चित्। अभ्वा। भिया। दृळ्हासः। किरणाः। न। ऐजन् ॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 63; मन्त्र » 1
अष्टक » 1; अध्याय » 5; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
Acknowledgment
अष्टक » 1; अध्याय » 5; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
Acknowledgment
विषय - अब त्रेसठवें सूक्त का आरम्भ है, उसके पहिले मन्त्र में ईश्वर के गुणों का उपदेश किया है ॥
पदार्थ -
हे (इन्द्र) उत्तम सम्पदा के देनेवाले परमात्मन् ! जो (त्वम्) आप (महान्) गुणों से अनन्त (जज्ञानः) प्रसिद्ध (शुष्मैः) बलादि के (अमे) प्रकाश में (ह) निश्चय करके (द्यावापृथिवी) प्रकाश और पृथिवी को (धाः) धारण करते हो (ते) आपके (अभ्वा) उत्पन्न रहित सामर्थ्य के (भिया) भय से (ह) ही (यत्) जो (विश्वा) सब (गिरयः) पर्वत वा मेघ (दृढासः) दृढ़ हुए (चित्) और (किरणाः) कान्ति (नैजत्) कभी कम्प को प्राप्त नहीं होते ॥ १ ॥
भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को ऐसा समझना चाहिये कि जो परमेश्वर अपने सामर्थ्य और बल आदि से सब जगत् को रच के दृढ़ता से धारण करता है, उसी की सब काल में उपासना करें तथा जिस सूर्य्यलोक ने अपने आकर्षण आदि गुणों से पृथिवी आदि लोकों को धारण किया है, उसको भी परमेश्वर का बनाया और धारण किया जानें ॥ १ ॥
Bhashya Acknowledgment
विषयः - यद्येतेषां रावणोवटसायणमहीधरमोक्षमूलरादीनां छन्दोविज्ञानमपि नास्ति तर्हि वेदार्थव्याख्यानानर्थस्य तु का कथा ॥ अथेश्वरगुणा उपदिश्यन्ते ॥
अन्वयः - हे इन्द्र ! यस्त्वं महान् जज्ञानः शुष्मैरमे ह द्यावापृथिवी धा दधासि ते तवाभ्वा सामर्थ्येन भिया भयेन ह प्रसिद्धं यद्ये विश्वा गिरयो दृढासः सन्तः किरणाश्चिदपि नैजन्न कम्पन्ते ॥ १ ॥
पदार्थः -
(त्वम्) (महान्) गुणैरधिकः (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रद (यः) उक्तार्थः (ह) किल (शुष्मैः) बलादिभिः (द्यावा) प्रकाशम् (जज्ञानः) प्रसिद्धः (पृथिवी) भूमिः (अमे) गृहे (धाः) दधासि (यत्) ये (ह) प्रसिद्धम् (ते) तव (विश्वा) सर्वे (गिरयः) शैला मेघा वा (चित्) अपि (अभ्वा) नोत्पद्यते कदाचित् तेन कारणेन सह वर्त्तमानाः (भिया) भयेन (दृढासः) दृंहिताः (किरणाः) कान्तयः (न) निषेधे (ऐजन्) एजन्ति ॥ १ ॥
भावार्थः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्यः परमेश्वरः स्वकीयसामर्थ्यबलादिभिः सर्वं जगद्रचयित्वा स्वसामर्थ्येन दृढं धरति स एव सर्वदोपास्यः। ये सूर्यलोकेन स्वकीयाकर्षणगुणेन पृथिव्यादयो लोका ध्रियन्ते सोऽपि परमेश्वरेण रचितो धारित इति बोध्यम् ॥ १ ॥
Bhashya Acknowledgment
Meaning -
Indra, lord omnipresent, great you are indeed who, manifest in creation, hold the heaven and earth in your power and law of omnipotence. It is by that eternal power and awe that all the mighty mountains and the impetuous rays of light do not deviate from their fixed course.
Bhashya Acknowledgment
विषय - या सूक्तात ईश्वर सभाध्यक्ष व अग्नीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्तार्थाबरोबर पूर्व सूक्तार्थाची संगती जाणली पाहिजे.
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी हे समजावे की जो परमेश्वर आपल्या सामर्थ्य व बलाने सर्व जगाची निर्मिती करून दृढतेने धारण करतो. त्याचीच सर्व काळ उपासना करावी व ज्या सूर्यलोकाने आपल्या आकर्षण इत्यादी गुणांनी पृथ्वी इत्यादी गोलांना धारण केलेले आहे. त्यालाही परमेश्वराने निर्माण करून धारण केलेले आहे हे जाणावे. ॥ १ ॥
Bhashya Acknowledgment
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Dhiman
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal
Bhashya Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
N/A
Donation for Typing/OCR By:
Smt. Sushma Agarwal
First Proofing By:
Smt. Premlata Agarwal
Second Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Third Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal
Bhashya Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Smt. Shrutika Shevankar
Conversion to Unicode/OCR By:
N/A
Donation for Typing/OCR By:
Smt. Sushma Agarwal
First Proofing By:
Smt. Premlata Agarwal
Second Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Third Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal
Bhashya Acknowledgment
Book Scanning By:
N/A
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Sri Durga Prasad Agarwal, Smt. Nageshwari, & Sri Arnob Ghosh
Donation for Typing/OCR By:
Committed by Sri Navinn Seksaria
First Proofing By:
Pending
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Pending
Databasing By:
Sri Virendra Agarwal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal
Bhashya Acknowledgment
Book Scanning By:
N/A
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Dhiman
Donation for Typing/OCR By:
Dhananjay Joshi
First Proofing By:
Pending
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Virendra Agarwal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal