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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 79 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 79/ मन्त्र 5
    ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - अग्निः छन्दः - निचृदार्ष्युष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    स इ॑धा॒नो वसु॑ष्क॒विर॒ग्निरी॒ळेन्यो॑ गि॒रा। रे॒वद॒स्मभ्यं॑ पुर्वणीक दीदिहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । इ॒धा॒नः । वसुः॑ । क॒विः । अ॒ग्निः । ई॒ळेन्यः॑ । गि॒रा । रे॒वत् । अ॒स्मभ्य॑म् । पु॒रु॒ऽअ॒णी॒क॒ । दी॒दि॒हि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स इधानो वसुष्कविरग्निरीळेन्यो गिरा। रेवदस्मभ्यं पुर्वणीक दीदिहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः। इधानः। वसुः। कविः। अग्निः। ईळेन्यः। गिरा। रेवत्। अस्मभ्यम्। पुरुऽअणीक। दीदिहि ॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 79; मन्त्र » 5
    अष्टक » 1; अध्याय » 5; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

    अन्वयः

    हे पुर्वणीक ! यस्त्वमिन्धनैरग्निरिवेन्धानो गिरेळेन्यो वसुः कविरसि स त्वमस्मभ्यं रेवच्छ्रवो दीदिहि ॥ ५ ॥

    पदार्थः

    (सः) (इधानः) इन्धनैः पावकवद्विद्यया प्रदीप्तः (वसुः) वासयिता (कविः) सर्वविद्यावित् (अग्निः) पावक इव वर्त्तमानः (इळेन्यः) स्तोतुं योग्यः (गिरा) वाण्या (रेवत्) प्रशस्तधनयुक्तम् (अस्मभ्यम्) (पुर्वणीक) पुरवोऽनीकाः सेना यस्य तत्सम्बुद्धौ (दीदिहि) भृशं प्रकाशय। दीदयति ज्वलति कर्मनामसु पठितम्। (निघं०१.१६) ॥ ५ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। पूर्वस्मान्मन्त्राच्छ्रव इति पदमनुवर्त्तते। यथा विद्युद्भौमसूर्यरूपेणाऽग्निः सर्वं मूर्त्तं द्रव्यं द्योतयति तथाऽनूचानो विद्वान् सर्वा विद्याः प्रकाशयति ॥ ५ ॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर वह कैसा है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

    पदार्थ

    हे (पुर्वणीक) बहुत सेनाओं से युक्त ! जो तू जैसा इन्धनों से (अग्निः) अग्नि प्रकाशमान होता है, वैसे (इन्धानः) प्रकाशमान (गिरा) वाणी से (ईळेन्यः) स्तुति करने योग्य (वसुः) सुख को बसानेवाला और (कविः) सर्वशास्त्रवित् होता है (सः) सो (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (रेवत्) बहुत धन करनेवाला सब विद्या के श्रवण को (दीदिहि) प्रकाशित करे ॥ ५ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। पूर्व मन्त्र से (श्रवः) इस पद की अनुवृत्ति आती है। जैसे बिजुली प्रसिद्ध पावक सूर्य अग्नि सब मूर्तिमान् द्रव्य को प्रकाश करता है, वैसे सर्वविद्यावित् सत्पुरुष सब विद्या का प्रकाश करता है ॥ ५ ॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. पूर्व मंत्राने (श्रवः) या पदाची अनुवृत्ती होते. जसा विद्युत पावकरूपी सूर्य सर्व मूर्तिमान द्रव्यांना प्रकाशित करतो तसे सर्व विद्यावित् सत्पुरुष सर्व विद्यांचा प्रकाश करतो. ॥ ५ ॥

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Agni, that brilliant lord of light and knowledge, treasure home of wealth and joy, divine visionary of creation, adorable with holy words, lord of wealth, blazing with flames and flaming with forces, may he ever shine and shine us with knowledge.

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