ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 90/ मन्त्र 1
ऋषिः - गोतमो राहूगणः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
ऋ॒जु॒नी॒ती नो॒ वरु॑णो मि॒त्रो न॑यतु वि॒द्वान्। अ॒र्य॒मा दे॒वैः स॒जोषाः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठऋ॒जु॒ऽनी॒ती । नः॒ । वरु॑णः । मि॒त्रः । न॒य॒तु॒ । वि॒द्वान् । अ॒र्य॒मा । दे॒वैः । स॒ऽजोषाः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋजुनीती नो वरुणो मित्रो नयतु विद्वान्। अर्यमा देवैः सजोषाः ॥
स्वर रहित पद पाठऋजुऽनीती। नः। वरुणः। मित्रः। नयतु। विद्वान्। अर्यमा। देवैः। सऽजोषाः ॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 90; मन्त्र » 1
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 1
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अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स विद्वान् मनुष्येषु कथं वर्त्तेतेत्युपदिश्यते।
अन्वयः
यथेश्वरो धार्मिकमनुष्यान् धर्म्मं नयति, तथा देवैः सजोषा वरुणो मित्रोऽर्य्यमा विद्वानृजुनीती नोऽस्मान् धर्मविद्यामार्गं नयतु ॥ १ ॥
पदार्थः
(ऋजुनीती) ऋजुः सरला शुद्धा चासौ नीतिश्च तया। अत्र सुपां सुलुगिति तृतीयायाः पूर्वसवर्णादेशः। (नः) अस्मान् (वरुणः) श्रेष्ठगुणस्वभावः (मित्रः) सर्वोपकारी (नयतु) प्रापयतु (विद्वान्) अनन्तविद्य ईश्वर आप्तमनुष्यो वा (अर्य्यमा) न्यायकारी (देवैः) दिव्यैर्गुणकर्मस्वभावैर्विद्वद्भिर्वा (सजोषाः) समानप्रीतिसेवी ॥ १ ॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। परमेश्वर आप्तमनुष्यो वा सत्यविद्याग्रहणस्वभावपुरुषार्थिनं मनुष्यमनुत्तमे धर्मक्रिये च प्रापयति नेतरम् ॥ १ ॥
हिन्दी (1)
विषय
अब नब्बेवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में फिर वह विद्वान् मनुष्यों में कैसे वर्त्ताव करे, यह उपदेश किया है ॥
पदार्थ
जैसे परमेश्वर धार्मिक मनुष्यों को धर्म प्राप्त कराता है, वैसे (देवैः) दिव्य गुण, कर्म और स्वभाववाले विद्वानों से (सजोषाः) समान प्रीति करनेवाला (वरुणः) श्रेष्ठ गुणों में वर्त्तने (मित्रः) सबका उपकारी और (अर्यमा) न्याय करनेवाला (विद्वान्) धर्मात्मा सज्जन विद्वान् (ऋजुनीती) सीधी नीति से (नः) हम लोगों को धर्मविद्यामार्ग को (नयतु) प्राप्त करावे ॥ १ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। परमेश्वर वा आप्त मनुष्य सत्यविद्या के ग्राहक स्वभाववाले पुरुषार्थी मनुष्य को उत्तम धर्म और उत्तम क्रियाओं को प्राप्त कराता है, और को नहीं ॥ १ ॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात अध्ययन अध्यापन करणाऱ्यांचे व ईश्वराचे कर्तव्य, काम व त्याचे फळ सांगितलेले आहे. यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर मागच्या सूक्ताच्या अर्थाची संगती जाणली पाहिजे. ॥
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. परमेश्वर किंवा आप्त माणूस सत्यविद्या ग्रहण करण्याचा स्वभाव असणाऱ्या पुरुषार्थी माणसाला उत्तम धर्म व उत्तम क्रिया प्राप्त करवून देतो, इतरांना नाही. ॥ १ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May God, Lord Omniscient, Varuna, lord of justice and worthy of our intelligent choice, Mitra, lord of universal friendship, and the man of knowledge, wisdom and divine vision bless us with a natural simple and honest way of living. May Aryama, lord of justice and dispensation, bless us with a straight way of living without pretence. May He, lord of love who loves us and whom we love bless us with the company of noble, generous and brilliant people in humanity, and may He grant us the benefit of such generous powers of nature.
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