ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 91/ मन्त्र 7
त्वं सो॑म म॒हे भगं॒ त्वं यून॑ ऋताय॒ते। दक्षं॑ दधासि जी॒वसे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । सो॒म॒ । म॒हे । भग॑म् । त्वम् । यूने॑ । ऋ॒त॒ऽय॒ते । दक्ष॑म् । द॒धा॒सि॒ । जी॒वसे॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं सोम महे भगं त्वं यून ऋतायते। दक्षं दधासि जीवसे ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम्। सोम। महे। भगम्। त्वम्। यूने। ऋतऽयते। दक्षम्। दधासि। जीवसे ॥ १.९१.७
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 91; मन्त्र » 7
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।
अन्वयः
हे सोम त्वमयं च ऋतायते महे यूने भगं तथा त्वं जीवसे दक्षं दधासि तस्मात्सर्वैः संगमनीयः ॥ ७ ॥
पदार्थः
(त्वम्) विद्यासौभाग्यप्रदः (सोम) सोमायं वा (महे) महापूज्यगुणाय (भगम्) विद्या श्रीसमूहम् (त्वम्) (यूने) ब्रह्मचर्य्यविद्याभ्यां शरीरात्मनोर्युवावस्थां प्राप्ताय (ऋतायते) आत्मन ऋतं विज्ञानमिच्छते (दक्षम्) बलम् (दधासि) (जीवसे) जीवितुम् ॥ ७ ॥
भावार्थः
अत्र श्लेषालङ्कारः। नहि मनुष्याणां परमेश्वरस्य विदुषामोषधीनां च सेवनेन विना सुखं भवितुमर्हति तस्मादेतत्सर्वैर्नित्यमनुष्ठेयम् ॥ ७ ॥
हिन्दी (4)
विषय
फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।
पदार्थ
हे (सोम) परमेश्वर ! वा सोम अर्थात् औषधियों का समूह (त्वम्) विद्या और सौभाग्य के देनेहारे आप वा यह सोम (ऋतायते) अपने को विशेष ज्ञान की इच्छा करनेहारे (महे) अति उत्तम गुणयुक्त (यूने) ब्रह्मचर्य्य और विद्या से शरीर और आत्मा की तरुण अवस्था को प्राप्त हुए ब्रह्मचारी के लिये (भगम्) विद्या और धनराशि तथा (त्वम्) आप (जीवसे) जीने के अर्थ (दक्षम्) बल को (दधासि) धारण कराने से सबको चाहने योग्य हैं ॥ ७ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। मनुष्यों को परस्पर विद्वान् और ओषधियों के सेवन के विना सुख होने को योग्य नहीं है, इससे यह आचरण सबको नित्य करने योग्य है ॥ ७ ॥
पदार्थ
पदार्थ = हे सोम! ( त्वम् ) = आप ( ऋतायते ) = विशेष ज्ञान की इच्छा करने हारे ( महे ) = महापूज्यगुणयुक्त ( यूने ) = ब्रह्मचर्य्य और विद्या से तरुण अवस्था को प्राप्त हुए ब्रह्मचारी के लिए ( भगम् ) = अनेक प्रकार के ऐश्वर्य को तथा ( त्वम् ) = आप ( जीवसे ) जीने के लिए ( दक्षम् ) = बल को ( दधासि ) = धारण कराते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ = शान्तिप्रद सोम! आप, श्रेष्ठगुणयुक्त और ब्रह्मचर्यादि साधन सम्पन्न जिज्ञासु अपने भक्त को, अनेक प्रकार का ऐश्वर्य और बहुत काल तक जीने के लिए बल प्रदान करते हो। आपकी भक्ति और ब्रह्मचर्य्यादि साधनों के बिना कोई चिरंजीवी नहीं हो सकता, न ही लोक परलोक में सुखी हो सकता है।
विषय
दीर्घजीवन के लिए क्या करें
पदार्थ
१. हे (सोम) = शान्त प्रभो ! (त्वम्) = आप (महे) = [मह पूजायाम्] पूजा की वृत्तिवाले के लिए (भगम्) = सेवनीय धन को (दधासि) = धारण करते हो । जो भी व्यक्ति आपकी प्रेरणाओं के अनुसार अपने नियत कर्मों को करता हुआ आपका पूजन करता है, उसके लिए आप जीवन के लिए आवश्यक धन देते ही हैं । 'तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमावहो हरिः' [गीता ९/२२] । (त्वम्) = आप (यूने) = [यु मिश्रणामिश्रण] अपने साथ भद्र को जोड़नेवाले और अभद्र को अपने से पृथक् करनेवाले के लिए (ऋतायते) = अपने साथ ऋत - यज्ञ को जोड़नेवाले के लिए (दक्षम्) = बल को (दधासि) = धारण करते हैं ताकि (जीवसे) = यह उत्तम जीवन बिता पाये, दीर्घजीवी हो सके । ३. दीर्घजीवन के लिए धन व बल दोनों ही आवश्यक हैं । इस भौतिक शरीर को दीर्घकाल तक ले - चलने के लिए 'धन' बाह्य साधन है और 'बल' आन्तरिक साधन । दोनों के होने पर ही दीर्घजीवन सम्भव है । इन्हें प्राप्त करने के लिए हमें 'महे, यूने व ऋतायते' शब्द संकेत कर रहे हैं कि हम [क] पूजा की वृत्तिवाले बनें, [ख] गुणों का ग्रहण व दोषों का त्याग करें, [ग] अपने साथ ऋत - यज्ञ का सम्बन्ध स्थापित करें ।
भावार्थ
भावार्थ = पूजा की वृत्तिवाले, गुणग्राही [दोषत्यागी], यज्ञशील बनकर हम धन व बल प्राप्त करें ताकि दीर्घजीवनवाले बन सकें ।
विशेष / सूचना
सूचना = दीर्घजीवन के लिए हमारा पुरुषार्थ 'महे, यूने व ऋतायते' शब्दों से सूचित हो रहा है । छठे मन्त्र में प्रभुकृपा का उल्लेख था, प्रस्तुत मन्त्र में जीव के पुरुषार्थ का ।
विषय
पक्षान्तर में उत्पादक परमेश्वर और विद्वान् का वर्णन ।
भावार्थ
हे (सोम ) सर्वोत्पादक परमेश्वर ! सर्वप्रेरक राजन् ! ( त्वं ) तू ( महे ) महान् ( यूने ) युवा, बलवान् ( ऋतयते ) सत्यज्ञान, बल और शासन व्यवस्था को चाहने वाले पुरुष को ( भगं ) सेवन करने योग्य ऐश्वर्य, ( दधासि ) धारण कराता है और ( जीवसे ) दीर्घ जीवन के लिये ( दक्षं दधासि ) बल और सामर्थ्य प्रदान करता है । (२) सोमरस और शुक्र युवा पुरुष को कान्ति और बल देते हैं । (२) राजा युवा पुरुषों को अधिकार ऐश्वर्य और जीविका के लिये अन्न वृत्ति देता है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोतमो रहूगणपुत्र ऋषिः ॥ सोमो देवता ॥ छन्दः—१, ३, ४ स्वराट्पङ्क्तिः ॥ - २ पङ्क्तिः । १८, २० भुरिक्पङ्क्तिः । २२ विराट्पंक्तिः । ५ पादनिचृद्गायत्री । ६, ८, ९, ११ निचृद्गायत्री । ७ वर्धमाना गायत्री । १०, १२ गायत्री। १३, १४ विराङ्गायत्री । १५, १६ पिपीलिकामध्या निचृद्गायत्री । १७ परोष्णिक् । १९, २१, २३ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ त्रयोविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. माणसांनी विद्वानांचे व औषधांचे सेवन करावे त्याशिवाय सुख मिळू शकत नाही. त्यामुळे असे आचरण सर्वांनी सदैव करावे. ॥ ७ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
For the great and young and the devotee of simplicity, nature and universal law, you bring science and expertise and great wealth of special knowledge for life, well-being and full age.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How is Soma is taught further in the seventh Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
(1) O Soma (God the Giver of knowledge and all kinds of prosperity,) Thou bestowest upon him who is endowed with admirable virtues and who desires to have true knowledge, whether young or old robust body and powerful soul through Brahmacharya and knowledge wealth, wisdom and strength that he may live long and happy. (2) It is also applicable to learned persons of peaceful nature and Soma plant that gives energy to live long.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(भगम्) विद्याश्रीसमूहम (यूने) ब्रह्मचर्यविद्याभ्यां शरीरात्मनोर्युवावस्थां प्राप्ताय = To the young of robust body and powerful soul by the observance of Brahmacharya and Vidya (true knowledge).
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
There is Shleshalankara in this Mantra, no man can attain happiness without the adoration of God, without serving learned persons and taking in Soma and other herbs properly. Therefore, all this must ever be done by all.
बंगाली (1)
পদার্থ
ত্বং সোম মহে ভগং ত্বং যূন ঋতায়তে।
দক্ষং দধাসি জীবসে ।।৭০।।
(ঋগ্বেদ ১।৯১।৭)
পদার্থঃ (সোম) হে পরমাত্মা! (ত্বম্) তুমি (ঋতায়তে) বিশেষ জ্ঞানের ইচ্ছাকারী (মহে) মহান ও পূজ্যগুণযুক্ত (যূন) ব্রহ্মচর্য ও বিদ্যা অর্জন করে তরুণ হওয়া ব্রহ্মচারীর জন্য (ভগম্) অনেক প্রকারের ঐশ্বর্যকে [ধারণ করাও]। (ত্বম্) তুমি (জীবসে) জীবন ধারণের জন্য (দক্ষম্) বলকে (দধাসি) ধারণ করাও।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে শান্তিপ্রদ সোম! তুমি তোমার শ্রেষ্ঠ গুণযুক্ত এবং ব্রহ্মচর্যাদি সাধন সম্পন্ন জিজ্ঞাসু ভক্তকে অনেক প্রকারের ঐশ্বর্য এবং বহুকাল পর্যন্ত জীবন ধারণের জন্য বল প্রদান করে থাক। তোমার প্রতি ভক্তি ও ব্রহ্মচর্যাদি সাধন ব্যতীত কেউ চিরঞ্জীবী হতে পারেন না, আর না পারেন ইহজন্ম ও পরজন্মে সুখী হতে।।৭০।।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal