Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 10 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 10/ मन्त्र 11
    ऋषिः - यमी वैवस्वती देवता - यमो वैवस्वतः छन्दः - पादनिचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    किं भ्राता॑स॒द्यद॑ना॒थं भवा॑ति॒ किमु॒ स्वसा॒ यन्निॠ॑तिर्नि॒गच्छा॑त् । काम॑मूता ब॒ह्वे॒३॒॑तद्र॑पामि त॒न्वा॑ मे त॒न्वं१॒॑ सं पि॑पृग्धि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    किम् । भ्राता॑ । अ॒स॒त् । यत् । अ॒ना॒थम् । भवा॑ति । किम् । ऊँ॒ इति॑ । स्वसा॑ । यत् । निःऽऋ॑तिः । नि॒ऽगच्छा॑त् । काम॑ऽमूता । ब॒हु । ए॒तत् । र॒पा॒मि॒ । त॒न्वा॑ । मे॒ । त॒न्व॑म् । सम् । पि॒पृ॒ग्धि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    किं भ्रातासद्यदनाथं भवाति किमु स्वसा यन्निॠतिर्निगच्छात् । काममूता बह्वे३तद्रपामि तन्वा मे तन्वं१ सं पिपृग्धि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    किम् । भ्राता । असत् । यत् । अनाथम् । भवाति । किम् । ऊँ इति । स्वसा । यत् । निःऽऋतिः । निऽगच्छात् । कामऽमूता । बहु । एतत् । रपामि । तन्वा । मे । तन्वम् । सम् । पिपृग्धि ॥ १०.१०.११

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 10; मन्त्र » 11
    अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 8; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    हे दिवस ! दैवकृत आपत्ति से शरीर संयोगसंबन्ध में (किम्) क्या अब आप (भ्राता) भाई (असत्) हो गये हो ? (यत्) जिससे इस प्रकार (अनाथम्) आपकी ओर से अनाथता-अपतिपन (भवाति) हो जावे, और जो मैं तेरी पत्नी हूँ (किमु) क्या इस समय (स्वसा-असत्) बहिन हो गयी (यत्) जिस से (निर्ऋतिः) बिना संभोग के (निगच्छात्) मेरी काया से अपनी काया को (काममूता) सम्पृक्त कर अर्थात् मिलादे ॥११॥

    भावार्थ

    सन्तानोपत्ति या गर्भाधान की स्थापना में असमर्थ स्त्री-पुरुष भाई बहन की भाँति रहें ॥११॥ समीक्षा (सायणभाष्य)−“यस्मिन् भ्रातरि सति स्वसादिकमनाथं नाथरहितं भवाति-भवति स भ्राता किमसत् किं भवति न भवतीत्यर्थः किं च यस्यां भगिन्यां सत्यां भ्रातरं निर्ऋतिर्दुःखं निगच्छात् नियमेन गच्छति प्राप्नोति सा किमु किंवा भवति।” इस स्थान पर सायण की खींचतान की कोई सीमा नहीं रह गई। “अनाथम्” क्रियाविशेषण को ‘स्वसा’ का विशेषण करता है परन्तु ‘अनाथम्’ शब्द नपुंसकलिङ्ग है और ‘स्वसा’ शब्द स्त्रीलिङ्ग है, इसलिए ‘आदिकम्’ शब्द अधिक जोड़कर ‘स्वसादिकम्’ लिखता है। यहाँ पर क्या भ्राता के साथ स्वसा से भिन्न-व्यक्ति का भी सम्बन्ध है, जो ‘आदिकम्’ पद अधिक जोड़ा है ? यदि ‘आदिकम्’ से ‘दुहिता’ ‘माता’ भी सम्बन्ध रखते हैं, तब तो भ्राता नहीं होगा, अपितु दुहिता के साथ पिता और माता के साथ पुत्र का सम्बन्ध होगा, अतः यह कल्पना निर्बल है। तथा ‘वह ऐसा भ्राता न होने के बराबर ही है, जिसके होते हुए बहिन अनाथ रहे’ यह हेतु भी निरथर्क है, क्योंकि वह यम उस यमी को अविवाहित रहने का उपदेश तो दे ही नहीं रहा था। अपितु पूर्व मन्त्र में आज्ञा दे चुका था “अन्यमिच्छस्व सुभगे पतिं मत्” फिर कैसे इस मिथ्या हेतु की वेद में स्थापना है ? इसी प्रकार ‘वह बहिन भी कुछ नहीं, जिसके होते हुए भाई को दुःख प्राप्त हो’, यह हेतु भी अयुक्त है। उस यम को क्या दुःख था ? क्या उसका कोई विवाह नहीं करता था ? अथवा वह महादरिद्र था, जिससे उसको दूसरी स्त्री न मिल सकती हो। इन हेतुओं को सामान्य बुद्धि के व्यक्ति भी स्वीकार नहीं कर सकते। इस प्रकार अपनी कल्पनासिद्धि के लिए सायण को अनावश्यक खींचतान करनी पड़ी ॥११॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    हे दिवस ! ‘दैवकृतापत्त्या’ शरीरसंयोग-सम्बन्धे भवान् (किं भ्राता-असत्) अधुना किं भ्राता-अभवत् ? “अस् भुवि” [अदादिः] लङि रूपम् “बहुलं छन्दसि” [अष्टा० २।४।७३] इत्यनेन शपो लुग्न भवति तथाडागमोऽपि न “बहुलं छन्दस्यमाङ्योगेऽपि” [अष्टा० ६।४।७५] (यत्-अनाथम्) अविद्यमानो नाथो यस्मिन् तदनाथं नाथराहित्यमपतित्वमिति यावत्-क्रियाविशेषणञ्चैतत् “नञ्सुभ्याम्” [अष्टा० ६।२।१७२] अनेन चान्तोदात्तत्वम्। (भवाति) भवेत् “लिङर्थे लेट्” [अष्टा० ३।४।७] (किम् उ) किञ्चाहं ते पत्नी (स्वसा-असत्) अभवत्, असदित्यनेनान्वयः, (यत्) यतः (निर्ऋतिः) निः-रतिः-रतिमन्तरेण सम्भोगेन विना “निर्ऋतिर्निरमणात्” [निरु० २।७] अत्र   रम् धातोः क्तिनि “बहुलं छन्दसि” [अष्टा० ६।१।३४] अनेन सम्प्रसारणं (निगच्छात्) पुरुषान्तरं गच्छेत् “लिङर्थे लेट्” [अष्टा० ३।४।७] (काममूता) कामेन बद्धा कामग्रस्ता-कामवशा “मूङ्” [भ्वादिः] ‘मूञ्’ क्र्यादिरुभावपि बन्धनेऽर्थे, (बहु-एतत्-रपामि) बहुप्रकारेण हावभावाभ्यामेतद्रपामि-निवेदयामि यत् (मे तन्वा तन्वम्) मम शरीरेण स्वशरीरं (सं पिपृग्धि) सम्पृक्तं कुरु-संयोजय ॥११॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Yami: What? then have you become as a brother to me? And I, deprived of love and care, become a sister, bereft, going away elsewhere in search of another? Lovelorn, I am babbling so much, pray join me, body with body. (Are you just a complementary support and I just a complementary way farer, nothing more?)

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    संतानोत्पत्ती किंवा गर्भाधानाच्या स्थापनेमध्ये असमर्थ स्त्री-पुरुषांनी भावा-बहिणीप्रमाणे राहावे. ॥११॥

    टिप्पणी

    समीक्षा - (सायणभाष्य) ‘‘यस्मिन भ्रातरि सति स्वसादिक मनाथं नाथरहितं भवाति-भवति स भ्रातो किमसत् किं भवति न भवतीत्यर्थ: किंच यस्यां भगिन्यां सत्यां भ्रातरं निऋर्तिर्दु:खं निगच्छात् नियमेन गच्छति प्राप्नोति सा किमु किंवा भवति’’ । या स्थानी सायणच्या ओढाताणीची कोणती सीमा राहिली नाही. ‘अनाथम्’ क्रियाविशेषणाला ‘स्वसा’चे विशेषण लावतो; परंतु ‘अनाथम्’ शब्द नपुंसक लिङ्ग आहे व ‘स्वसा’ शब्द स्त्रीलिंग आहे. त्यासाठी ‘आदिकम्’ शब्द अधिक जोडून ‘स्वसादिकम्’ लिहितो. येथे काय भ्राताबरोबर स्वसाचा भिन्न व्यक्तीशी संबंध आहे. जो ‘आदिकम्’ शब्द अधिक जोडलेला आहे१ जर ‘आदिकम्’शी ‘दुहिता’, ‘माता’ही संबंध ठेवतात तेव्हा तर भ्राता नसेल. एवढेच नव्हे तर दुहिताबरोबर पिता व माताबरोबर पुत्राचा संबंध होईल. त्यासाठी ही कल्पना निर्बल आहे, तसेच तो असा भ्राता नसल्यासारखा असेल, जो असतानाही बहीण अनाथ असेल. हा हेतूही निरर्थक आहे कारण तो यम यमीला अविवाहित राहण्याचा उपदेश तर देतच नव्हता. एवढेच नव्हे तर पूर्व मंत्रात आज्ञा दिलेली होती. ‘‘अन्यमिच्छस्व सुभगे पतिं मत’’ मग या मिथ्या हेतूची वेदात कशी स्थापना आहे? त्याच प्रकारे ती बहीणही काहीच नाही जिच्यामुळे भावाला दु:ख व्हावे. हा हेतूही अयोग्य आहे. त्या यमाला काय दु:ख होते? त्याचे लग्न होत नव्हते काय? किंवा महादरिद्री होता. ज्यामुळे त्याला दुसरी मिळू शकत नव्हती. हा हेतू सामान्य बुद्धीची व्यक्तीसुद्धा स्वीकरू शकत नाहीत. या प्रकारे आपल्या कल्पना सिद्धीसाठी सायणला अनावश्यक ओढाताण करावी लागली.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top