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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 100 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 100/ मन्त्र 10
    ऋषिः - दुवस्युर्वान्दनः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    ऊर्जं॑ गावो॒ यव॑से॒ पीवो॑ अत्तन ऋ॒तस्य॒ याः सद॑ने॒ कोशे॑ अ॒ङ्ग्ध्वे । त॒नूरे॒व त॒न्वो॑ अस्तु भेष॒जमा स॒र्वता॑ति॒मदि॑तिं वृणीमहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऊर्ज॑म् । गा॒वः॒ । यव॑से । पीवः॑ । अ॒त्त॒न॒ । ऋ॒तस्य॑ । याः । सद॑ने । कोशे॑ । अ॒ङ्ध्वे । त॒नूः । ए॒व । त॒न्वः॑ । अ॒स्तु॒ । भे॒ष॒जम् । आ । स॒र्वऽता॑तिम् । अदि॑तिम् । वृ॒णी॒म॒हे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऊर्जं गावो यवसे पीवो अत्तन ऋतस्य याः सदने कोशे अङ्ग्ध्वे । तनूरेव तन्वो अस्तु भेषजमा सर्वतातिमदितिं वृणीमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऊर्जम् । गावः । यवसे । पीवः । अत्तन । ऋतस्य । याः । सदने । कोशे । अङ्ध्वे । तनूः । एव । तन्वः । अस्तु । भेषजम् । आ । सर्वऽतातिम् । अदितिम् । वृणीमहे ॥ १०.१००.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 100; मन्त्र » 10
    अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 17; मन्त्र » 4
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (ग्रावः) स्तुतिवाणियाँ (यवसे) मिश्रणयोग्य (ऋतस्य सदने कोशे) सत्यस्वरूप के अन्तःसदन गुप्त हृदय में (पीवः) प्रवृद्ध-बढ़े हुए (ऊर्जम्) रस को (अत्तन) ग्रहण करो (याः) जो तुम (अङ्गध्वे) अङ्गी होवो-एकाङ्ग होवो (तनूः-एव) जैसे आत्मा ही (तन्वः-भेषजम्-अस्तु) आत्मा का सुख होता है तथा जीवात्मा का परमात्मा सुख है (सर्वतातिम्०) पूर्ववत् ॥१०॥

    भावार्थ

    स्तुतियाँ सत्यस्वरूप परमात्मा के सदन हृदय में एकाङ्ग हो जाती हैं मिल जाती हैं, ऐसे ही आत्मा परमात्मा में मिलकर सुख प्राप्त करता है, उस जगद्विस्तारक अनश्वर को मानना अपनाना चाहिये ॥१०॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (गावः) स्तुतिवाचः (यवसे) मिश्रणयोग्ये (ऋतस्य सदने कोशे) सत्यस्वरूपस्य-अन्तःसदने गुप्ते हृदये (पीवः-ऊर्जम्) प्रवृद्धं रसं (अत्तन) गृह्णीत (याः-अङ्ध्वे) या यूयमङ्गीभवत (तनूः-एव तन्वः-भेषजम्-अस्तु) यथा आत्मा हि खल्वात्मनः सुखं भवति, आत्मा परमात्मा सुखं तथा आत्मनो जीवात्मने “आत्मा वै तनूः” [श० ६।७।२।६] लडर्थे लोट् “भेषजं सुखनाम” [निघ० ३।६] (सर्वतातिम्०) पूर्ववत् ॥१०॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O cows, knowledge, wisdom and culture, just as cows feed on grass in the pasture, drink from the water reservoir, grow and produce energy giving milk, similarly, O holy words of wisdom and knowledge, feed on whatever you find in the house of eternal truth on the flow, and in the depth of the heart core of spirit, grow abundant with light and energy, and let the body of language be the medicinal corrective and sanative for the body of knowledge and culture. We honour the universal imperishable Mother Nature and mother Ila and Sarasvati for our mother land, Mahi and Bharati, for universal progress of knowledge and culture.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    स्तुती सत्यस्वरूप परमेश्वराच्या हृदयात मिसळून जाते. तसेच आत्मा परमात्म्यामध्ये मिळून जातो व सुख प्राप्त करतो. त्या विश्वविस्तारक अनश्वराला अंगीकारले पाहिजे. ॥१०॥

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