ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 104/ मन्त्र 11
ऋषिः - अष्टको वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
शु॒नं हु॑वेम म॒घवा॑न॒मिन्द्र॑म॒स्मिन्भरे॒ नृत॑मं॒ वाज॑सातौ । शृ॒ण्वन्त॑मु॒ग्रमू॒तये॑ स॒मत्सु॒ घ्नन्तं॑ वृ॒त्राणि॑ सं॒जितं॒ धना॑नाम् ॥
स्वर सहित पद पाठशु॒नम् । हु॒वे॒म॒ । म॒घऽवा॑नम् । इन्द्र॑म् । अ॒स्मिन् । भरे॑ । नृऽत॑मम् । वाज॑ऽसातौ । शृ॒ण्वन्त॑म् । उ॒ग्रम् । ऊ॒तये॑ । स॒मत्ऽसु॑ । घ्नन्त॑म् । वृ॒त्राणि॑ । स॒म्ऽजित॑म् । धना॑नाम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ । शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम् ॥
स्वर रहित पद पाठशुनम् । हुवेम । मघऽवानम् । इन्द्रम् । अस्मिन् । भरे । नृऽतमम् । वाजऽसातौ । शृण्वन्तम् । उग्रम् । ऊतये । समत्ऽसु । घ्नन्तम् । वृत्राणि । सम्ऽजितम् । धनानाम् ॥ १०.१०४.११
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 104; मन्त्र » 11
अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 25; मन्त्र » 6
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अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 25; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अस्मिन् भरे) इस जीवनसंग्राम में (वाजसातौ) अन्नभोगप्राप्ति के निमित्त (शुनं मघवानं नृतमम्) सुखकर धनवाले सर्वोपरि नायक को तथा (शृण्वन्तम्-उग्रम्) सुननेवाले-प्रतापी (समत्सु) संकटस्थलों में (वृत्राणि घ्नन्तम्) पापों को नष्ट करते हुए (धनानां सञ्जितम्) धनों के सम्यक् जय के निमित्त (इन्द्रम्) परमात्मा को (ऊतये हुवेम) रक्षा के लिये आमन्त्रित करते हैं ॥१८॥
भावार्थ
जीवनसंग्राम में अन्नभोगप्राप्ति की आवश्यकता को पूरी करनेवाले प्रसिद्ध नायक प्रतापी तापनाशक परमात्मा का स्मरण करना चाहिए ॥१८॥
विषय
भरे नृतमम्
पदार्थ
[१] गत मन्त्र के अनुसार 'वीरेण्य' बनकर हम (शुनम्) = उस आनन्दस्वरूप प्रभु को (हुवेम) = पुकारते हैं। जो प्रभु (मघवानम्) = ऐश्वर्यवाले हैं, (इन्द्रम्) = सर्वशक्तिमान् हैं। (अस्मिन् भरे) = में - इस जीवन-संग्राम (नृतमम्) = हमारे सर्वोत्तम नेता हैं। इस प्रभु को हम (वाजसातौ) = शक्ति प्राप्ति के निमित्त पुकारते हैं। [२] उन प्रभु को, जो (शृण्वन्तम्) = हमारी प्रार्थना को सुनते हैं । (उग्रम्) = तेजस्वी हैं। ऊतये हम अपने रक्षण के लिए इन्हें पुकारते हैं । जो प्रभु (समत्सु) = संग्रामों में (वृत्राणि घ्नन्तम्) = वासनाओं का संहार कर रहे हैं और (धनानां सञ्जितम्) = हमारे लिए विविध धनों को जीतनेवाले हैं ।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु को ही पुकारें। वे हमें युद्ध में विजयी बनाकर ऐश्वर्यों को प्राप्त कराते हैं । सम्पूर्ण सूक्त का केन्द्रीभूत विचार यही है कि मनोनिरोध से हम प्रभु की ओर झुकें, वासनाओं को नष्ट करके सोम का रक्षण करें। यह सोम ही हमें 'वीरेण्य' बनायेगा । इस सोम के रक्षण से रोगकृमियों का संहार करनेवाला 'कौत्स' है 'कुथ हिंसायाम्' । यह 'दुष्टात् प्रमीतेः जायते ' =अपने को दुष्ट मृत्यु से बचानेवाला 'दुर्मित्र' है सभी के साथ उत्तमता से स्नेह करने के कारण 'सुमित्र' है [शोभनं मेद्यति] । यही अगले सूक्त का ऋषि है। यह प्रार्थना करता है कि-
विषय
सर्वप्रार्थना सुनने हारे प्रभु की पुकार।
भावार्थ
व्याख्या देखो (म० १०। सू० ८९। मं० १८) इति पञ्चविंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिरष्टको वैश्वामित्रः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्द:- १, २, ७, ८, ११ त्रिष्टुप्। ३, ४ विराट् त्रिष्टुप्। ५, ६, १० निचृत् त्रिष्टुप्। ९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अस्मिन् भरे वाजसातौ) अस्मिन् जीवनसंग्रामे अन्नभोगप्राप्तये (शुनं मघवानं नृतमम्) सुखकरं धनवन्तं सर्वोपरिनायकं तथा (शृण्वन्तम्-उग्रम्) श्रोतारं प्रतापिनं (समत्सु वृत्राणि घ्नन्तम्) संकटस्थलेषु पापानि नाशयन्तं (धनानां-संजितम्) धनानां सम्यग् जयनिमित्तं (इन्द्रम्-ऊतये हुवेम) परमात्मानं रक्षणायाह्वामहे ॥१८॥
इंग्लिश (1)
Meaning
We invoke and adore Indra, lord of bliss, glorious, best of men and leaders, in this our battle of life for protection, victory and further progress. He is the best listener, illustrious, blazing in battles, destroyer of the demons of darkness and winner of wealth and honours.
मराठी (1)
भावार्थ
जीवनाच्या संघर्षात अन्नभोगाच्या प्राप्तीची आवश्यकता पूर्ण करणाऱ्या प्रसिद्ध नायक पराक्रमी तापनाशक परमेश्वराचे स्मरण केले पाहिजे. ॥११॥
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