ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 132/ मन्त्र 4
ऋषि: - शकपूतो नार्मेधः
देवता - मित्रावरुणौ
छन्दः - पादनिचृत्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
अ॒साव॒न्यो अ॑सुर सूयत॒ द्यौस्त्वं विश्वे॑षां वरुणासि॒ राजा॑ । मू॒र्धा रथ॑स्य चाक॒न्नैताव॒तैन॑सान्तक॒ध्रुक् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒सौ । अ॒न्यः । अ॒सु॒र॒ । सू॒य॒त॒ । द्यौः । त्वम् । विश्वे॑षाम् । व॒रु॒ण॒ । अ॒सि॒ । राजा॑ । मू॒र्धा । रथ॑स्य । चा॒क॒न् । न । ए॒ताव॑ता । एन॑सा । अ॒न्त॒क॒ऽध्रुक् ॥
स्वर रहित मन्त्र
असावन्यो असुर सूयत द्यौस्त्वं विश्वेषां वरुणासि राजा । मूर्धा रथस्य चाकन्नैतावतैनसान्तकध्रुक् ॥
स्वर रहित पद पाठअसौ । अन्यः । असुर । सूयत । द्यौः । त्वम् । विश्वेषाम् । वरुण । असि । राजा । मूर्धा । रथस्य । चाकन् । न । एतावता । एनसा । अन्तकऽध्रुक् ॥ १०.१३२.४
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 132; मन्त्र » 4
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 20; मन्त्र » 4
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अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 20; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (1)
पदार्थ
(असौ) वह (अन्यः) अन्य मित्र अध्यापक या प्राण (असुरः) अज्ञान का फेंकनेवाला या दोष के फेंकनेवाला (द्यौः-सूयत) द्यौ के समान ज्ञानप्रकाशदाता या कान्तिदाता है (त्वं वरुण) हे वरुण ! उपदेशक या अपान ! (विश्वेषां राजा-असि) सब जनों में राजमान है (रथस्य मूर्धा) रमणीय जनसमूह का मूर्धास्थानीय है (अन्तकध्रुक्) तुम्हारे में प्रत्येक मृत्यु का विरोधी है (एतावता-एनसा) इतने पाप से या दोष से परिमाण में आने को (न चाकन्) नहीं चाहता है ॥४॥
भावार्थ
अज्ञान को हटानेवाला अध्यापक या दोष को हटानेवाला प्राण द्युलोक के समान प्रकाशदाता या कान्तिदाता है और उपदेशक तथा अपान राजा के समान आश्रय देनेवाला है, इस प्रकार रमणीय जनसमूह का मूर्धारूप सत्कार करने योग्य प्रत्येक अध्यापक और उपदेशक प्रत्येक प्राण और अपान मृत्यु के विरोधी हैं ॥४॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(असौ-अन्यः-असुरः-द्यौः-सूयत) सोऽन्यो मित्रः-अध्यापकः-प्राणो वा, अज्ञानस्य प्रक्षेपकः-दोषस्य प्रक्षेपकः प्राणो वा द्यौरिवासि ज्ञानप्रकाशदाता कान्तिदाता वाऽसि (त्वं वरुण विश्वेषां राजा-असि) हे वरुण उपदेशक, अपान ! वा सर्वेषां जनानां राजमानोऽसि (रथस्य मूर्धा) रमणीयजनसमुदायस्य प्रत्येकं मित्रः-वरुणः, मूर्धा वाऽसि (अन्तकध्रुक्) युवयोः प्रत्येकम्-अन्तकस्य नाशकस्य द्रोग्धा दूरीकर्त्ताऽसि (एतावता-एनसा न चाकन्) इयत्तया परिमातुं शक्यया पापेन दोषेण वा न कामयसे ॥४॥
English (1)
Meaning
O Mitra, sun, life giving light and pranic energy, that other, mother Infinity, has given you birth. O Varuna, breath of life and cosmic air, you are the ruler and life giver of the world. You, Mitra-Varuna, are the head of the chariot of life, the cosmic yajna. You are the antidote of death. Let not our yajna be vitiated even by a remote touch of sin.
मराठी (1)
भावार्थ
अज्ञान हटविणारा अध्यापक किंवा दोष हटविणारा प्राण द्युलोकाप्रमाणे प्रकाशदाता किंवा कांतिदाता असतो व उपदेशक आणि अपान राजाप्रमाणे आश्रय देणारा असतो. या प्रकारे रमणीय जनसमूहाचा मूर्धारूप सत्कार करण्यायोग्य प्रत्येक अध्यापक व उपदेशक, प्रत्येक प्राण व अपान मृत्यू विरोधी असतात. ॥४॥
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