ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 139/ मन्त्र 1
ऋषि: - विश्वावसुर्देवगन्धर्वः
देवता - सविता
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
सूर्य॑रश्मि॒र्हरि॑केशः पु॒रस्ता॑त्सवि॒ता ज्योति॒रुद॑याँ॒ अज॑स्रम् । तस्य॑ पू॒षा प्र॑स॒वे या॑ति वि॒द्वान्त्स॒म्पश्य॒न्विश्वा॒ भुव॑नानि गो॒पाः ॥
स्वर सहित पद पाठस॒ूर्य॑ऽरश्मिः । हरि॑ऽकेशः । पु॒रस्ता॑त् । स॒वि॒ता । ज्योतिः॑ । उत् । अ॒या॒न् । अज॑स्रम् । तस्य॑ । पू॒षा । प्र॒ऽस॒वे । या॒ति । वि॒द्वान् । स॒म्ऽपश्य॑न् । विश्वा॑ । भुव॑नानि । गो॒पाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
सूर्यरश्मिर्हरिकेशः पुरस्तात्सविता ज्योतिरुदयाँ अजस्रम् । तस्य पूषा प्रसवे याति विद्वान्त्सम्पश्यन्विश्वा भुवनानि गोपाः ॥
स्वर रहित पद पाठसूर्यऽरश्मिः । हरिऽकेशः । पुरस्तात् । सविता । ज्योतिः । उत् । अयान् । अजस्रम् । तस्य । पूषा । प्रऽसवे । याति । विद्वान् । सम्ऽपश्यन् । विश्वा । भुवनानि । गोपाः ॥ १०.१३९.१
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 139; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
Acknowledgment
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
Acknowledgment
विषय - इस सूक्त में परमात्मा सब लोकों में व्याप्त है, सबको जानता है, सबकी कामनाएँ पूरी करता है, सूर्य सबको प्रकाशित करता है, इत्यादि विषय हैं।
पदार्थ -
(सूर्यरश्मिः) सूर्य की व्याप्ति के समान व्याप्ति जिसकी है, ऐसा (हरिकेशः) अन्धकारहरणशील या अज्ञानहरणशील किरणें जिसकी हैं, वह ऐसा (सविता) देवों का प्रसविता परमात्मा या प्रातः उदय होनेवाला सूर्य (पुरस्तात्-उत् अयान्) सृष्टि से पूर्व प्रसिद्ध होता हुआ या पूर्व दिशा में उदय होता हुआ (अजस्रं-ज्योतिः) न क्षीण होनेवाला ज्योति-निरन्तर ज्योतिस्वरूप है (तस्य प्रसवे) उसके प्रशासन में या प्रेरणा में (पूषा) वायु रहता है (विद्वान् गोपाः) विद्वान् रक्षक (विश्वा भुवनानि) सारे भूतों को (सम्पश्यन् याति) जानता हुआ या प्रकाशित करता हुआ प्राप्त होता है ॥१॥
भावार्थ - परमात्मा की व्याप्ति सारे जगत् में सूर्यप्रकाश के समान व्याप्त है, वह अज्ञान को नष्ट करनेवाला सृष्टि से पूर्व निरन्तर ज्योतिस्वरूप है, उसके शासन में बलवान् वायु जैसे पदार्थ वर्तमान हैं, वह सब प्राणियों के कर्मों को जानता है एवं सूर्य व्याप्त तेजवाला अन्धकारनाशक पूर्व-दिशा में उदय होनेवाला अक्षीणज्योति वायु का प्रेरक सब वस्तुओं का प्रकाशक है ॥१॥
Bhashya Acknowledgment
विषयः - अस्मिन् सूक्ते परमात्मा सर्वान् लोकान् व्याप्नोति सर्वान् जानाति च सर्वेषां कामान् पूरयति, सूर्यः सर्वान् प्रकाशयति प्रेरयति चेत्येवमादयो विषयाः सन्ति।
पदार्थः -
(सूर्यरश्मिः) सूर्यस्य रश्मिर्व्याप्तिरिव व्याप्तिर्यस्य सः “अश्नोतेरशच्-मिः” [उणादि० ४।४६] (हरिकेशः) हरणशीलास्तमोऽज्ञानहरण- शीलाः केशाः किरणाः यस्य सः (सविता) देवानां प्रसविता परमात्मा प्रातरुदेता-आदित्यो वा (पुरस्तात्-उदयान्) सृष्टेः पूर्वं प्रसिद्धो भवन् पूर्वं दिशि वा खलूदयन् “दीर्घश्छान्दसः” यः (अजस्रं ज्योतिः) निरन्तरं-ज्योतिःस्वरूपोऽस्ति (तस्य प्रसवे पूषा) तस्य प्रशासने प्रेरणे वा वायुः “अयं वै पूषा योऽयं वातः पवते” एष हि सर्वं पुष्यति वर्तते [श० १४।२।१।९] (विद्वान् गोपाः विश्वा भुवनानि सम्पश्यन्-याति) सः सविता विद्वान् यद्वा ज्ञायमानो दृश्यमानो रक्षकः सर्वाणि भूतानि जानन् प्रकाशयन् वा सर्वान् प्राप्नोति ॥१॥
Bhashya Acknowledgment
Meaning -
Savita, eternal light of life, wearing the rays of the sun, golden haired, is risen there from the east. On his rise in the world of his creation, Pusha, living energy of divinity for life forms on earth, rises, seeing, blessing and promoting all regions of the world as protector of life and its activity.
Bhashya Acknowledgment
भावार्थ - परमात्म्याची व्याप्ती संपूर्ण जगात सूर्यप्रकाशाप्रमाणे व्याप्त आहे. तो अज्ञान नष्ट करणारा असून सृष्टीच्या पूर्वी निरंतर ज्योतिस्वरूप आहे. त्याच्या शासनात बलवान वायूसारखे पदार्थ वर्तमान आहेत. तो सर्व प्राण्यांच्या कर्मांना जाणतो व सूर्य सर्वत्र व्याप्त तेज असणारा, अंधकारनाशक, पूर्व दिशेत उदित होणारी अक्षीण ज्योती, वायूचा प्रेरक, सर्व वस्तूंचा प्रकाशक आहे. ॥१॥
Bhashya Acknowledgment
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Dhiman
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal
Bhashya Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Smt. Shrutika Shevankar
Conversion to Unicode/OCR By:
N/A
Donation for Typing/OCR By:
Various
First Proofing By:
Smt. Premlata Agarwal
Second Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Third Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal
Bhashya Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Smt. Shrutika Shevankar
Conversion to Unicode/OCR By:
N/A
Donation for Typing/OCR By:
Various
First Proofing By:
Smt. Premlata Agarwal
Second Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Third Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal
Bhashya Acknowledgment
Book Scanning By:
N/A
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Sri Durga Prasad Agarwal, Smt. Nageshwari, & Sri Arnob Ghosh
Donation for Typing/OCR By:
Committed by Sri Navinn Seksaria
First Proofing By:
Pending
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Pending
Databasing By:
Sri Virendra Agarwal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal
Bhashya Acknowledgment
Book Scanning By:
N/A
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Dhiman
Donation for Typing/OCR By:
Dhananjay Joshi
First Proofing By:
Pending
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Virendra Agarwal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal