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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 149 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 149/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अर्चन्हैरण्यस्तुपः देवता - सविता छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    गाव॑ इव॒ ग्रामं॒ यूयु॑धिरि॒वाश्वा॑न्वा॒श्रेव॑ व॒त्सं सु॒मना॒ दुहा॑ना । पति॑रिव जा॒याम॒भि नो॒ न्ये॑तु ध॒र्ता दि॒वः स॑वि॒ता वि॒श्ववा॑रः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गावः॑ऽइव । ग्राम॑म् । यूयु॑धिःऽइव । अश्वा॑न् । वा॒श्राऽइ॑व । व॒त्सम् । सु॒ऽमनाः॑ । दुहा॑ना । पतिः॑ऽइव । जा॒याम् । अ॒भि । नः॒ । नि । ए॒तु॒ । ध॒र्ता । दि॒वः । स॒वि॒ता । वि॒श्वऽवा॑रः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गाव इव ग्रामं यूयुधिरिवाश्वान्वाश्रेव वत्सं सुमना दुहाना । पतिरिव जायामभि नो न्येतु धर्ता दिवः सविता विश्ववारः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गावःऽइव । ग्रामम् । यूयुधिःऽइव । अश्वान् । वाश्राऽइव । वत्सम् । सुऽमनाः । दुहाना । पतिःऽइव । जायाम् । अभि । नः । नि । एतु । धर्ता । दिवः । सविता । विश्वऽवारः ॥ १०.१४९.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 149; मन्त्र » 4
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 7; मन्त्र » 4
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (गावः-इव) गौवें जैसे (ग्रामम्) बाहर चर करके ग्राम को प्राप्त होती हैं (यूयुधिः-अश्वान्) योद्धा जन जैसे घोड़ों को प्राप्त होता है (दुहाना सुमनाः) दुहने योग्य अच्छे मनवाली (वाश्रा-इव) कामना करती हुई गौ जैसे (वत्सम्) बछड़े को प्राप्त करती है (पतिः-इव) पति जैसे (जायाम्-अभि) पत्नी को प्राप्त होता है (विश्ववारः) विश्व को वरनेवाला (दिवः-धर्ता) मोक्ष को धारण करनेवाला (सविता) परमात्मा (नः-नि-एतु) हमें नितरां प्राप्त हो ॥४॥

    भावार्थ

    बाहर से चरकर गौवें जैसे ग्राम को प्राप्त होती हैं, योद्धा घोड़ों को, दुहने योग्य अच्छे मनवाली गौ जैसे बछड़े को, पति पत्नी को प्राप्त होता है, ऐसे ही विश्व को वरनेवाला मोक्ष को धारण करनेवाला परमात्मा उपासकों को अवश्य प्राप्त होता है ॥४॥

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    विषय

    प्रभु की प्राप्ति

    पदार्थ

    [१] (नः अभि) = हमारी ओर (नि एतु) = निश्चय से प्राप्त हो। वह (दिवः धर्ता) = द्युलोक व सूर्य का धारण करनेवाला, (सविता) = सबका उत्पादक, (विश्ववार:) = सब से वरण के योग्य प्रभु हमें इस प्रकार प्राप्त हो, (इव) = जैसे कि (गावः) = गौवें (ग्रामम्) = ग्राम को प्राप्त होती हैं। हम कभी भी प्रभु की आँख से ओझल न हों। [२] हमें प्रभु इस प्रकार प्राप्त हों, (इव) = जैसे कि (यूयुधिः) = एक योद्धा (अश्वान्) = अश्वों को प्राप्त होता है। एक योद्धा से अधिष्ठित अश्व विजय को प्राप्त होता है, इसी प्रकार प्रभु से अधिष्ठित हम विजयी हों। [३] इस प्रकार हमें प्रभु प्राप्त हों (इव) = जैसे कि (वाश्रा) = शब्द करती हुई (सुमनाः) = उत्तम मनवाली (दुहाना:) = दूध देनेवाली गौ (वत्सम्) = बछड़े को प्राप्त होती है। हमें प्रभु ज्ञानोपदेश दें, हम प्रभु के लिये वत्स तुल्य प्रिय हों। [४] इस प्रकार प्रभु हमें प्राप्त हों (इव) = जैसे कि (पतिः जायाम्) = पति-पत्नी को प्राप्त होता है। पति पत्नी का रक्षण करता है, हम प्रभु से रक्षणीय हों ।

    भावार्थ

    भावार्थ - वह विश्ववरणीय प्रभु हमें प्राप्त हों। उस प्रकार प्राप्त हों जैसे गौवें ग्राम को, योद्धा अश्वों को, रम्भाती हुई गौ बछड़े को तथा पति-पत्नी को प्राप्त होता है ।

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    विषय

    गौ, योद्धा, गौवत्स पति-पत्नी आदि के समान प्रभु के प्रति प्रेम-प्रदर्शन।

    भावार्थ

    (गावः इव ग्रामम्) गौएं जिस प्रकार अपने समूह, भोजन या ग्राम को शीघ्र ही चली जाती हैं, और (युयुधिः इव अश्वान्) योद्धा जिस प्रकार अश्वों, या सवारों को प्राप्त करता है, और (वाश्राः इव वत्सम्) गौएं जिस प्रकार प्रेम से बछड़े के प्रति (दुहानाः) दूध स्त्रवित करती हुई हैं, (पतिः इव जायाम् अभि न) और पति जिस प्रकार अपनी पत्नी को प्राप्त करता है, (दिवः धर्त्ता) महान् आकाश का धारण करने वाला (सविता) जगत् का उत्पादक प्रभु (विश्व-वारः) सब से वरण करने योग्य, सर्वश्रेष्ठ ईश्वर (नः नि एतु) हमें उक्त सब प्रकारों से, सर्वथा प्राप्त हो।

    टिप्पणी

    ग्रामः—ग्रसन्ति अत्र इति ग्रामः इति नारायणः उणादिवृत्याम्।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः अर्चन् हैरण्यस्तूपः॥ सविता देवता॥ छन्द:– १, ४ भुरिक् त्रिष्टुप्। २, ५ विराट् त्रिष्टुप्। ३ निचृत् त्रिष्टुप्। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (गावः-इव ग्रामम्) यथा गावो बहिश्चरित्वा ग्राममभिगच्छन्ति (यूयुधिः-अश्वान्) योद्धाऽश्वानभिगच्छति “युध सम्प्रहारे” [दिवादि०] ततः-“आदृगमहनजनः किकिनौ लिट् च” [अष्टा० ३।२।१७१] “उत्सर्गश्छन्दसि’ इति वार्तिकेन किन् प्रत्ययः” (दुहाना सुमनाः-वाश्रा-इव वत्सम्) यथा दोग्ध्री दुह्यमाना शोभनमनस्का कामयमाना स्ववत्समागच्छति (पतिः-इव जायाम्-अभि) यथा पतिः स्वभार्यामभिगच्छति, तद्वत् (विश्ववारः-दिवः-धर्ता सविता नः-नि-एतु) विश्वं वृणुते यः स विश्ववारो दिवो मोक्षस्य धारयिता सविता परमात्माऽस्मान् नितरामभिगच्छतु ॥४॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Just as cows hasten to the village, the warrior takes to the horse, loving mother cow anxious at heart runs to the calf for milk, the husband goes to the wife for love, so may Savita, sustainer of the heavenly world, love of all humanity, come and bless us as his children.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    गायी जशा बाहेर चरून गावात येतात, योद्धे जसे घोडे बाळगतात. दोहन करण्यायोग्य गायी जशा वासराजवळ येतात व पती पत्नीला प्राप्त करतो, तसेच विश्वाला धारण करणारा, मोक्षाला धारण करणारा परमात्मा उपासकांना प्राप्त होतो. ॥४॥

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