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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 18 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 18/ मन्त्र 10
    ऋषिः - सङ्कुसुको यामायनः देवता - पितृमेधः छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    उप॑ सर्प मा॒तरं॒ भूमि॑मे॒तामु॑रु॒व्यच॑सं पृथि॒वीं सु॒शेवा॑म् । ऊर्ण॑म्रदा युव॒तिर्दक्षि॑णावत ए॒षा त्वा॑ पातु॒ निॠ॑तेरु॒पस्था॑त् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑ । स॒र्प॒ । मा॒तर॑म् । भूमि॑म् । ए॒ताम् । उ॒रु॒ऽव्यच॑सम् । पृ॒थि॒वीम् । सु॒ऽशेवा॑म् । ऊर्ण॑ऽम्रदाः । यु॒व॒तिः । दक्षि॑णाऽवते । ए॒षा । त्वा॒ । पा॒तु॒ । निःऽऋ॑तेः । उ॒पऽस्था॑त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उप सर्प मातरं भूमिमेतामुरुव्यचसं पृथिवीं सुशेवाम् । ऊर्णम्रदा युवतिर्दक्षिणावत एषा त्वा पातु निॠतेरुपस्थात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उप । सर्प । मातरम् । भूमिम् । एताम् । उरुऽव्यचसम् । पृथिवीम् । सुऽशेवाम् । ऊर्णऽम्रदाः । युवतिः । दक्षिणाऽवते । एषा । त्वा । पातु । निःऽऋतेः । उपऽस्थात् ॥ १०.१८.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 18; मन्त्र » 10
    अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (एताम्-उरुव्यचसं पृथिवीं सुशेवां भूमिं मातरम्-उपसर्प) हे जीव ! जन्म धारण करने के लिये तू इस बहुत प्रकार से जीव व्यक्तियों को प्रकट करनेवाली विस्तृत और अनुकूलता की सम्पादिका भूमि रूपी माता को प्राप्त हो (दक्षिणावते-एषा युवतिः-ऊर्णम्रदाः) स्वकर्मफल शरीर के धारण योग्य जीव के लिये यह युवति की भाँति या बीज को अपने अन्दर मिलानेवाली कृषिभूमि की भाँति (निर्ऋतेः-उपस्थात् त्वा पातु) मृत्युरूप घोर आपत्ति के आञ्चल से तेरी रक्षा करे ॥१०॥

    भावार्थ

    आरम्भ सृष्टि में सब जीवों की एकमात्र माता पृथिवी ही होती है। अत एव उस समय मनुष्यों की भी अमैथुनी सृष्टि होती है। नानाभेदों से मनुष्यादि शरीरों का प्रादुभार्व होता है। आरम्भ सृष्टि में पृथ्वी युवति जैसी या कृषिभूमि जैसी कोमल होती है ॥१०॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (एताम्-उरुव्यचसं पृथिवीं सुशेवां भूमिं मातरम्-उपसर्प) हे जीव ! जन्म धारयितुं योग्यां त्वमेतां बहुशरीर-व्यक्ति-निर्मात्रीं पृथिवीं सुखसम्पादिकां भूमिं मातरमुपगच्छाश्रयस्व (दक्षिणावते-एषा युवतिः-ऊर्णम्रदाः) स्वकर्मफल-शरीरधारण योग्यजीवायैषा युवतिरिव यद्वा बीजं स्वान्तरे मिश्रयती कृषिभूमिरिव ऊर्णवन्मृद्वी भवति (निर्ऋतेः-उपस्थात् त्वा पातु) मृत्युरूपायाः कृच्छ्रापत्तेः “निर्ऋतिर्निरमणादृच्छतेः कृच्छ्रापत्तिः” [निरु०२।८] उपाश्रयात् त्वां रक्षतु ॥१०॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O man, go to this land, this motherly earth wide and expansive, kind and gracious. Soft, generous and youthful for the man of generosity and yajnic dedication, she would protect you from the clutches of adversity and premature death and promote you with prosperity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    सृष्टीच्या आरंभी सर्व जीवांची एकमेव माता पृथ्वीच होती. त्यावेळी माणसांची ही अमैथुनी सृष्टी होती. नाना प्रकारच्या भेदाने माणसाच्या शरीराचा प्रादुर्भाव होतो. सृष्टीच्या आरंभी पृथ्वी युवतीप्रमाणे किंवा कृषिभूमीप्रमाणे कोमल होती. ॥१०॥

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