ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 43/ मन्त्र 10
गोभि॑ष्टरे॒माम॑तिं दु॒रेवां॒ यवे॑न॒ क्षुधं॑ पुरुहूत॒ विश्वा॑म् । व॒यं राज॑भिः प्रथ॒मा धना॑न्य॒स्माके॑न वृ॒जने॑ना जयेम ॥
स्वर सहित पद पाठगोभिः॑ । त॒रे॒म॒ । अम॑तिम् । दुः॒ऽएवा॑म् । यवे॑न । क्षुध॑म् । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । विश्वा॑म् । व॒यम् । राज॑ऽभिः । प्र॒थ॒मा । धना॑नि । अ॒स्माके॑न । वृ॒जने॑न । ज॒ये॒म॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
गोभिष्टरेमामतिं दुरेवां यवेन क्षुधं पुरुहूत विश्वाम् । वयं राजभिः प्रथमा धनान्यस्माकेन वृजनेना जयेम ॥
स्वर रहित पद पाठगोभिः । तरेम । अमतिम् । दुःऽएवाम् । यवेन । क्षुधम् । पुरुऽहूत । विश्वाम् । वयम् । राजऽभिः । प्रथमा । धनानि । अस्माकेन । वृजनेन । जयेम ॥ १०.४३.१०
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 43; मन्त्र » 10
अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 5
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अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
हिन्दी (1)
पदार्थ
(पुरुहूत) हे बहुत आह्वान करने योग्य राजन् (गोभिः-दुरेवाम्-अमतिम्) वेदवाणियों से दुःख प्राप्त करानेवाली अज्ञान बुद्धि को (यवेन विश्वां क्षुधम्) अन्न से समस्त भूख को (तरेम) पार करें-निवृत्त करें (राजभिः प्रथमा धनानि) आप जैसे राजाओं से प्रमुख धनों को प्राप्त करें (अस्माकेन वृजनेन जयेम) तथा हम अपने बल से विजय प्राप्त करें ॥१०॥
भावार्थ
राष्ट्र की प्रजाएँ शासकों की सहायता से धनसम्पत्ति का उपार्जन करें। अपने बल से अपने कार्यों में सफलता प्राप्त करें। विविध भोजनों से क्षुधा की निवृत्ति करें एवं नाना विद्याओं के अध्ययन से अज्ञानबुद्धि को दूर करें ॥१०॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पुरुहूत) हे बहुह्वातव्य राजन् ! (गोभिः-दुरेवाम्-अमतिम्) वेदवाग्भिर्दुःखप्रापिकामज्ञानबुद्धिम् (यवेन विश्वां क्षुधम्) अन्नेन सर्वां क्षुधम् (तरेम) पारयेम (राजभिः प्रथमा धनानि) भवादृशैः शासकैः प्रमुखानि धनानि (अस्माकेन वृजनेन जयेम) तथा स्वकीयेनास्मदीयेन बलेन जयेम-जयं प्राप्नुयाम ॥१०॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Let us dispel the darkness of ignorance with the communication of universal knowledge, let us remove the world’s hunger with food production, let us reclaim our original wealth of knowledge, power and prosperity with our innate lights and enlightened actions.
मराठी (1)
भावार्थ
राष्ट्रातील प्रजेने शासकाच्या साह्याने धनसंपत्तीचे उपार्जन करावे. आपल्या बलाने आपल्या कार्यात सफलता प्राप्त करावी. विविध भोजनांनी क्षुधेची निवृत्ती करावी व नाना विद्येच्या अध्ययनाने अज्ञानबुद्धी दूर करावी. ॥१०॥
टिप्पणी
या दोन मंत्रांची व्याख्या बेचाळिसाव्या सूक्तात यापूर्वीच केलेली आहे.
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