ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 70/ मन्त्र 10
ऋषिः - सुमित्रो वाध्र्यश्चः
देवता - आप्रियः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
वन॑स्पते रश॒नया॑ नि॒यूया॑ दे॒वानां॒ पाथ॒ उप॑ वक्षि वि॒द्वान् । स्वदा॑ति दे॒वः कृ॒णव॑द्ध॒वींष्यव॑तां॒ द्यावा॑पृथि॒वी हवं॑ मे ॥
स्वर सहित पद पाठवन॑स्पते । र॒श॒नया॑ । नि॒ऽयूय॑ । दे॒वाना॑म् । पाथः॑ । उप॑ । व॒क्षि॒ । वि॒द्वान् । स्वदा॑ति । दे॒वः । कृ॒णव॑त् । ह॒वींषि॑ । अव॑ताम् । द्यावा॑पृथि॒वी इति॑ । हव॑म् । मे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वनस्पते रशनया नियूया देवानां पाथ उप वक्षि विद्वान् । स्वदाति देवः कृणवद्धवींष्यवतां द्यावापृथिवी हवं मे ॥
स्वर रहित पद पाठवनस्पते । रशनया । निऽयूय । देवानाम् । पाथः । उप । वक्षि । विद्वान् । स्वदाति । देवः । कृणवत् । हवींषि । अवताम् । द्यावापृथिवी इति । हवम् । मे ॥ १०.७०.१०
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 70; मन्त्र » 10
अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 22; मन्त्र » 5
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अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 22; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
हिन्दी (1)
पदार्थ
(वनस्पते) हे वननीय सुख विशेष के रक्षक परमात्मन् ! तू (रशनया) व्यापनशक्ति से (नियूय) उसे नियन्त्रित कर (देवानां पाथः) विद्वानों के भोग को (विद्वान्-उपवक्षि) जानता हुआ प्राप्त कराता है (देवः-हवींषि कृणवत्) वह परमात्मदेव अन्न आदि को उत्पन्न करता है (स्वदाति) और जीवों को स्वाद से खिलाता है (द्यावापृथिवी मे हवम्-अवताम्) द्यावापृथिवीमय जगत् मेरे भोज्य की रक्षा करे ॥१०॥
भावार्थ
परमात्मा प्राणियों के भोग की रक्षा करता है। अपनी व्यापनशक्ति से उसे नियन्त्रित करके विद्वानों तक पहुँचाता है और प्राणियों को भोग्यपदार्थ प्रदान करता है। अन्नादि उत्पन्न करके खिलाता है ॥१०॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वनस्पते) हे वननीय सुखविशेषस्य पालक ! परमात्मन् ! त्वं (रशनया) व्यापनशक्त्या (नियूय) तन्नियन्त्रय तत्र (देवानां पाथः-विद्वान्-उपवक्षि) विदुषां भोगं जानन्-उपवहसि प्रापयसि (देवः-हवींषि कृणवत्) स परमात्मदेवः, अन्नादीनि-उत्पादयत् (स्वदाति) जीवान् स्वादयति भोजयति (द्यावापृथिवी मे हवम्-अवताम्) द्यावापृथिवीमयं जगत् खलु मे तद् भोज्यं रक्षतु ॥१०॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O lord of vanaspatis, life giving sun rays, and herbs, trees and forests which provide food for living beings, you are the light giver, all watching and energising, you create the food for divinities and give it the right form for their living systems. The generous lord of light makes the food palatable and thus forms the sacred materials as food for the living yajna of life’s evolution. May heaven and earth listen to my voice of prayer and exhortation and bless us with the right forms of food for us and for our yajna and protect us.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा प्राण्यांच्या भोगांचे रक्षण करतो. आपल्या व्यापन शक्तीने ते नियंत्रित करून विद्वानांपर्यंत पोचवितो व प्राण्यांना भोग्यपदार्थ प्रदान करतो. अन्न इत्यादी उत्पन्न करून खाण्याची व्यवस्था करतो. ॥१०॥
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