ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 71/ मन्त्र 10
सर्वे॑ नन्दन्ति य॒शसाग॑तेन सभासा॒हेन॒ सख्या॒ सखा॑यः । कि॒ल्बि॒ष॒स्पृत्पि॑तु॒षणि॒र्ह्ये॑षा॒मरं॑ हि॒तो भव॑ति॒ वाजि॑नाय ॥
स्वर सहित पद पाठसर्वे॑ । न॒न्द॒न्ति॒ । य॒शसा॑ । आऽग॑तेन । स॒भा॒ऽसा॒हेन॑ । सख्या॑ । सखा॑यः । कि॒ल्बि॒ष॒ऽस्पृत् । पि॒तु॒ऽसणिः॑ । हि । ए॒षा॒म् । अर॑म् । हि॒तः । भव॑ति । वाजि॑नाय ॥
स्वर रहित मन्त्र
सर्वे नन्दन्ति यशसागतेन सभासाहेन सख्या सखायः । किल्बिषस्पृत्पितुषणिर्ह्येषामरं हितो भवति वाजिनाय ॥
स्वर रहित पद पाठसर्वे । नन्दन्ति । यशसा । आऽगतेन । सभाऽसाहेन । सख्या । सखायः । किल्बिषऽस्पृत् । पितुऽसणिः । हि । एषाम् । अरम् । हितः । भवति । वाजिनाय ॥ १०.७१.१०
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 71; मन्त्र » 10
अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 24; मन्त्र » 5
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अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 24; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
हिन्दी (1)
पदार्थ
(सर्वे सखायः) ज्ञान से समानयोग्यतावाले विद्वानों (सभासहेन) विद्वत्सभा को प्रभावित करनेवाले ज्ञान से (यशसा) यशस्वी (आगतेन) प्राप्त (सख्या) समानख्यानवाले-वेदज्ञानवाले हस्तगत जिसके है, ऐसे महान् विद्वान् के द्वारा (नन्दन्ति) आनन्द को अनुभव करते हैं। इनके मध्य में (किल्बिषस्पृत् पितुषणिः) पापकारी के साथ स्पर्धा करता है ज्ञानान्नसम्भाजक (वाजिनाय-अरं भवति) वाग्ज्ञेय के लिये समर्थ होता है ॥१०॥
भावार्थ
जो मनुष्य वेदज्ञान के द्वारा विद्वानों की सभा को प्रभावित करता है, अन्य विद्वानों की योग्यता से लाभ उठाता है, अज्ञानरूप पाप से संघर्ष करता है, वह वेदवाणी के ज्ञान में समर्थ होता है ॥१०॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सर्वे सखायः) सर्वे समानख्यानाः-वेदज्ञानेन समानाः-विद्वांसः (सभासहेन) सभां विद्वत्सभां यः सहते तत्र ज्ञानप्राबल्येन प्रभावयति तेन (यशसा) यशस्विना “मतुब्लोपश्छान्दसः” (आगतेन) प्राप्तेन (सख्या) समानख्यानवता वेदज्ञानहस्तगतेन महाविदुषा (नन्दन्ति) आनन्दमनुभवन्ति (किल्बिषस्पृत्-पितुषणिः) एतेषां मध्ये पापकारिणा सह स्पर्द्धते स किल्बिषस्पृत्-ज्ञानान्नं सम्भाजकः “पितुः-अन्ननाम” [निघ० २।७] (वाजिनाय-अरं भवति) वाग्ज्ञेयाय “वाजिनेषु वाग्ज्ञेयेषु” [निरु० १।२०] समर्थो भवति ॥१०॥
इंग्लिश (1)
Meaning
All friends feel happy and celebrate with a learned person who comes as a friend with honour, reputation and social prestige, and such a person, eliminator of sin and evil, provider of food and knowledge, rises to the position of leadership among them, being good for their honour and enlightenment.
मराठी (1)
भावार्थ
जो मनुष्य वेदज्ञानाद्वारे विद्वानांची सभा प्रभावित करतो तो योग्य विद्वानांकडून लाभ घेतो. अज्ञानरूपी पापाबरोबर संघर्ष करतो, तो वेदवाणीच्या ज्ञानाने समर्थ होतो. ॥१०॥
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