ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 71/ मन्त्र 2
सक्तु॑मिव॒ तित॑उना पु॒नन्तो॒ यत्र॒ धीरा॒ मन॑सा॒ वाच॒मक्र॑त । अत्रा॒ सखा॑यः स॒ख्यानि॑ जानते भ॒द्रैषां॑ ल॒क्ष्मीर्निहि॒ताधि॑ वा॒चि ॥
स्वर सहित पद पाठसक्तु॑म्ऽइव । तित॑ऽउना । पु॒नन्तः॑ । यत्र॑ । धीराः॑ । मन॑सा । वाच॑म् । अक्र॑त । अत्र॑ । सखा॑यः । स॒ख्यानि॑ । जा॒न॒ते॒ । भ॒द्रा । ए॒षा॒म् । ल॒क्ष्मीः । निहि॑ता । अधि॑ । वा॒चि ॥
स्वर रहित मन्त्र
सक्तुमिव तितउना पुनन्तो यत्र धीरा मनसा वाचमक्रत । अत्रा सखायः सख्यानि जानते भद्रैषां लक्ष्मीर्निहिताधि वाचि ॥
स्वर रहित पद पाठसक्तुम्ऽइव । तितऽउना । पुनन्तः । यत्र । धीराः । मनसा । वाचम् । अक्रत । अत्र । सखायः । सख्यानि । जानते । भद्रा । एषाम् । लक्ष्मीः । निहिता । अधि । वाचि ॥ १०.७१.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 71; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 23; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 23; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (1)
पदार्थ
(सक्तुम्-इव) सक्तु को (तितउना पुनन्तः) छालनी से शोधते हुए के समान (धीराः-मनसा) बुद्धिमान् या ध्यानशील मनसे (यत्र वाचम्-अक्रत) जहाँ वाणी को प्रकट करते हैं (अत्र) वहाँ वाग्विषय में (सखायः) वाग्विज्ञान के साथ समान ख्यान-आनुभविक ज्ञान को प्राप्त होते हैं (सख्यानि) यथार्थ ताद्भाव्य को अनुभव करते हैं (एषाम्-अधिवाचि) इन परम ऋषियों की वाणी में (भद्रा लक्ष्मीः-निहिता) कल्याणकारी अन्यों से लक्षणीय ज्ञान-सम्पत्ति निहित होती है ॥२॥
भावार्थ
परम ऋषि महानुभाव वाग्विषय को भली-भाँति शोधकर अपने अन्दर धारण करते हैं। वाणी के यथार्थ ज्ञान के साथ उनकी तन्मयता हो जाती है। ज्ञानसम्पत्ति की वे रक्षा करते हैं ॥२॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सक्तुमिव तितउना पुनन्तः) सक्तुं यथा परिपवनेन शोधयन्ति तद्वच्छोधयन्तः (धीरा मनसा यत्र वाचम्-अक्रत) “धीः-प्रज्ञानम्” धीः प्रज्ञानाम [निघ० ३।९] तद्वन्तः, यद्वा धी ध्यानं तद्वन्तो ध्यानावस्थां गतवन्तः परमर्षयः मनसाऽन्तःकरणेन प्रकटीकुर्वन्ति (अत्र) तत्र (वाचि) वाग्विषये (सखायः) समानख्यानाः-वाग्विज्ञानेन सह सख्यमानुभविकं ज्ञानं प्राप्ताः (सख्यानि) यथार्थं ताद्भाव्यं सञ्जानते (एषाम्-अधि वाचि भद्रा लक्ष्मीः-निहिता) एषां परमर्षीणां वाण्यां कल्याणकारी खल्वन्यैर्लक्षणीया वाञ्छनीया ज्ञानसम्पत्तिर्निहिता भवति। अर्थोऽयं निरुक्तानुसारी ॥२॥
इंग्लिश (1)
Meaning
When the sages of patient and transparent mind, with their thought and imagination, conceive, visualise and articulate the divine word, crystallising it to the state of purity as they sift the grain of truth from the chaff of local variety, then the friends and associates come to know of the idea and the word and the union of word and meaning in communication, and then noble and holy is their knowledge manifested and received from the depth of the sage’s language.
मराठी (1)
भावार्थ
परम ऋषी वाग्विषयांना चांगल्या प्रकारे संस्कारित करून आपल्यामध्ये धारण करतात. वाणीच्या यथार्थ ज्ञानाबरोबर ते तन्मय होतात. ज्ञानसंपत्तीचे रक्षण करतात. ॥२॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Dhiman
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal