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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 80 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 80/ मन्त्र 5
    ऋषि: - अग्निः सौचीको वैश्वानरो वा देवता - अग्निः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒ग्निमु॒क्थैॠष॑यो॒ वि ह्व॑यन्ते॒ऽग्निं नरो॒ याम॑नि बाधि॒तास॑: । अ॒ग्निं वयो॑ अ॒न्तरि॑क्षे॒ पत॑न्तो॒ऽग्निः स॒हस्रा॒ परि॑ याति॒ गोना॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्निम् । उ॒क्थैः । ऋष॑यः । वि । ह्व॒य॒न्ते॒ । अ॒ग्निम् । नरः॑ । याम॑नि । बा॒धि॒तासः॑ । अ॒ग्निम् । वयः॑ । अ॒न्तरि॑क्षे । पत॑न्तः । अ॒ग्निः । स॒हस्रा॑ । परि॑ । या॒ति॒ । गोना॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निमुक्थैॠषयो वि ह्वयन्तेऽग्निं नरो यामनि बाधितास: । अग्निं वयो अन्तरिक्षे पतन्तोऽग्निः सहस्रा परि याति गोनाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्निम् । उक्थैः । ऋषयः । वि । ह्वयन्ते । अग्निम् । नरः । यामनि । बाधितासः । अग्निम् । वयः । अन्तरिक्षे । पतन्तः । अग्निः । सहस्रा । परि । याति । गोनाम् ॥ १०.८०.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 80; मन्त्र » 5
    अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 15; मन्त्र » 5
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (ऋषयः) दर्शनशील उपासकजन (उक्थैः) वेदवचनों तथा स्तुतिवचनों के द्वारा (अग्निम्) परमात्मा को (विह्वयन्ते) विशेषरूप से आमन्त्रित करते हैं (बाधितासः-नरः) कामादि दोषों से पीड़ित जन (यामनि) अवसर पर (अग्निम्) परमात्मा को स्मरण करते हैं (अन्तरिक्षे पतन्तः-वयः-अग्निम्) आकाश में उड़ते हुए पक्षियों की भाँति उन्नतिपथ की ओर जाते हुए परमात्मा की उपासना करते हैं (अग्निः) परमात्मा (गोनां सहस्रा) वेदवाणियों के सहस्र प्रयोजनों को (परियाति) परिप्राप्त कराता है ॥५॥

    भावार्थ

    कामादि दोषों से पीड़ित जन परमात्मा का स्मरण करें, उन्नति की ओर चलनेवाले जन उसकी उपासना करें, परमात्मदर्शन के इच्छुक महानुभाव वेदवचनों से उस का आमन्त्रण करें, इस प्रकार उन के सहस्रगुणित प्रयोजनों को परमात्मा प्राप्त कराता है ॥५॥

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (ऋषयः-उक्थैः-अग्निं विह्वयन्ते) दर्शनशीला उपासकाः वेदवचनैः परमात्मानं विशिष्टतया आमन्त्रयन्ते (बाधितासः-नरः-अग्निं यामनि) कामादिदोषैर्बाधिता जना अवसरे परमात्मानं स्मरन्ति (अन्तरिक्षे पतन्तः-वयः-अग्निम्) अन्तरिक्षे गच्छन्तः पक्षिण इव उन्नतिपथगा जना उपासन्ते (अग्निः-गोनां सहस्रा परियाति) परमात्मा वेदवाचां सहस्राणि प्रयोजनानि परिप्रापयति “अन्तर्गतणिजर्थः” ॥५॥

    English (1)

    Meaning

    Seers invoke Agni with the chant of sacred hymns. People in crisis on the journey onward call on Agni for help and guidance. Like birds flying up in the sky, sages on the way higher up towards the heavens or deep in awareness in the mind adore Agni. Agni, indeed, pervades and transcends a thousand abodes of light and life and inspires and enlightens the souls that seek and find.

    मराठी (1)

    भावार्थ

    काम इत्यादी दोषांनी पीडित लोकांनी परमेश्वराचे स्मरण करावे. उन्नती करणाऱ्या लोकांनी त्याची उपासना करावी. परमात्मदर्शन इच्छुकांनी वेदवचनांनी त्याला आमंत्रित करावे. या प्रकारे त्यांच्या हजारो गुणांच्या प्रयोजनांना परमात्मा प्राप्त करवितो. ॥५॥

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