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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 2/ मन्त्र 2
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - अग्निः छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    अ॒भि त्वा॒ नक्ती॑रुष॒सो॑ ववाशि॒रेऽग्ने॑ व॒त्सं न स्वस॑रेषु धे॒नवः॑। दि॒वइ॒वेद॑र॒तिर्मानु॑षा यु॒गा क्षपो॑ भासि पुरुवार सं॒यतः॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । त्वा॒ । नक्तीः॑ । उ॒षसः॑ । व॒वा॒शि॒रे॒ । अग्ने॑ । व॒त्सम् । न । स्वस॑रेषु । धे॒नवः॑ । दि॒वःऽइ॑व । इत् । अ॒र॒तिः । मानु॑षा । यु॒गा । आ । क्षपः॑ । भा॒सि॒ । पु॒रु॒ऽवा॒र॒ । स॒म्ऽयतः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि त्वा नक्तीरुषसो ववाशिरेऽग्ने वत्सं न स्वसरेषु धेनवः। दिवइवेदरतिर्मानुषा युगा क्षपो भासि पुरुवार संयतः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि। त्वा। नक्तीः। उषसः। ववाशिरे। अग्ने। वत्सम्। न। स्वसरेषु। धेनवः। दिवःऽइव। इत्। अरतिः। मानुषा। युगा। आ। क्षपः। भासि। पुरुऽवार। सम्ऽयतः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
    अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे अग्ने स्वसरेषु वत्सं धेनवो न नक्तिरुषसस्त्वाभि ववाशिरे। हे पुरुवार त्वं दिवइवेदरतिर्मानुषा युगा क्षपश्च संयत आ भासि ॥२॥

    पदार्थः

    (अभि) अभितः (त्वा) त्वाम् (नक्तीः) रात्रीः (उषसः) दिनानि (ववाशिरे) शब्दायन्ते (अग्ने) अग्निरिव प्रदीप्त विद्वन् (वत्सम्) (न) इव (स्वसरेषु) गोष्ठेषु (धेनवः) गावः (दिवइव) सूर्यप्रकाशादिव (इत्) एव (अरतिः) प्रापकः (मानुषा) मनुष्याणामिमानि (युगा) युगानि वर्षाणि (क्षपः) निवासहेतवः (भासि) (पुरुवार) बहुभिर्वरणीय (संयतः) सम्यङ् नियमितः ॥२॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यथा गावः स्ववत्सान् प्राप्नुवन्ति तथा कालविभागा विद्वांसं परिश्रमिणं प्राप्नुवन्ति। यतस्तस्य सर्वाणि कार्याणि नियतकालेन संपद्यन्ते। अलसानां कार्याणि कदाचिदपि यथासमयं न भवन्ति परिश्रमिणो विद्वांसो रात्रिसमयानपि कार्य्यकालमाश्रित्य यथेष्टसमयं कार्य्यं कुर्वन्ति। तथा मानुषसम्बन्धि पूर्णायुर्लभन्ते न तु परिश्रमेणायुषो हानिमाप्नुवन्ति ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (अग्ने) अग्नि के तुल्य प्रदीप्त विद्वान् जन ! (स्वसरेषु) गोष्ठों में (वत्सम्) बछड़े को (धेनवः) गौयें (न) जैसे रंभवाती हैं वैसे (नक्तीः) रात्रि और (उषसः) दिन (त्वा) आपको (अभि ववाशिरे) सब ओर से शब्दायमान करते है। अर्थात् प्रत्येक काम के नियत समय में आप अपने शब्दादि व्यवहार को प्राप्त होते हो। हे (पुरुवार) बहुतों को स्वीकार करने योग्य ! आप (दिवइव) सूर्यप्रकाश के समान अपने प्रकाश से (इत्) ही (अरतिः) सर्व व्यवहारों की प्राप्ति करानेवाले (मानुषा) मनुष्य-सम्बन्धी (युगा) युगवर्षों को और (क्षपः) निवास हेतु रात्रि समयों को (संयतः) संयम किये हुए (आ भासि) अच्छे प्रकार प्रकाशमान होते हैं ॥२॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे गौयें अपने बछड़ों को प्राप्त होतीं, वैसे काल-विभाग परिश्रमी विद्वान् जन को प्राप्त होते हैं। जिस कारण उसके सब कार्य नियमयुक्त काल से सिद्ध होते हैं। आलसी जनों के काम कभी भी नियत समय पर नहीं होते। परिश्रमी विद्वान् जन रात्रि के समय को भी अपने कार्य का समय मानकर जैसा चाहते वैसे समय पर कार्य किया करते हैं और मनुष्यसम्बन्धी पूर्णायु को प्राप्त होते हैं किन्तु परिश्रम से आयु की हानि को नहीं प्राप्त होते ॥२॥

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    विषय

    प्रभुस्तवन से प्रकाश की प्राप्ति

    पदार्थ

    १. (न) = जिस प्रकार (धेनवः) = गौवें (स्वसरेषु) = [स्वयं सरणाधिकरणेषु सा०] स्वतन्त्रता से विचरण के आधारभूत गोष्ठों में (वत्सम्) = बछड़े के प्रति शब्द करती हैं, इसी प्रकार प्रजाएँ हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! (त्वा अभि) = आपके प्रति (नक्तीः उषसः) = रात्रि और दिन (ववाशिरे) = प्रार्थना शब्दों को करते हैं। सब प्रजाएँ आपको ही पुकारती हैं । २. हे (पुरुवार) = पालक व पूरक है वरण जिनका ऐसे प्रभो ! आप (इत्) = निश्चय से (दिवः इव अरतिः) = द्युलोक की तरह व्याप्त हैं [अरतिः व्याप्तः विस्तृतः] 'खं ब्रह्म' हैं । संयतः = पूजा के द्वारा हृदय में बद्ध किये गये आप (मानुषा युगा) = इन मानव दम्पतियों को (क्षपः) = रात्रियों में (भासि) = दीप्त करते हैं। कितना भी अन्धकारमय समय जीवन में आ जावे प्रभु हैं। की आराधना से प्रकाश प्राप्त होता है और सब व्याकुलता दूर हो जाती है।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु का उपासक घने अन्धकार में भी प्रकाश को देखता है।

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    विषय

    राजा के कर्त्तव्य पक्षान्तर में परमेश्वर का वर्णन ।

    भावार्थ

    (धेनवः स्वसरेषु वत्सं न ) गौएं जिस प्रकार गोशालाओं में बछड़ों के प्रति प्रेम से बद्ध होकर हंभारती हैं उसी प्रकार हे ( अग्ने ) विद्वन् ! राजन् ! परमेश्वर ! मनुष्य प्रजाजन भी ( नक्तीः उषसः ) सब दिन रात ( त्वा अभि ) तुझे लक्ष्य करके (ववाशिरे) नाना स्तुति करते, तेरे प्रति अपने निवेदन और प्रार्थनाएं किया करते हैं । हे ( पुरुवार ) बहुतों से वरण करने योग्य और बहुत से संकटों और शत्रुजनों के वारण करने में समर्थ, तू ( अरतिः ) सब ऐश्वर्यों का स्वामी ( संयतः ) अच्छी प्रकार दृढ़ होकर ( मानुषा युगा ) मनुष्यों के जीवन के वर्षों तक ( दिवः इव क्षणः ) दिनों के समान रात के समयों में भी ( भासि ) चमकता है। राजा का प्रबन्ध दिन के समान रात्रि में भी बराबर रहे । नगर में प्रकाश का प्रबन्ध करे । ( २ ) परमेश्वर ( संयतः ) अच्छी प्रकार उत्तम नियन्ता है । ( अरतिः ) अति ज्ञानवान्, स्वामी है । ( ३ ) ध्यानी विद्वान् ( संयतः ) उत्तम जितेन्द्रिय होकर ( अरतिः ) भोगों में दत्तचित्त न होकर दिन रात्रि मनुष्य जीवन के पूर्ण १०० वर्षों तक, जीवन भर तेजस्वी होकर रहता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः—१, २, ७, १२ विराट् जगती । ४ जगती । ५, ६, ९, १३ निचृज्जती ३, ८, १० ११ भुरिक् त्रिष्टुप् ॥ त्रयोदशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशा गायी त्यांच्या वासरांना जवळ करतात, तसे परिश्रमाने विद्वान लोक काळाच्या विभागांना प्राप्त करतात. त्यामुळे त्यांचे कार्य नियमपूर्वक होते. आळशी लोकांचे काम कधीच नियमितपणे होत नाही. परिश्रमी विद्वान रात्रीची वेळही आपल्या कार्याची वेळ समजून कार्य करतात. अशी माणसे दीर्घायू होतात. परिश्रम केल्यामुळे त्यांच्या आयुष्याची हानी होत नाही. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, lord of light and power, master of knowledge and fire, as cows in the stalls eagerly call for their calves, so do the days and nights call upon you for action and success. Selected by many, disciplined and committed to programmes of work, you passionately shine day and night for ages of humanity, creating and giving wealth and power for progress.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The theme of scholars' importance continues.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    As the cows bellow in the sheds on seeing their calves rotate and day and night and create sounds. Likewise, O Agni! you are brilliant like fire and acceptable to many because of your light and knowledge. It accomplishes our dealings in controlling the periods of time with a regulate, life. They shine.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As the cows get their calves, similarly the opportunities flock to industrious and learned persons. Unlike the idle persons they work regularly and achieve full life.

    Foot Notes

    (ववाशिरे) शब्दायन्ते = Create sound. ( पुरुवार) बहुभिर्वरणीय = Acceptable to many.

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