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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 6/ मन्त्र 6
    ऋषि: - सोमाहुतिर्भार्गवः देवता - अग्निः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    ईळा॑नायाव॒स्यवे॒ यवि॑ष्ठ दूत नो गि॒रा। यजि॑ष्ठ होत॒रा ग॑हि॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ईळा॑नाय । अ॒व॒स्यवे॑ । यवि॑ष्ठ । दू॒त॒ । नः॒ । गि॒रा । यजि॑ष्ठ । हो॒तः॒ । आ । ग॒हि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ईळानायावस्यवे यविष्ठ दूत नो गिरा। यजिष्ठ होतरा गहि॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ईळानाय। अवस्यवे। यविष्ठ। दूत। नः। गिरा। यजिष्ठ। होतः। आ। गहि॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 6; मन्त्र » 6
    अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 27; मन्त्र » 6
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे यविष्ठ यजिष्ठ दूत होतस्त्वं यथाऽवस्यव ईळानाय गिरा सुखं प्रयच्छसि तथा नोऽस्माना गहि ॥६॥

    पदार्थः

    (ईळानाय) स्तुवते (अवस्यवे) आत्मनो वो रक्षणमिच्छवे (यविष्ठ) अतिशयेन युवन् (दूत) यो दुनाति दुष्टाँस्तत्सम्बुद्धौ (नः) अस्मान् (गिरा) वाण्या (यजिष्ठ) अतिशयेन पूजितुं योग्य (होतः) दातः (आ) (गहि) समन्तात् प्राप्नुहि ॥६॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा मनुष्याणां दूतोऽग्निर्भूतलादुपरि पदार्थान्नीत्वा जलं वर्षयित्वा च सर्वस्य रक्षणनिमित्तो भवति तथा विद्वान् सुवचनेन सर्वस्य हितकारी जायते ॥६॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (यविष्ठ) अतीव युवावस्था वाले (यजिष्ठ) अत्यन्त प्रशंसा और सत्कार के योग्य (दूत) दुष्टों को सब ओर से कष्ट देने और (होतः) दानकर्म करनेवाले ! आप जैसे (अवस्यवे) अपने को रक्षा की इच्छा करनेवाले (ईडानाय) स्तुति करते हुए जन के लिये (गिरा) वाणी से सुख देते हैं वैसे आप (नः) हम लोगों को (आगहि) अच्छे प्रकार प्राप्त हूजिये ॥६॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे मनुष्यों को दूतरूप अग्नि पृथिवीतल से ऊपर पदार्थों को पहुँचा और जलों को वर्षा कर सबकी रक्षा का निमित्त होता है, वैसे विद्वान् जन उत्तम वचन से सबका हित करनेवाला होता है ॥६॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा मनुष्याचा दूतरूप अग्नी पृथ्वीवरील पदार्थांना वर पोचवून जलाचा वर्षाव करून सर्वांच्या रक्षणाचे निमित्त बनतो, तसे विद्वान लोकही उत्तम वचनाने सर्वांचे हितकारी बनतात. ॥ ६ ॥

    English (1)

    Meaning

    Agni, lord of light and power, youngest and unaging, harbinger of safety and destroyer of evil, power adorable and generous giver, for the supplicant and the worshipper in need seeking protection and progress, come and listen to our prayers.

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