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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 34 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 34/ मन्त्र 5
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    इन्द्र॒स्तुजो॑ ब॒र्हणा॒ आ वि॑वेश नृ॒वद्दधा॑नो॒ नर्या॑ पु॒रूणि॑। अचे॑तय॒द्धिय॑ इ॒मा ज॑रि॒त्रे प्रेमं वर्ण॑मतिरच्छु॒क्रमा॑साम्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रः॑ । तुजः॑ । ब॒र्हणाः॑ । आ । वि॒वे॒श॒ । नृ॒ऽवत् । दधा॑नः । नर्या॑ । पु॒रूणि॑ । अचे॑तयत् । धियः॑ । इ॒माः । ज॒रि॒त्रे । प्र । इ॒मम् । वर्ण॑म् । अ॒ति॒र॒त् । शु॒क्रम् । आ॒सा॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रस्तुजो बर्हणा आ विवेश नृवद्दधानो नर्या पुरूणि। अचेतयद्धिय इमा जरित्रे प्रेमं वर्णमतिरच्छुक्रमासाम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रः। तुजः। बर्हणाः। आ। विवेश। नृऽवत्। दधानः। नर्या। पुरूणि। अचेतयत्। धियः। इमाः। जरित्रे। प्र। इमम्। वर्णम्। अतिरत्। शुक्रम्। आसाम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 34; मन्त्र » 5
    अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 15; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    कीदृशो जनो राज्येऽधिकृतः स्यादित्याह।

    अन्वयः

    य इन्द्रो आसां प्रजानां पुरूणि नर्या नृवद्दधानो बर्हणास्तुज आविवेश जरित्रे इमा धियः प्राचेतयत्स इमं शुक्रं वर्णमतिरत् ॥५॥

    पदार्थः

    (इन्द्रः) राजा (तुजः) शत्रुहिंसकबलादियुक्ताः सेनाः (बर्हणाः) वर्धमानाः (आ, विवेश) आविशेत् (नृवत्) नायकवत् (दधानः) (नर्या) नृभ्यो हितानि सैन्यानि (पुरूणि) बहूनि (अचेतयत्) चेतयेत्सञ्ज्ञापयेत् (धियः) प्रज्ञाः (इमाः) वर्त्तमाने प्राप्ताः (जरित्रे) स्तावकाय (प्र) (इमम्) (वर्णम्) स्वीकारम् (अतिरत्) सन्तरेत् (शुक्रम्) क्षिप्रं कार्यकरम् (आसाम्) प्रजानाम् ॥५॥

    भावार्थः

    स एव राज्ये प्रवेष्टुं शक्नोति यो बुद्धिमतो धार्मिकान् जनान् सर्वेष्वधिकारेषु नियोज्य सेनोन्नतिं विधाय पितृवत्प्रजाः पालयितुमर्हेत् ॥५॥

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    हिन्दी (1)

    विषय

    कैसा मनुष्य राज्य में अधिकारी हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    जो (इन्द्रः) राजा (आसाम्) इन प्रजाओं की (पुरूणि) बहुत (नर्या) मनुष्यों के लिये हितकारिणी सेनाओं को (नृवत्) प्रधान पुरुष के सदृश (दधानः) धारण करनेवाला (बर्हणाः) वृद्धि को प्राप्त (तुजः) शत्रुओं के नाश करनेवाले बल आदि से युक्त सेनाओं को (आ) (विवेश) प्राप्त होवैं (जरित्रे) स्तुति करनेवाले के लिये (इमाः) इन वर्त्तमान में पाई हुईं (धियः) बुद्धियों को (प्र) (अचेतयत्) बोधसहित करै वह पुरुष (इमम्) इस (शुक्रम्) शीघ्र कार्य्य करनेवाले (वर्णम्) स्वीकार के (अतिरत्) पार उतरै ॥५॥

    भावार्थ

    वही पुरुष राज्य में प्रविष्ट हो सकता है कि जो बुद्धियुक्त धार्मिक पुरुषों को सब अधिकारों में नियुक्त कर और सेना की उन्नति करके पिता के सदृश प्रजाओं का पालन कर सकै ॥५॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो बुद्धियुक्त धार्मिक पुरुषांना सर्व अधिकार देऊन सेनेची उन्नती करून पित्याप्रमाणे प्रजेचे पालन करू शकतो तोच पुरुष राज्यात प्रविष्ट होऊ शकतो. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, like a manly hero, commanding overwhelming the forces of battle, blazing with the mighty thunderbolt, breaks through the thick of enemy lines. He enlightens these thoughts and minds for the celebrant and augments this pure and unsullied light of these within.

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