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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 49 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 49/ मन्त्र 3
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    स॒हावा॑ पृ॒त्सु त॒रणि॒र्नार्वा॑ व्यान॒शी रोद॑सी मे॒हना॑वान्। भगो॒ न का॒रे हव्यो॑ मती॒नां पि॒तेव॒ चारुः॑ सु॒हवो॑ वयो॒धाः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒हऽवा॑ । पृ॒त्ऽसु । त॒रणिः॑ । न । अर्वा॑ । वि॒ऽआ॒न॒शी॒ इति॑ । रोद॑सी॒ इति॑ । मे॒हना॑ऽवान् । भगः॑ । न । का॒रे । हव्यः॑ । म॒ती॒नाम् । पि॒ताऽइ॑व । चारुः॑ । सु॒ऽहवः॑ । व॒यः॒ऽधाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सहावा पृत्सु तरणिर्नार्वा व्यानशी रोदसी मेहनावान्। भगो न कारे हव्यो मतीनां पितेव चारुः सुहवो वयोधाः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सहऽवा। पृत्ऽसु। तरणिः। न। अर्वा। विऽआनशी इति। रोदसी इति। मेहनाऽवान्। भगः। न। कारे। हव्यः। मतीनाम्। पिताऽइव। चारुः। सुऽहवः। वयःऽधाः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 49; मन्त्र » 3
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 13; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे मनुष्या यः पृत्सु तरणिरर्वा न सहावा रोदसी इव मेहनावान् कारे व्यानशिर्हव्यो भगो न मतीनां वयोधाः सुहवश्चारुः पितेव वर्त्तते तमेव यूयं भूपतिं कुरुत ॥३॥

    पदार्थः

    (सहावा) सोढा। अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः। (पृत्सु) स्पर्द्धमानेषु सङ्ग्रामेषु (तरणिः) सद्यो गन्ता (न) इव (अर्वा) अश्वः (व्यानशिः) व्याप्तः (रोदसी) द्यावाभूमी (मेहनावान्) मेहनानि सेचनानि बहूनि विद्यन्ते यस्य सः (भगः) ऐश्वर्य्ययोगः (न) इव (कारे) कर्त्तव्ये व्यवहारे (हव्यः) आदातुमर्हः (मतीनाम्) मननशीलानां मनुष्याणाम् (पितेव) यथा जनकः (चारुः) सुन्दरः (सुहवः) शोभनाऽऽह्वानस्तुतिः (वयोधाः) यो वयो जीवनं दधाति सः ॥३॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारौ। योऽश्ववद्वेगवान् बलिष्ठो योद्धा सूर्य्यभूमीवत् सर्वेषां सुखद ऐश्वर्य्यवत्कार्य्यसिद्धिकरः पितृवत्सर्वेषां पालको भवेत् स एव राज्याऽभिषेकमर्हेत् ॥३॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जो (पृत्सु) स्पर्द्धा करते हुए सङ्ग्रामों में (तरणिः) शीघ्र चलनेवाले (अर्वा) घोड़ों के (न) तुल्य (सहावा) सहनेवाला (रोदसी) अन्तरिक्ष और भूमि के सदृश (मेहनावान्) सेचन बहुत विद्यमान हैं जिसके वह (कारे) करने योग्य व्यवहार में (व्यानशिः) व्याप्त (हव्यः) ग्रहण करने के योग्य (भगः) ऐश्वर्य्य के योग के (न) तुल्य (मतीनाम्) मनन करनेवाले मनुष्यों के (वयोधाः) जीवन को धारण करनेवाला (सुहवः) उत्तम पुकारने की स्तुतियुक्त (चारुः) सुन्दर (पितेव) पिता के सदृश वर्त्तमान है, उसीको आप लोग राजा करिये ॥३॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो घोड़े के सदृश वेग और बलयुक्त योद्धा सूर्य्य और भूमि के सदृश सबका सुख देने और ऐश्वर्य्य के सदृश कार्य्य की सिद्धि करनेवाला पिता के सदृश सबका पालनकर्त्ता होवे, वही राज्याऽभिषेक करने के योग्य होवे ॥३॥

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    विषय

    सुहवो वयोधाः

    पदार्थ

    [१] वे प्रभु (सहावा) = बलवान् हैं, (पृत्सु तरणिः) = संग्रामों में शत्रुसागर को तैर जानेवाले हैं। (न अर्वा) = व्यर्थ में संहार करनेवाले नहीं हैं। प्रभुकृत संहार भी जीवहित के लिए हैं। (रोदसी व्यानशी:) = द्यावापृथिवी को व्याप्त किये हुए हैं और मेहनावान् सब सुखों का वर्षण करनेवाले हैं। (२) वे प्रभु कारे-यज्ञादि कार्यों में भगः न ऐश्वर्य के समान हैं। मतीनां हव्यः- मननशील पुरुषों से पुकारे जाने योग्य हैं, उसी प्रकार इव जैसे कि पुत्र से पिता- पिता पुकारे जाने योग्य होता है। वे प्रभु चारु: सुन्दर हैं, सुहवः सुगमता से पुकारे जाने योग्य हैं, हमारी प्रार्थनाओं को सुनते हैं और वयोधाः = उत्कृष्ट जीवन को हमारे लिए धारण करते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु ही हमें संग्रामों में विजयी बनाते हैं, वे ही हमारे लिए यज्ञों को पूर्ण करने के साधन जुटाते हैं ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो घोड्याप्रमाणे वेगवान, बलवान योद्धा, सूर्य व भूमीप्रमाणे सर्वांना सुख देणारा, ऐश्वर्याप्रमाणे कार्य सिद्धी करणारा, पित्याप्रमाणे सर्वांचा पालनकर्ता असेल तोच राज्याभिषेक करण्यायोग्य असतो. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Undeterred and victorious in battles, instant in action, going forward like a current of energy, he vibrates through heaven and earth. Rich and generous, lord of power and prosperity, he is to be invoked and invited in yajnic programmes of enlightened people like a very shower of rain. And he is kind and generous, ever gracious, ready like a father with gifts of life and sustenance for his children.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of a ruler are elaborated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! you should elect such a king who is vigorous. dashing through hostiles like a war horse, who is able to put up with all difficulties, and who makes arrangements for irrigational waters. He is giver of happiness like heaven and earth, is always duty conscious and is like the most acceptable prosperity. Such a ruler is like a father to all thoughtful persons, is beautiful, praiseworthy and upholder of noble life.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    There is simile in the mantra. He alone deserves to be elected as king who is active like a horse, very powerful warrior and giver of `happiness to all like heaven and earth. He accomplishes wealth, protects and nourishes all like a father.

    Foot Notes

    (पृत्सु ) स्पर्द्धमानेषु सङ्ग्रामेषु । पृत्सु इति संग्रामनाम ( N.G. 1, 17 ) = In the battles. (कारे) कर्त्तव्यं-व्यवहारे । = In the work to be done as a duty. (मेहनावान् ) मेहनानि सेचनानि वहूनि विद्यन्ते यस्य सः। (मेहनावान् ) मिह सचने (भ्वा०)। = He who upholds a noble life. (वयोधाः ) यो वयो जीवनं दधाति सः = He who makes proper arrangements for sparkling water on the roads etc. in his State.

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