ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 60/ मन्त्र 2
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - ऋभवः
छन्दः - जगती
स्वरः - निषादः
याभिः॒ शची॑भिश्चम॒साँ अपिं॑शत॒ यया॑ धि॒या गामरि॑णीत॒ चर्म॑णः। येन॒ हरी॒ मन॑सा नि॒रत॑क्षत॒ तेन॑ देव॒त्वमृ॑भवः॒ समा॑नश॥
स्वर सहित पद पाठयाभिः॑ । शची॑भिः । च॒म॒साम् । अपिं॑शत । यया॑ । धि॒या । गाम् । अरि॑णीत । चर्म॑णः । येन॑ । हरी॒ इति॑ । मन॑सा । निः॒ऽअत॑क्षत । तेन॑ । दे॒व॒ऽत्वम् । ऋ॒भ॒वः॒ । सम् । आ॒नश ॥
स्वर रहित मन्त्र
याभिः शचीभिश्चमसाँ अपिंशत यया धिया गामरिणीत चर्मणः। येन हरी मनसा निरतक्षत तेन देवत्वमृभवः समानश॥
स्वर रहित पद पाठयाभिः। शचीभिः। चमसाम्। अपिंशत। यया। धिया। गाम्। अरिणीत। चर्मणः। येन। हरी इति। मनसा। निःऽअतक्षत। तेन। देवऽत्वम्। ऋभवः। सम्। आनश॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 60; मन्त्र » 2
अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 7; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 7; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे मनुष्या ऋभवो याभिः शचीभिश्चमसानपिंशत यया धिया चर्मणो गामरिणीत येन मनसा हरी निरतक्षत तेन यूयं देवत्वं समानश ॥२॥
पदार्थः
(याभिः) (शचीभिः) प्रज्ञाभिः कर्मभिर्वा (चमसान्) मेघान् (अपिंशत) अवयवयन्ति। अत्र बहुलं छन्दसीति शब्विकरणोऽपि (यया) (धिया) प्रज्ञया (गाम्) धेनुम् (अरिणीत) प्राप्नुवन्ति (चर्मणः) चर्मप्राप्तेः (येनं) (हरी) धारणकर्षणौ (मनसा) विज्ञानेन (निरतक्षत) नितरां विस्तृणन्ति (तेन) (देवत्वम्) विद्वत्वम् (ऋभवः) मेधाविनः (सम्) (आनश) सम्यग्व्याप्नुत ॥२॥
भावार्थः
हे मनुष्या यथा मेधाविनोऽत्र वर्त्तेयुस्तथैव वर्त्तित्वा विद्वांसो भवत ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
पदार्थ
हे मनुष्यों ! (ऋभवः) बुद्धिमान् लोग (याभिः) जिन (शचीभिः) बुद्धियों वा कर्मों से (चमसान्) मेघों को (अपिंशत) अवयवोंवाले करते हैं (यया) जिस (धिया) बुद्धि के साथ (चर्मणः) चर्म की प्राप्ति से (गाम्) धेनु को (अरिणीत) प्राप्त होते हैं (येन) जिस (मनसा) विज्ञान से (हरी) धारण और आकर्षण का (निरतक्षत) निरन्तर विस्तार करते हैं (तेन) उससे आप लोग (देवत्वम्) विद्वान् पने को (सम्, आनश) उत्तम प्रकार व्याप्त होओ ॥२॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जैसे बुद्धिमान् लोग यहाँ वर्त्ताव करें, वैसा ही वर्त्ताव करके विद्वान् होओ ॥२॥
विषय
देवत्वप्राप्ति
पदार्थ
[१] (याभि:) = जिन (शचीभिः) शक्तियों से (चमसान्) = इन शरीरों को [स्थूल, सूक्ष्म व कारण शरीरों को] (अपिंशत) = अलंकृत करते हो [adorn, decorate] । [२] (यया धिया) = जिस बुद्धि = से [गाम्] = वेदवाणी को (चर्मण:) = उपरले आवरण से (अरिणीत) = [to separate] पृथक् करते हो, अर्थात् उपरले आवरण को हटाकर अन्तर्निहित अर्थ को देखनेवाले बनते हो। [३] (येन मनसा) = जिस मन द्वारा हरी ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रियरूप अश्वों को (निरतक्षत) = [to create] बनाते हो, अर्थात् मनरूपी लगाम द्वारा इन्द्रियों को वश में करके उत्तम कार्यों में व्याप्त करते हो। [४] (तेन) = इन बातों के कारण हे (ऋभवः) = ज्ञानदीप्त पुरुषो! (देवत्वम्) = देवत्व को (समानश) = प्राप्त करते हो । इस प्रकार देवत्व-प्राप्ति के तीन साधन हैं [क] शरीर को शक्तियों से अलंकृत करना, [ख] बुद्धि द्वारा वेद के गूढ़ार्थ को समझना तथा [ग] इन्द्रियों को मन द्वारा निगृहीत करके कार्यों में व्याप्त करना ।
भावार्थ
भावार्थ– 'हम शरीर को शक्ति सम्पन्न बनाएँ । बुद्धि को तत्त्वज्ञान प्राप्त करनेवाली करें । इन्द्रियों का संयम करके कार्यों में व्याप्त हों' यही देवत्व प्राप्ति का मार्ग है।
विषय
ऋभु, विद्वान् जन, उत्तम नेता लोग, शिल्पी लोग, उनके नाना शिल्प, और कर्त्तव्य चमसों का रहस्य, चर्म की गौ का रहस्य।
भावार्थ
(ऋभवः) खूब प्रकाश से चमकने वाले सूर्य-किरण जिस प्रकार (शचीभिः) अपनी शक्तियों से (चमसान् अपिंशत) मेघों को रूपवान् बनाते अर्थात् उत्पन्न करते हैं और वे (गाम् अरिणीत) पृथिवी को आच्छादित कर लेते हैं और दिन और रात्रि को उत्पन्न करते हैं और जिस प्रकार (ऋभवः) ज्ञानपूर्वक कर्म करने में समर्थ शिल्पी लोग (शचीभिः) औज़ारों से (चमसान्) खाने के पात्र थाली, कटोरे, चमचे आदि (अपिंशत) सुन्दर रूप में बनाते हैं। और वे (धिया) बुद्धि से चर्म के बने जूते से (गाम् अरिणीत) पृथ्वी पर चलने का उपाय करते हैं। अथवा चर्म की कृत्रिम गौ आदि पशु बनाते वा चर्स के बने पट्टों आदि से (गाम्) वेग से जाने वाली गाड़ी यन्त्र, चक्र आदि (अरिणीत) चलाते हैं (मनसा) ज्ञान से अश्वों को सधाते वा शिल्प द्वारा रथ के अश्वस्थानी यन्त्र बनाते हैं इससे वे भी (देवत्वम्) विद्वान् पूज्य पद को प्राप्त करते हैं या धन देने योग्य हो जाते हैं इसी प्रकार (ऋभवः) सत्य ज्ञान और ऐश्वर्य से प्रकाशित होने वाले (याभिः) जिन (शचीभिः) बुद्धियों, वाणियों और सेना आदि शक्तियों से (चमसानू) मेघ के सदृश शस्त्रास्त्र वर्षा करने वाले वीरों को वा (चमसान्) राष्ट्र के उपभोक्ता अध्यक्षों को (अपिंशत) रूपवान् करते और (चमसान्) भूमि और प्रजा को खा जाने वालों को (अपिंशत) अवयव, अवयव, टुकड़े टुकड़े कर देते हैं और (यया धिया) जिस राष्ट्र धारक शक्ति और बुद्धि से (चर्मणः) चर्म की बनी जिह्वा से या चर्म की बनी तांत से वाणी को उच्चारण करते हैं और (चर्मणः गाम् अरिणीत) चर्म की बाण फेंकने वाली डोरी बनाते हैं। और (येन मनसा) जिस मन से (ऋभवः) सत्य ज्ञान से प्रकाशित होने वाले विद्वान् जन (हरी) ज्ञानेन्द्रिय और कर्म्मेन्द्रिय दोनों प्रकार के देह-रथ में लगे अश्वों को (निर-अतक्षत) प्रकट करते हैं हे विद्वान् लोगो ! उन्हीं शक्तियों, बुद्धियों और मनन सामर्थ्य से आप लोग (देवत्वम्) ज्ञानप्रद विद्वान् के पद को (सम् आनश) अच्छी प्रकार प्राप्त करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ ऋभवो देवता॥ छन्दः- १, २, ३ जगती। ४, ५ निचृज्जगती। ६ विराड् जगती। ७ भुरिग्जगती॥ निषादः स्वरः॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो! जसे बुद्धिमान लोक वर्तन करतात तसेच वर्तन करून विद्वान व्हा. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Rbhus, by the knowledge and powers with which you make and break the clouds, by the skill with which you resuscitate and rejuvenate the cow from a skeleton and win back the earth with the shield of protection, and by the mind with which you create the energies and design circuitous movement, by these you rise to the brilliance of divinity.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties of a ruler are elaborated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men ! you should also attain divinity through the acts by which wise men attain it, i.e. by creating clouds and making their rains (through performance of the Yajnas). More over! by making infirm cows strong and fleshy ones from the mere skin (skeleton), with intelligence and actions and by extending the power of upholding and attraction through scientific knowledge.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men! you should become learned by acting as wisemen do by following into their footsteps.
Foot Notes
(चमसान् ) मेघान् । चमस इति मेघनाम (NG 1, 10) = Clouds. (हरी ) धारणाकर्षणे । = The Power of upholding and attraction. (ऋभवः ) मेधाविनः । ऋभव इति मेधाविनाम (NG 3, 15 ) = Wisemen, geniuses. (शची) यज्ञ कर्म वा । शचीति यज्ञनाम (NG 3, 9) शचीति कर्मनाम (NG 2, 1 )। = Yajna or non-violent action.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal