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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 36 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 36/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - ऋभवः छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    रथं॒ चे च॒क्रुः सु॒वृतं॑ सु॒चेत॒सोऽवि॑ह्वरन्तं॒ मन॑स॒स्परि॒ ध्यया॑। ताँ ऊ॒ न्व१॒॑स्य सव॑नस्य पी॒तय॒ आ वो॑ वाजा ऋभवो वेदयामसि ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रथ॑म् । ये । च॒क्रुः । सु॒ऽवृत॑म् । सु॒ऽचेत॑सः । अवि॑ऽह्वरन्तम् । मन॑सः । परि॑ । ध्यया॑ । तान् । ऊँ॒ इति॑ । नु । अ॒स्य । सव॑नस्य । पी॒तये॑ । आ । वः॒ । वा॒जाः॒ । ऋ॒भ॒वः॒ । वे॒द॒या॒म॒सि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रथं चे चक्रुः सुवृतं सुचेतसोऽविह्वरन्तं मनसस्परि ध्यया। ताँ ऊ न्व१स्य सवनस्य पीतय आ वो वाजा ऋभवो वेदयामसि ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    रथम्। ये। चक्रुः। सुऽवृतम्। सुऽचेतसः। अविऽह्वरन्तम्। मनसः। परि। ध्यया। तान्। ऊम् इति। नु। अस्य। सवनस्य। पीतये। आ। वः। वाजाः। ऋभवः। वेदयामसि ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 36; मन्त्र » 2
    अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 7; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे वाजा ऋभवो ! ये वोऽस्य सनवस्य पीतये सुचेतसो मनसो ध्ययाविह्वरन्तं सुवृतं रथं परि चक्रुर्यान् वयमावेदयामसि तान्नू यूयं सद्यः परिगृह्णीत ॥२॥

    पदार्थः

    (रथम्) विमानादियानम् (ये) (चक्रुः) कुर्वन्ति (सुवृतम्) सुष्ठु साङ्गोपाङ्गसहितम् (सुचेतसः) सुष्ठुविज्ञानाः (अविह्वरन्तम्) अकुटिलगतिम् (मनसः) विज्ञानात् (परि) (ध्यया) ध्यानेन (तान्) (उ) (नु) (अस्य) (सवनस्य) शिल्पविद्याजनितस्य कार्यस्य (पीतये) तृप्तये (आ) (वः) युष्मान् (वाजा) प्राप्तहस्तक्रियाः (ऋभवः) मेधाविनः (वेदयामसि) वेदयामः प्रज्ञापयामः ॥२॥

    भावार्थः

    हे मेधाविनो ये यानरचनचालनकुशलाः शिल्पिनः स्युस्तान् परिगृह्य सत्कृत्य शिल्पविद्योन्नतिं कुरुत ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (वाजाः) हस्तक्रिया को प्राप्त हुए (ऋभवः) बुद्धिमानो ! (ये) जो (वः) आप लोगों को (अस्य) इस (सवनस्य) शिल्पविद्या से उत्पन्न हुए कार्य की (पीतये) तृप्ति के लिये (सुचेतसः) उत्तम विज्ञानवाले (मनसः) विज्ञान से (ध्यया) ध्यान से (अविह्वरन्तम्) नहीं टेढ़े चलनेवाले (सुवृतम्) उत्तम प्रकार अङ्ग और उपाङ्गों के सहित (रथम्) विमान आदि वाहन को (परि, चक्रुः) सब ओर से बनाते हैं और जिनको हम लोग (आ, वेदयामसि) जनाते हैं (तान्) उनको (नु) निश्चय करके (उ) ही आप लोग शीघ्र ग्रहण कीजिये ॥२॥

    भावार्थ

    हे बुद्धिमानो ! जो वाहनो के बनाने और चलाने में चतुर शिल्पीजन होवें, उनका ग्रहण और सत्कार करके शिल्पविद्या की उन्नति करो ॥२॥

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    विषय

    शोभन-गति अकुटिल रथ

    पदार्थ

    [१] प्रभु कहते हैं कि (ये) = जो ऋभु (सुचेतसः) = उत्तम ज्ञानवाले हैं। (मनसः परिध्यया) = मन के समन्तात् ध्यान से (सुवृतम्) = उत्तम वर्तनवाले, (अविह्नरन्तम्) = अकुटिल (रथं चक्रुः) = शरीररूप रथ को बनाते हैं। वस्तुतः ऋभु समझदार होते हैं। समझदारी से ऐसे शरीर-रथ को बनाते हैं, जो सदा उत्तम गतिवाला होता है तथा कुटिलता से रहित होता है । [२] हे (वाजा:) = शक्तिशाली (ऋभवः) = ज्ञानदीप्त पुरुषो! (तान् वः) = उन आपको (ऊ नु) = निश्चय से (अस्य सवनस्य) = इस उत्तम सवनवाले सोम के (पीतये) = पान के लिए शरीर में सुरक्षित करने के लिए, (आवेदयामसि) = सब प्रकार से समझाते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- ऋभु शरीर से कुटिलताशून्य उत्तम गतिवाले होते हैं। ये सोम का पान करते हैं ।

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    विषय

    विना अश्व, बिना लगाम के त्रिचक्र आकाश, जल, भूमि गामी रथ के दृष्टान्त से आत्मा के देहरथ का वर्णन ।

    भावार्थ

    (ये) जो (सुचेतसः) उत्तम चित्त वाले और उत्तम ज्ञानवान् होकर (मनसः परि ध्यया) मन के विशेष चिन्तना वा ज्ञान के विशेष अभ्यास से (अवि-ह्वरन्तं) कुटिल गति से न जाने वाले (सुवृतं) उत्तम रीति से चलने वाले (रथं चक्रुः) रथ को बनाते हैं । अध्यात्म में—जो उत्तम ज्ञानवान् और शुभ चित्त से युक्त ज्ञानी पुरुष (ध्यया) संध्या अर्थात् ध्यान के अभ्यास से (मनसः परि) मन से भी परे विद्यमान (अवि-ह्वरन्तं) अकुटिल, ऋजु (सुवृतं) उत्तम आचारवान् (रथं) रसस्वरूप आत्मा को (चक्रुः) बना लेते हैं उसकी साधना करते हैं । हे (ऋभवः) सत्य ज्ञानप्रकाश से प्रकाशित होने वाले विद्वान् पुरुषो ! हे (वाजाः) बलवान् ऐश्वर्यवान् पुरुषो ! (तान् उ नु वः) उन आप लोगों को (अस्य सवनस्य पीतये) इस ऐश्वर्य के उपभोग के लिये (आ वेदयामसि) निवेदन वा प्रार्थना करते हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ ऋभवो देवता ॥ छन्दः- १, ६, ८ स्वराट् त्रिष्टुप् । ९ त्रिष्टुप् । २, ३, ४, ५ विराट् जगती । ७ जगती ॥ नवर्चं सूक्तम् ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे बुद्धिमानांनो! जे यान तयार करणारे व चालविणारे चतुर कारागीर असतात त्यांचे ग्रहण व सत्कार करून शिल्पविद्येची उन्नती करा. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Those Rbhus, scientists and engineers of exceptional genius, alert of mind and vision, who created the well structured, well controlled unerring chariot with their thought, imagination and meditation beyond the mind, we recognise and invite to this soma session of scientific yajna for the order of national honour.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The technology is highlighted.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O wisemen ! you possess practical knowledge of handicrafts. We invoke you respectfully because you are the wise sages and by meditation make a well-manufactured undeviating car (in the form of aircraft etc.). We give you lips or give special instructions about it to make this science of engineering perfect. Grasp this knowledge thoroughly from all sides.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O wisemen! collect and honor the great technicians and engineers from all the sides who are expert in manufacturing and driving various vehicles and develop this technology.

    Foot Notes

    (अविःवरन्तम्) अकुटिलगतिम् = Straight, un-deviating. (सवनस्य) शिल्पविद्याजनितस्य कार्यस्य। = Of technology work. (वाजा:) प्राप्तहस्तक्रिया:। (वाजाः ) बज -गतो । गते स्त्रिष्वर्थेष्वत्र प्राप्त्यर्थमादाय प्राप्तहस्त क्रियेति व्याख्यानम् । = Those who have received vocational knowledge and training with hands.

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