ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 8/ मन्त्र 5
ते स्या॑म॒ ये अ॒ग्नये॑ ददा॒शुर्ह॒व्यदा॑तिभिः। य ईं॒ पुष्य॑न्त इन्ध॒ते ॥५॥
स्वर सहित पद पाठते । स्या॒म॒ । ये । अ॒ग्नये॑ । द॒दा॒शुः । ह॒व्यऽदा॑तिभिः । ये । ई॒म् । पुष्य॑न्तः । इ॒न्ध॒ते ॥
स्वर रहित मन्त्र
ते स्याम ये अग्नये ददाशुर्हव्यदातिभिः। य ईं पुष्यन्त इन्धते ॥५॥
स्वर रहित पद पाठते। स्याम। ये। अग्नये। ददाशुः। हव्यदातिऽभिः। ये। ईम्। पुष्यन्तः। इन्धते॥५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 8; मन्त्र » 5
अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 8; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 8; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथाग्निविद्याविद्विषयमाह ॥
अन्वयः
ये हव्यदातिभिरग्नये ददाशुर्य ईं पुष्यन्त इन्धते ते सुखिनः सन्ति तैस्सह वयं सुखिनस्स्याम ॥५॥
पदार्थः
(ते) (स्याम) भवेम (ये) (अग्नये) अग्निविद्याप्राप्तये (ददाशुः) द्रव्यादिकं ददति (हव्यदातिभिः) दातव्यदानैः (ये) (ईम्) उदकम् (पुष्यन्तः) (इन्धते) प्रदीप्यन्ते ॥५॥
भावार्थः
ये मनुष्या अग्न्यादिपदार्थविद्याप्राप्तये पुष्कलं धनं वियन्ति ते सर्वतः सर्वथा सर्वैः सुखैः पुष्टाः सन्त आनन्दन्ति ॥५॥
हिन्दी (1)
विषय
अब अग्नि विद्या के जाननेवाले विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
(ये) जो (हव्यदातिभिः) देने योग्य वस्तुओं के दानों से (अग्नये) अग्निविद्या की प्राप्ति के लिये (ददाशुः) द्रव्य आदि पदार्थ देते हैं और (ये) जो लोग (ईम्) जल को (पुष्यन्तः) पुष्ट करते हुए (इन्धते) प्रकाशित होते हैं (ते) वे सुखी हैं, उनके साथ हम लोग सुखी (स्याम) होवें ॥५॥
भावार्थ
जो मनुष्य अग्नि आदि पदार्थों की विद्या की प्राप्ति के लिये बहुत खर्चते हैं, वे सब से सब प्रकार सब सुखों से पुष्ट हुए आनन्दित होते हैं ॥५॥
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे अग्नी इत्यादी पदार्थांच्या विद्याप्राप्तीसाठी पुष्कळ धन खर्च करतात ती सर्व सुखाने युक्त बनून पुष्ट होतात व आनंदित होतात. ॥ ५ ॥
English (1)
Meaning
Let us dedicate ourselves to you, Agni, like those who, with liberal offers of havi, give themselves unto you in devotion for the gifts and powers of universal energy, light the fire and make the streams of the waters of life flow free across the globe.
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