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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 8/ मन्त्र 8
    ऋषि: - वामदेवो गौतमः देवता - अग्निः छन्दः - भुरिग्गायत्री स्वरः - षड्जः

    स विप्र॑श्चर्षणी॒नां शव॑सा॒ मानु॑षाणाम्। अति॑ क्षि॒प्रेव॑ विध्यति ॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । विप्रः॑ । च॒र्ष॒णी॒नाम् । शव॑सा । मानु॑षाणाम् । अति॑ । क्षि॒प्राऽइ॑व । वि॒ध्य॒ति॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स विप्रश्चर्षणीनां शवसा मानुषाणाम्। अति क्षिप्रेव विध्यति ॥८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः। विप्रः। चर्षणीनाम्। शवसा। मानुषाणाम्। अति। क्षिप्राऽइव। विध्यति॥८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 8; मन्त्र » 8
    अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 8; मन्त्र » 8
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    यो विप्रः शवसा चर्षणीनां मानुषाणां क्षिप्रेव दुःखान्यतिविध्यति स एव प्रशंसितो भवति ॥८॥

    पदार्थः

    (सः) (विप्रः) मेधावी (चर्षणीनाम्) ऐश्वर्य्येण प्रकाशमानानाम् (शवसा) बलेन (मानुषाणाम्) मानवानां मध्ये (अति) अतिशये (क्षिप्रेव) क्षिप्राणि प्रेरितानीव (विध्यति) ताडयति ॥८॥

    भावार्थः

    ये विपश्चितोऽग्न्यादिविद्याप्रयोगैर्मनुष्याणां दारिद्र्यं विनाश्यैश्वर्य्ययोगं जनयन्ति त एव सर्वैः सत्कर्त्तव्याः सर्वेषु भाग्यशालिनः सन्तीति ॥८॥ अत्राग्निविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥८॥ इत्यष्टमं सूक्तमष्टमो वर्गश्च समाप्तः ॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    जो (विप्रः) बुद्धिमान् पुरुष (शवसा) बल से (चर्षणीनाम्) ऐश्वर्य्य से प्रकाशमान (मानुषाणाम्) मनुष्यों के मध्य में (क्षिप्रेव) प्रेरणा किये गयों के सदृश दुःखों को (अति) अत्यन्त (विध्यति) ताड़ता है (सः) वही प्रशंसित होता है ॥८॥

    भावार्थ

    जो विद्वान् लोग अग्नि आदि विद्या के प्रयोगों से मनुष्यों के दारिद्र्य का नाश करके ऐश्वर्य्य के योग को उत्पन्न करते हैं, वे ही सब लोगों को सत्कार करने योग्य और सभों में भाग्यशाली होते हैं ॥८॥ इस सूक्त में अग्नि और विद्वान् के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥८॥ यह अष्टम सूक्त और अष्टम वर्ग समाप्त हुआ ॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे विद्वान अग्नी इत्यादी विद्येच्या प्रयोगाने माणसांच्या दारिद्र्याचा नाश करून ऐश्वर्य उत्पन्न करतात सर्व लोकांनी त्यांचा सत्कार करावा असे ते असतात व सर्वात भाग्यशाली असतात. ॥ ८ ॥

    English (1)

    Meaning

    He, Agni, is the most dynamic of brilliant visionaries of the world who, with his power and force, like a flying arrow, shoots off the sufferance and ailments of the people.

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