ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 25/ मन्त्र 5
ऋषिः - वसुयव आत्रेयः
देवता - अग्निः
छन्दः - विराडनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
अ॒ग्निस्तु॒विश्र॑वस्तमं तु॒विब्र॑ह्माणमुत्त॒मम्। अ॒तूर्तं॑ श्राव॒यत्प॑तिं पु॒त्रं द॑दाति दा॒शुषे॑ ॥५॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्निः । तु॒विश्र॑वःऽतमम् । तु॒विऽब्र॑ह्माणम् । उ॒त्ऽत॒मम् । अ॒तूर्त॑म् । श्र॒व॒यत्ऽप॑तिम् । पु॒त्रन् । द॒दा॒ति॒ । दा॒शुषे॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निस्तुविश्रवस्तमं तुविब्रह्माणमुत्तमम्। अतूर्तं श्रावयत्पतिं पुत्रं ददाति दाशुषे ॥५॥
स्वर रहित पद पाठअग्निः। तुविश्रवःऽतमम्। तुविऽब्रह्माणम्। उत्ऽतमम्। अतूर्त्तम्। श्रवयत्ऽपतिम्। पुत्रम्। ददाति। दाशुषे ॥५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 25; मन्त्र » 5
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 17; मन्त्र » 5
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अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 17; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
यो अग्निरिव दाशुषे तुविश्रवस्तमं तुविब्रह्माणमुत्तममतूर्त्तं श्रावयत्पतिं पुत्रं ददाति स एव पूजनीयतमो भवति ॥५॥
पदार्थः
(अग्निः) विद्वान् (तुविश्रवस्तमम्) अतिशयेन बह्वन्नश्रवणयुक्तम् (तुविब्रह्माणम्) बहवो ब्रह्माणश्चतुर्वेदविदो विद्वांसो यस्य तम् (उत्तमम्) अतिशयेन श्रेष्ठम् (अतूर्त्तम्) अहिंसितम् (श्रावयत्पतिम्) श्रावयन्पतिर्यस्य तम् (पुत्रम्) (ददाति) (दाशुषे) दानशीलाय ॥५॥
भावार्थः
हे मनुष्यास्तेषामेव यूयं सत्कारं कुरुत ये सर्वान् विदुषो धार्मिकान् कुर्वन्ति ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
जो (अग्निः) अग्नि के सदृश तेजस्वी विद्वान् (दाशुषे) दानशील जन के लिये (तुविश्रवस्तमम्) अत्यन्त बहुत अन्न और श्रवण से युक्त और (तुविब्रह्माणम्) चार वेद के जाननेवाले बहुत विद्वानों के युक्त (उत्तमम्) अत्यन्त श्रेष्ठ (अतूर्त्तम्) नहीं हिंसित और (श्रावयत्पतिम्) सुनाते हुए पालन करनेवाले से युक्त (पुत्रम्) सन्तान को (ददाति) देता है, वही अत्यन्त आदर करने योग्य होता है ॥५॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! उन लोगों का ही आप लोग सत्कार करो, जो सबको विद्वान् और धार्मिक करते हैं ॥५॥
विषय
पक्षान्तर में आचार्य के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
भा०- ( अग्निः ) विद्वान्, आचार्य एवं अग्रणी नायक वा परमेश्वर जन ( दाशुषे ) दानशील पुरुष को ( तुविश्रवस्तमम् ) बहुत प्रकार के अन्नों, श्रवण योग्य ज्ञानों से युक्त, और (तुवि-ब्रह्माणम् ) बहुत से विद्वान् पुरुषों, धनों और वेद ज्ञानों से युक्त, ( उत्तमं ) उत्तम ( अतूर्तं ) अपीड़ित, दीर्घायु (श्रावयत्-पतिं) ज्ञानोपदेश श्रवण कराने वाले पालक से युक्त विद्वान वा उपदेष्टाओं का पालक, ( पुत्रं ) उत्तम पुत्र ( ददाति ) प्रदान करता है । आचार्य और राजा दोनों प्रजाओं के पुत्रों को ज्ञानवान्, विद्वान्, दीर्घायु और रोगादि से अपीड़ित स्वस्थ बलवान् किया करें । इति सप्तदशोवर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसूयव आत्रेया ऋषयः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः – १,८ निचृदनुष्टुप । २,५,६,९ अनुष्टुप्, । ३, ७ विराडनुष्टुप् । ४ भुरिगुष्णिक् ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥
विषय
दाश्वान् का पुत्र
पदार्थ
१. (अग्निः) = वे अग्रणी प्रभु (दाशुषे) = दाश्वान् पुरुष के लिए-दान की वृत्तिवाले व प्रभु के प्रति अपना अर्पण करनेवाले पुरुष के लिए - (पुत्रं ददाति) = उत्तम सन्तान को प्राप्त कराते हैं। जो सन्तान (तुविश्रवस्तमम्) = खूब ही उत्कृष्ट ज्ञानवाला है। (तुविब्रह्माणम्) = [ब्रह्म-स्तोत्र] खूब स्तोत्रोंवाला है – प्रभु स्तवन की वृत्तिवाला है और अतएव (उत्तमम्) = उत्तम जीवनवाला है। ज्ञान व स्तवन से जो प्रशस्त जीवनवाला बना है। २. उस सन्तान को प्रभु प्राप्त कराते हैं, जो कि (अतूर्तम्) = कामक्रोध आदि से हिंसित नहीं होता तथा (श्रावयत् पतिम्) = अपने उत्तम कर्मों से अपने रक्षकों [पति= माता-पिता आदि] की कीर्ति को फैलानेवाला है।
भावार्थ
भावार्थ- हम दाश्वान् बनें ताकि 'तुविश्रवस्तम, तुविब्रह्मा, उत्तम अतूर्त, श्रावयत् पति' सन्तान को प्राप्त करें।
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो ! जे सर्वांना विद्वान व धार्मिक करतात त्याच लोकांचा तुम्ही सत्कार करा. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, generous light of yajna, gives to a liberal yajaka and man of charity progeny fond of study and listening, abundant in food and wealth, widely read in sacred lore, most virtuous and invincible, who brings honour and glory to the parents.
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