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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 54 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 54/ मन्त्र 11
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    अंसे॑षु व ऋ॒ष्टयः॑ प॒त्सु खा॒दयो॒ वक्षः॑सु रु॒क्मा म॑रुतो॒ रथे॒ शुभः॑। अ॒ग्निभ्रा॑जसो वि॒द्युतो॒ गभ॑स्त्योः॒ शिप्राः॑ शी॒र्षसु॒ वित॑ता हिर॒ण्ययीः॑ ॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अंसे॑षु । वः॒ । ऋ॒ष्टयः॑ । प॒त्ऽसु । खा॒दयः॑ । वक्षः॑ऽसु । रु॒क्माः । म॒रु॒तः॒ । रथे॑ । शुभः॑ । अ॒ग्निऽभ्रा॑जसः । वि॒ऽद्युतः॑ । गभ॑स्त्योः । शिप्राः॑ । शी॒ऋषऽसु॒ । विऽत॑ताः । हि॒र॒ण्ययीः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अंसेषु व ऋष्टयः पत्सु खादयो वक्षःसु रुक्मा मरुतो रथे शुभः। अग्निभ्राजसो विद्युतो गभस्त्योः शिप्राः शीर्षसु वितता हिरण्ययीः ॥११॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अंसेषु। वः। ऋष्टयः। पत्ऽसु। खादयः। वक्षःऽसु। रुक्माः। मरुतः। रथे। शुभः। अग्निऽभ्राजसः। विऽद्युतः। गभस्त्योः। शिप्राः। शीर्षऽसु। विऽतताः। हिरण्ययीः ॥११॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 54; मन्त्र » 11
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 16; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्याः के कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मरुतो यदा वो वायुवद्वर्तमाना वीरा ! यद् वोंऽसेष्वृष्टयः पृत्सु खादयो वक्षःसु रुक्मा रथे शुभो गभस्त्योरग्निभ्राजसो विद्युतः शीर्षसु वितता हिरण्ययीः शिप्राः स्युस्तदा हस्तगतो विजयो वर्त्तते ॥११॥

    पदार्थः

    (अंसेषु) स्कन्धेषु (वः) युष्माकम् (ऋष्टयः) शस्त्रास्त्राणि (पत्सु) पादेषु (खादयः) भोक्तारः (वक्षःसु) (रुक्माः) सुवर्णालङ्काराः (मरुतः) मनुष्याः (रथे) रमणीये याने (शुभः) शुम्भमानाः (अग्निभ्राजसः) अग्निरिव प्रकाशमानाः (विद्युतः) तडितः (गभस्त्योः) हस्तयोर्मध्ये (शिप्राः) उष्णिषः (शीर्षसु) शिरस्सु (वितताः) विस्तृताः (हिरण्ययीः) सुवर्णप्रचुराः ॥११॥

    भावार्थः

    ये राजपुरुषा अहर्निशं राजकार्य्येषु प्रवीणा दुर्व्यसनेभ्यो विरक्ताः साङ्गोपाङ्गराजसामग्रीमन्तः स्युस्ते सदैव प्रतिष्ठां लभन्ते ॥११॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    फिर मनुष्य कौन कैसे हों, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (मरुतः) मनुष्यो ! जब (वः) आप लोगों के वायु के सदृश वर्त्तमान वीरजनो ! जो आप लोगों के (अंसेषु) कन्धों में (ऋष्टयः) शस्त्र और अस्त्र (पत्सु) पैरों में (खादयः) भोक्ताजन (वक्षःसु) वक्षःस्थलों में (रुक्माः) सुवर्ण अलंकार (रथे) सुन्दर वाहन में (शुभः) शोभित पदार्थ (गभस्त्योः) हाथों के मध्य में (अग्निभ्राजसः) अग्नि के सदृश प्रकाशमान (विद्युतः) बिजुलियाँ (शीर्षसु) शिरों में (वितताः) विस्तृत (हिरण्ययीः) सुवर्ण जिनमें बहुत ऐसी (शिप्राः) पगड़ियाँ होवें, तब हस्तगत विजय होता है ॥११॥

    भावार्थ

    जो राजपुरुष अहर्निश राजकार्य्यों में प्रवीण, दुर्व्यसनों से विरक्त और साङ्गोपाङ्ग राजसामग्रीवाले हों, वे सदैव प्रतिष्ठा को प्राप्त होते हैं ॥११॥

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    विषय

    वीरों की पोशाक और उनका तेजः स्वरूप ।

    भावार्थ

    भा०-हे ( मरुतः ) वीर पुरुषो ! (वः) आप लोगों के (अंसेषु) कन्धों पर (ऋष्टयः) शत्रुहिंसक शस्त्रास्त्र सजें, (पत्सु) पैरों में (खादयः) भोक्ता जनों के समान नाना भोग्य पदार्थ प्राप्त हों, वा स्थिरता युक्त जूते आदि हों ( वक्षःसु ) छातियों पर (रुक्मा:) सुवर्ण के आभूषण हों। वे (रथे शुभः) रथों पर सुशोभित हों वे ( अग्नि-भ्राजसः ) अग्नि के समान कान्ति और प्रताप से युक्त होकर ( गभस्त्योः ) बाहुओं में ( विद्युतः) विशेष चमक वाले शस्त्र अस्त्र धारण करें और ( शीर्षसु ) सिरों पर ( वि-तताः) विविध प्रकार से मढ़ी वा बुनी हुई ( हिरण्ययीः ) सुवर्ण वा लोह की बनी ( शिप्राः ) पगड़ियां हों ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्दः- १, ३, ७, १२ जगती । २ विराड् जगती । ६ भुरिग्जगती । ११, १५. निचृज्जगती । ४, ८, १० भुरिक् त्रिष्टुप । ५, ९, १३, १४ त्रिष्टुप् ॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे राजपुरुष रात्रंदिवस राजकार्यात प्रवीण, दुर्व्यसनापासून दूर व संपूर्ण साधनांनी युक्त असतील तर त्यांना प्रतिष्ठा प्राप्त होते. ॥ ११ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Maruts, warriors of the winds for humanity, on your shoulders are blazing lances, at your feet your assistants, on your chests are shining corselets, on your chariot are flames of the purity of fire, in your hands are flashes of lightning, and on your heads are protective golden helmets. Victory is assured.

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