ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 27/ मन्त्र 4
ऋषि: - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
ए॒तत्यत्त॑ इन्द्रि॒यम॑चेति॒ येनाव॑धीर्व॒रशि॑खस्य॒ शेषः॑। वज्र॑स्य॒ यत्ते॒ निह॑तस्य॒ शुष्मा॑त्स्व॒नाच्चि॑दिन्द्र पर॒मो द॒दार॑ ॥४॥
स्वर सहित पद पाठए॒तत् । त्यत् । ते॒ । इ॒न्द्रि॒यम् । अ॒चे॒ति॒ । येन॑ । अव॑धीः । व॒रऽशि॑खस्य । शेषः॑ । वज्र॑स्य । यत् । ते॒ । निऽह॑तस्य । शुष्मा॑त् । स्व॒नात् । चि॒त् । इ॒न्द्र॒ । प॒र॒मः । द॒दार॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एतत्यत्त इन्द्रियमचेति येनावधीर्वरशिखस्य शेषः। वज्रस्य यत्ते निहतस्य शुष्मात्स्वनाच्चिदिन्द्र परमो ददार ॥४॥
स्वर रहित पद पाठएतत्। त्यत्। ते। इन्द्रियम्। अचेति। येन। अवधीः। वरऽशिखस्य। शेषः। वज्रस्य। यत्। ते। निऽहतस्य। शुष्मात्। स्वनात्। चित्। इन्द्र। परमः। ददार ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 27; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनाराजप्रजाः कथं वर्तेरन्नित्याह ॥
अन्वयः
हे इन्द्र ! परमो भवान् यद्ददार त्यदेतत्ते वज्रस्य सकाशान्निहतस्येन्द्रियमचेति येन वरशिखस्य ते शेषस्त्वमवधीर्विद्युच्चिच्छुष्मात् स्वनाद्भाययति तथैव त्वं दुष्टान्त्सभयान् कुर्याः ॥४॥
पदार्थः
(एतत्) (त्यत्) तत् (ते) तव (इन्द्रियम्) (अचेति) चेतयति (येन) (अवधीः) हन्यात् (वरशिखस्य) वरा श्रेष्ठा शिखा यस्य तस्य (शेषः) (वज्रस्य) विद्युतः (यत्) (ते) तव (निहतस्य) निपतितस्य (शुष्मात्) बलाच्छोषणात् (स्वनात्) शब्दात् (चित्) इव (इन्द्र) सूर्य इव राजन् (परमः) श्रेष्ठः (ददार) विदृणाति ॥४॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। यो राजा विद्युद्वत्पराक्रमी विज्ञानवर्धको न्यायव्यवहारे सूर्यवत्प्रकाशते स एव राजशिरोमणिर्विज्ञेयः ॥४॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर राजा और प्रजा को कैसा वर्त्ताव करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (इन्द्र) सूर्य के समान राजन् ! (परमः) श्रेष्ठ आप (यत्) जिसको (ददार) विदीर्ण करते हैं (त्यत्) उस (एतत्) इसको (ते) आपकी (वज्रस्य) बिजुली के समीप से (निहतस्य) गिराये गए का (इन्द्रियम्) मन (अचेति) जनाता है (येन) जिससे (वरशिखस्य) श्रेष्ठ शिखावाले (ते) आपका (शेषः) शेष है और आप (अवधीः) नाश करें और बिजुली (चित्) जैसे (शुष्मात्) बल और शोषण से (स्वनात्) शब्द से भय देती है, वैसे ही आप दुष्टों को भयभीत करिये ॥४॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो राजा बिजुली के समान पराक्रमी, विज्ञान को बढ़ानेवाला, न्याय के व्यवहार में सूर्य के सदृश प्रकाशित होता है, वही राजाओं में शिरोमणि समझना चाहिए ॥४॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो राजा विद्युतप्रमाणे पराक्रमी, विज्ञानवर्धक, न्याय व्यवहारात सूर्याप्रमाणे तेजस्वी असतो तोच राजांमध्ये शिरोमणी समजला पाहिजे. ॥ ४ ॥
English (1)
Meaning
Indra, lord of power and perfection, this omnipotence of yours is apprehended when with it you strike and destroy the greatest and highest adversary to the very end, which too is just the tip of the might of omnipotence, and when, by the force of the mere roar and rumble of the thunderbolt hurled, the proudest enemy is shattered.
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