ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 4/ मन्त्र 4
ऋषि: - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - निचृत्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
व॒द्मा हि सू॑नो॒ अस्य॑द्म॒सद्वा॑ च॒क्रे अ॒ग्निर्ज॒नुषाज्मान्न॑म्। स त्वं न॑ ऊर्जसन॒ ऊर्जं॑ धा॒ राजे॑व जेरवृ॒के क्षे॑ष्य॒न्तः ॥४॥
स्वर सहित पद पाठव॒द्मा । हि । सू॒नो॒ इति॑ । असि॑ । अ॒द्म॒ऽसद्वा॑ । च॒क्रे । अ॒ग्निः । ज॒नुषा॑ । अज्म॑ । अन्न॑म् । सः । त्वम् । नः॒ । ऊ॒र्ज॒ऽस॒ने॒ । ऊर्ज॑म् । धाः॒ । राजा॑ऽइव । जेः॒ । अ॒वृ॒के । क्षे॒षि॒ । अ॒न्तरिति॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वद्मा हि सूनो अस्यद्मसद्वा चक्रे अग्निर्जनुषाज्मान्नम्। स त्वं न ऊर्जसन ऊर्जं धा राजेव जेरवृके क्षेष्यन्तः ॥४॥
स्वर रहित पद पाठवद्मा। हि। सूनो इति। असि। अद्मऽसद्वा। चक्रे। अग्निः। जनुषा। अज्म। अन्नम्। सः। त्वम्। नः। ऊर्जऽसने। ऊर्जम्। धाः। राजाऽइव। जेः। अवृके। क्षेषि। अन्तरिति ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 4; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 5; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 5; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे सूनो ! वद्माऽद्मसद्वाग्निर्जनुषाऽज्मान्नं प्राप्तवानसि शुद्धं चक्रे स हि त्वं न ऊर्जसने राजेवोर्जं धा अवृकेऽन्तर्जेः क्षेषि च ॥४॥
पदार्थः
(वद्मा) यो वदति (हि) (सूनो) यत्सूते सकलं जगत् तत्सम्बुद्धौ (असि) (अद्मसद्वा) यो अद्मेषु भोक्तव्येषु सीदति (चक्रे) करोति (अग्निः) पावकः (जनुषा) जन्मना (अज्म) प्राप्तव्यम् (अन्नम्) अत्तव्यम् (सः) (त्वम्) (नः) अस्मान् (ऊर्जसने) पराक्रमस्य प्रक्षेपणे (ऊर्जम्) पराक्रमम् (धाः) धेहि (राजेव) प्रकाशमानो नृपइव (जेः) जयेः (अवृके) अचोरे (क्षेषि) निवसेः (अन्तः) मध्ये ॥४॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! ये विद्वांसस्त ईश्वरवत्पक्षपातरहिता धर्म्मे निवसन्तः परमेश्वरं भजन्तु ॥४॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (सूनो) सम्पूर्ण जगत् के रचनेवाले ! (वद्मा) कहने और (अद्मसद्वा) भोग्य पदार्थों में प्राप्त रहनेवाले (अग्निः) पवित्र (जनुषा) जन्म से (अज्म) प्राप्त होने और (अन्नम्) खाने योग्य पदार्थ को प्राप्त हुए (असि) हो और शुद्ध (चक्रे) करते हो (सः) वह (हि) निश्चय से (त्वम्) आप (नः) हम लोगों के लिये (ऊर्जसने) पराक्रम के प्रक्षेपण में (राजेव) जैसे प्रकाशमान राजा, वैसे (ऊर्जम्) पराक्रम क्रो (धाः) धारण करिये (अवृके) चोर से रहित के (अन्तः) मध्य में (जेः) जीतिये और (क्षेषि) निवास करिये ॥४॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्यो ! जो विद्वान् जन हैं, वे ईश्वर के सदृश पक्षपात से रहित और धर्म्ममार्ग में निवास करते हुए परमेश्वर का भजन करें ॥४॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो, जे विद्वान लोक आहेत त्यांनी ईश्वराप्रमाणे भेदभावरहित व धर्ममार्गात स्थित राहून परमेश्वराचे भजन करावे. ॥ ४ ॥
English (1)
Meaning
O inspirer of life, Agni, self-manifestive loud and bold, you are all pervasive in everything that is food for life since by nature and operation you generate both food and energy. O creator and giver of energy, bear and bring us food and energy, be victorious like a ruler and abide in peace and non-violence as an inspiration.
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