ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 53/ मन्त्र 6
वि पू॑ष॒न्नार॑या तुद प॒णेरि॑च्छ हृ॒दि प्रि॒यम्। अथे॑म॒स्मभ्यं॑ रन्धय ॥६॥
स्वर सहित पद पाठवि । पू॒ष॒न् । आर॑या । तु॒द॒ । प॒णेः । इ॒च्छ॒ । हृ॒दि । प्रि॒यम् । अथ॑ । ई॒म् । अ॒स्मभ्य॑म् । र॒न्ध॒य॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वि पूषन्नारया तुद पणेरिच्छ हृदि प्रियम्। अथेमस्मभ्यं रन्धय ॥६॥
स्वर रहित पद पाठवि। पूषन्। आरया। तुद। पणेः। इच्छ। हृदि। प्रियम्। अथ। ईम्। अस्मभ्यम्। रन्धय ॥६॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 53; मन्त्र » 6
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 18; मन्त्र » 1
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अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 18; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राजा किं कुर्य्यादित्याह ॥
अन्वयः
हे पूषँस्त्वं दुष्टानीम्रन्धयाऽस्मभ्यं हृदि प्रियमिच्छाऽथाऽऽरया वृषभानिव पणेरसम्बन्धिनो वि तुद ॥६॥
पदार्थः
(वि) (पूषन्) पुष्टिकर्त्तः (आरया) (तुद) व्यथय (पणेः) प्रशंसितव्यवहारकर्त्तुः (इच्छ) (हृदि) हृदये (प्रियम्) (अथ) (ईम्) सर्वतः (अस्मभ्यम्) (रन्धय) ॥६॥
भावार्थः
हे राजंस्त्वं दुष्टान् दण्डयित्वा श्रेष्ठान् सत्कृत्य सर्वान् सत्कर्मसु प्रेरय ॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राजा क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (पूषन्) पुष्टि करनेवाले ! आप दुष्टों को (ईम्) सब ओर से (रन्धय) अति पीड़ित करो तथा (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (हृदि) हृदय में (प्रियम्) प्यारे पदार्थ की (इच्छ) इच्छा करो (अथ) इसके अनन्तर (आरया) कोड़ा से बैलों के समान (पणेः) प्रशंसित व्यवहार करनेवाले के असम्बन्धी जनों को (वि, तुद) विशेषता से पीड़ा देओ ॥६॥
भावार्थ
हे राजन् ! आप दुष्टों को दण्ड देकर श्रेष्ठों का सत्कार कर सब को श्रेष्ठ कर्मों में प्रेरणा देओ ॥६॥
विषय
missing
भावार्थ
हे (पूषन् ) निर्बलों के पक्ष को पोषण करने हारे ! प्रजापोषक राजन् ! तू ( पणेः ) व्यवहार में लगे दुष्ट जनों को (आरया) दण्ड व्यवस्था से, पशुओं को चोब से जैसे वैसे ही ( वि तुद) विविध प्रकार से व्यथित किया कर और ( हृदि ) हृदय में ( प्रियम् ) उनका प्रिय हित ( इच्छ ) चाहा कर । ( अथ ईम् अस्मभ्यम् रन्धय ) और उनको हमारे हितार्थ वश कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ पूषा देवता ॥ छन्दः १, ३, ४, ६, ७, १० गायत्री । २, ५, ९ निचृद्गायत्री । ८ निचृदनुष्टुप् ।। दशर्चं सूक्तम् ।।
विषय
आरया तुद
पदार्थ
[१] गत मन्त्र की भावना को ही इस रूप में कहते हैं कि हे (पूषन्) = पोषक प्रभो ! (पणेः) = धनलुब्ध वणिक् के हृदय को (आरया) = ज्ञान वाणी रूप प्रतोद से (वितुद) = खूब ही व्यथितकर। इस पणि को हृदय में (प्रियं इच्छ) = प्रियता को उत्पन्न करिये, 'देना ही चाहिये' ऐसी इच्छा को पैदा करिये । [२] (अथ) = अब (ईम्) = निश्चय से इसके मन को (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (रन्धय) = वशीभूत करिये । यह पणि भी हमारे लिये देने की वृत्तिवाला बने ।
भावार्थ
भावार्थ- सर्वपोषक प्रभु अदाता कृपण के हृदय में भी प्रिय वृत्ति को उत्पन्न करें, यह भी 'देना ही चाहिए' ऐसी वृत्तिवाला बने। समाज की स्थिति दान की उत्तम प्रणाली पर ही आश्रित है।
मराठी (1)
भावार्थ
हे राजा ! तू दुष्टांना दंड देऊन श्रेष्ठांचा सत्कार करून सर्वांना सत्कर्माची प्रेरणा दे. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Pusha, lord giver of life, nourishment and inspiration, smite the callous, calculating and miserly in the heart with the pangs of affliction, wish him well for love and season him in the crucibles of remorse for our sake.
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