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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 59 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 59/ मन्त्र 10
    ऋषि: - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    इन्द्रा॑ग्नी उक्थवाहसा॒ स्तोमे॑भिर्हवनश्रुता। विश्वा॑भिर्गी॒र्भिरा ग॑तम॒स्य सोम॑स्य पी॒तये॑ ॥१०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । उ॒क्थ॒ऽवा॒ह॒सा॒ । स्तोमे॑भिः । ह॒व॒न॒ऽश्रु॒ता॒ । विश्वा॑भिः । गीः॒ऽभिः । आ । ग॒त॒म् । अ॒स्य । सोम॑स्य । पी॒तये॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्राग्नी उक्थवाहसा स्तोमेभिर्हवनश्रुता। विश्वाभिर्गीर्भिरा गतमस्य सोमस्य पीतये ॥१०॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्राग्नी इति। उक्थऽवाहसा। स्तोमेभिः। हवनऽश्रुता। विश्वाभिः। गीःऽभिः। आ। गतम्। अस्य। सोमस्य। पीतये ॥१०॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 59; मन्त्र » 10
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 26; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    मनुष्याः किं कृत्वा विद्युद्विद्यां जानीयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे इन्द्राग्नी जानन्तावुक्थवाहसा हवनश्रुता ! युवां स्तोमेभिर्विश्वाभिर्गीभिः सहास्य सोमस्य पीतय आ गतम् ॥१०॥

    पदार्थः

    (इन्द्राग्नी) वायुविद्युताविव (उक्थवाहसा) प्रशंसितविद्याप्रापकौ (स्तोमेभिः) प्रशंसाभिः (हवनश्रुता) यौ हवनानि शृण्वतस्तौ (विश्वाभिः) समग्राभिः (गीर्भिः) विद्याशिक्षायुक्ताभिर्वाग्भिः (आ) (गतम्) आगच्छतम् (अस्य) (सोमस्य) महौषधिरसस्य (पीतये) पानाय ॥१०॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। त एव विद्युद्विद्यां वेत्तुमर्हन्ति ये विद्वद्भ्यो विद्यां प्राप्तुं प्रयतन्त इति ॥१०॥ अत्रेन्द्राऽग्निगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्येकोनषष्टितमं सूक्तं षड्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    मनुष्या क्या करके बिजुली की विद्या जानें, इस विषयको कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्राग्नी) वायु और बिजुली के समान पदार्थों को जानते हुए (उक्थवाहसा) प्रशंसित विद्या की प्राप्ति कराने और (हवनश्रुता) हवनों को सुननेवालो ! तुम (स्तोमेभिः) प्रशंसाओं से और (विश्वाभिः) समस्त (गीर्भिः) विद्या और उत्तम शिक्षायुक्त वाणियों के साथ (अस्य) इस (सोमस्य) महौषधियों के रसके (पीतये) पीने को (आ, गतम्) आओ ॥१०॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। वे ही बिजुली की विद्या को जानने योग्य होते हैं, जो विद्वानों से विद्या पाने का प्रयत्न करते हैं ॥१०॥ इस सूक्त में इन्द्र और अग्नि के गुणों का वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह उनसठवाँ सूक्त और छब्बीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे विद्वानांकडून विद्या प्राप्त करण्याचा प्रयत्न करतात तेच विद्युत विद्या जाणण्यायोग्य असतात. ॥ १० ॥

    English (1)

    Meaning

    Indra and Agni, light and energy of the spirit of life, carriers and harbingers of songs of adoration, listening close by to the invocations and celebrations of the yajakas, come with all words of appreciation and praise and all voices of commendation and elevation to our yajnic performance and to taste the nectar sweet of its essence distilled.

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