ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 6/ मन्त्र 6
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
आ भा॒नुना॒ पार्थि॑वानि॒ ज्रयां॑सि म॒हस्तो॒दस्य॑ धृष॒ता त॑तन्थ। स बा॑ध॒स्वाप॑ भ॒या सहो॑भिः॒ स्पृधो॑ वनु॒ष्यन् व॒नुषो॒ नि जू॑र्व ॥६॥
स्वर सहित पद पाठआ । भा॒नुना॑ । पार्थि॑वानि । ज्रयां॑सि । म॒हः । तो॒दस्य॑ । धृ॒ष॒ता । त॒त॒न्थ॒ । सः । बा॒ध॒स्व॒ । अप॑ । भ॒या । सहः॑ऽभिः । स्पृधः॑ । व॒नु॒ष्यन् । व॒नुषः॑ । नि । जू॒र्व॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ भानुना पार्थिवानि ज्रयांसि महस्तोदस्य धृषता ततन्थ। स बाधस्वाप भया सहोभिः स्पृधो वनुष्यन् वनुषो नि जूर्व ॥६॥
स्वर रहित पद पाठआ। भानुना। पार्थिवानि। ज्रयांसि। महः। तोदस्य। धृषता। ततन्थ। सः। बाधस्व। अप। भया। सहःऽभिः। स्पृधः। वनुष्यन्। वनुषः। नि। जूर्व ॥६॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 6; मन्त्र » 6
अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 8; मन्त्र » 6
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अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 8; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
मनुष्यैः किंवत् किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे विद्वन् राजन् ! यथा भानुना तोदस्य धृषता महः पार्थिवानि ज्रयांस्याऽऽततन्थ तथा स त्वं सहोभिर्भयाऽप बाधस्व वनुषो वनुष्यन् स्पृधो नि जूर्व ॥६॥
पदार्थः
(आ) समन्तात् (भानुना) किरणेन (पार्थिवानि) पृथिव्यां विदितानि कार्य्याणि पृथिव्यादिकृतानि वा (ज्रयांसि) ज्ञातव्यानि। ज्रयतीति गतिकर्म्मा। (निघं०२.१४) (महः) महांसि (तोदस्य) प्रेरणस्य (धृषता) प्रगल्भेन (ततन्थ) विस्तृणोषि (सः) (बाधस्व) (अप) (भया) भयानि (सहोभिः) बलैः (स्पृधः) सङ्ग्रामान् (वनुष्यन्) सेवयन् (वनुषः) सेवनीयान् (नि) (जूर्व) हिन्धि ॥६॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । ये प्रेम्णा सखायो भूत्वा सूर्य्यस्तम इव भयानि निःसार्य्य सङ्ग्रामाञ्जयन्ति ते प्रतिष्ठिता भवन्ति ॥६॥
हिन्दी (1)
विषय
मनुष्यों को किस के सदृश क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्वन् राजन् ! जैसे आप (भानुना) किरण से (तोदस्य) प्रेरण के (धृषता) ढीठ से (महः) बड़े (पार्थिवानि) पृथिवी में विदित कार्य्य वा पृथिवी आदि से कृत (ज्रयांसि) जानने योग्यों का (आ) चारों ओर से (ततन्थ) विस्तार करते हैं, वैसे (सः) वह आप (सहोभिः) बलों से (भया) भयों की (अप, बाधस्व) अतीव बाधा करो और (वनुषः) सेवन करने योग्यों का (वनुष्यन्) सेवन कराते हुए (स्पृधः) संग्रामों का (नि, जूर्व) नाश करिये ॥ ६ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो प्रेम से मित्र होकर जैसे सूर्य्य अन्धकार को, वैसे भयों को दूर करके संग्रामों को जीतते हैं, वे प्रतिष्ठित होते हैं ॥६॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे प्रेमाने मित्र बनून सूर्य जसा अंधकार दूर करतो तसे भयाचे निवारण करतात ते युद्ध जिंकतात व प्रतिष्ठित होतात. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, leading light and ruler of the world, with your light spread over all places and activities of the earth, and shine by the great and glorious radiation of your power. With your force and power, resist and repel all fears and envious contenders and, saving and protecting those who ought to be served and protected, break down the enmities and negativities.
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