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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 62 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 62/ मन्त्र 9
    ऋषि: - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - अश्विनौ छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    य ईं॒ राजा॑नावृतु॒था वि॒दध॒द्रज॑सो मि॒त्रो वरु॑ण॒श्चिके॑तत्। ग॒म्भी॒राय॒ रक्ष॑से हे॒तिम॑स्य॒ द्रोघा॑य चि॒द्वच॑स॒ आन॑वाय ॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । ई॒म् । राजा॑नौ । ऋ॒तु॒ऽथा । वि॒ऽदध॑त् । रज॑सः । मि॒त्रः । वरु॑णः । चिके॑तत् । ग॒म्भी॒राय॑ । रक्ष॑से । हे॒तिम् । अ॒स्य॒ । द्रोघा॑य । चि॒त् । वच॑से । आन॑वाय ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    य ईं राजानावृतुथा विदधद्रजसो मित्रो वरुणश्चिकेतत्। गम्भीराय रक्षसे हेतिमस्य द्रोघाय चिद्वचस आनवाय ॥९॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः। ईम्। राजानौ। ऋतुऽथा। विऽदधत्। रजसः। मित्रः। वरुणः। चिकेतत्। गम्भीराय। रक्षसे। हेतिम्। अस्य। द्रोघाय। चित्। वचसे। आनवाय ॥९॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 62; मन्त्र » 9
    अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 2; मन्त्र » 4
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्स किं कुर्य्यादित्याह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वांसो ! यो मित्रो वरुणो गम्भीरायाऽऽनवाय वचसे चिदपि द्रोघाय रक्षसेऽस्योपरि हेतिं रजस ऋतुथा राजानौ विदधत्सन्नीं चिकेतत्तं यूयमुत्साहयत ॥९॥

    पदार्थः

    (यः) (ईम्) सर्वतः (राजानौ) प्रकाशमानौ सूर्य्याचन्द्रमसाविव सभासेनेशौ (ऋतुथा) ऋतुभ्यः (विदधत्) विधानं कुर्वन् (रजसः) लोकजातस्य (मित्रः) सुहृत् (वरुणः) शमादिगुणान्वितः (चिकेतत्) चिकेतति विजानाति (गम्भीराय) (रक्षसे) दुष्टाचरणाय (हेतिम्) वज्रम् (अस्य) (द्रोघाय) द्रोहाय (चित्) अपि (वचसे) वचनाय (आनवाय) समन्तान्नवीनाय ॥९॥

    भावार्थः

    यथा सूर्याचन्द्रमसावृतून् विभज्यान्धकारं निवार्य्य जगत्सुखयतस्तथैव विद्यादिशुभगुणप्रचारं जगति प्रकल्प्य सत्याऽसत्ये विभज्याऽविद्याऽन्धकारं निवार्य विद्वांसः सर्वानानन्दयन्ति ॥९॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर वह क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वानो ! (यः) जो (मित्रः) मित्र वा (वरुणः) शमादिगुण युक्त जन (गम्भीराय) गम्भीर (आनवाय) सब ओर से नवीन (वचसे) वचन के लिये (चित्) और (द्रोघाय) द्रोह तथा (रक्षसे) दुष्ट आचरणवाले के लिये (अस्य) इसके ऊपर (हेतिम्) वज्र को (रजसः) और लोकजात के (ऋतुथा) ऋतुओं से (राजानौ) प्रकाशमान सूर्य और चन्द्रमा के तुल्य सभासेनापति को (विदधत्) विधान करता हुआ (ईम्) सब ओर से (चिकेतत्) जानता है, उसको तुम उत्साह देओ ॥९॥

    भावार्थ

    जैसे सूर्य्य चन्द्रमा ऋतुओं को बाँट और अन्धकार निवारण कर जगत् को सुखी करते हैं, वैसे ही विद्यादि शुभगुणों का प्रचार संसार में अच्छे प्रकार समर्थन, सत्य और असत्य का विभाग और अविद्यान्धकार का निवारण कर विद्वान् जन सबको आनन्दित करते हैं ॥९॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसे सूर्य व चंद्र ऋतूंचे विभाजन व अंधकाराचे निवारण करून जगाला सुखी करतात तसेच विद्वान लोक विद्या इत्यादी शुभ गुणांचा जगात प्रचार करून सत्यासत्याचे विभाजन करून अविद्यांधकाराचे निवारण करून सर्वांना आनंदित करतात. ॥ ९ ॥

    English (1)

    Meaning

    Let Mitra, man of love, and Varuna, man of judgement and discrimination, who fully knows and serves the Ashvins, pervasive and dynamic lights and rulers of world regions, according to the seasons of time, wield and duly order their power and force in respect of the inscrutable, the demoniac, the malignant as also for the latest word of praise or calumny.

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