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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 7/ मन्त्र 3
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - वैश्वानरः छन्दः - निचृत्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    त्वद्विप्रो॑ जायते वा॒ज्य॑ग्ने॒ त्वद्वी॒रासो॑ अभिमाति॒षाहः॑। वैश्वा॑नर॒ त्वम॒स्मासु॑ धेहि॒ वसू॑नि राजन्त्स्पृह॒याय्या॑णि ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वत् । विप्रः॑ । जा॒य॒ते॒ । वा॒जी । अ॒ग्ने॒ । त्वत् । वी॒रासः॑ । अ॒भि॒मा॒ति॒ऽसहः॑ । वैश्वा॑नर । त्वम् । अ॒स्मासु॑ । धे॒हि॒ । वसू॑नि । रा॒ज॒न् । स्पृ॒ह॒याय्या॑णि ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वद्विप्रो जायते वाज्यग्ने त्वद्वीरासो अभिमातिषाहः। वैश्वानर त्वमस्मासु धेहि वसूनि राजन्त्स्पृहयाय्याणि ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वत्। विप्रः। जायते। वाजी। अग्ने। त्वत्। वीरासः। अभिमातिऽसहः। वैश्वानर। त्वम्। अस्मासु। धेहि। वसूनि। राजन्। स्पृहयाय्याणि ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 7; मन्त्र » 3
    अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 9; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स राजा कीदृशो भवेदित्याह ॥

    अन्वयः

    हे वैश्वानराऽग्ने राजन् ! यस्मात् त्वद्विप्रो वाजी जायते त्वदभिमातिषाहो वीरासो जायन्ते ततस्त्वमस्मासु स्पृहयाय्याणि वसूनि धेहि ॥३॥

    पदार्थः

    (त्वत्) तव सकाशात् (विप्रः) मेधावी (जायते) (वाजी) वेगवान् (अग्ने) पावकवत्प्रतापिन् विद्वन् (त्वत्) (वीरासः) शूरवीराः (अभिमातिषाहः) येऽभिमात्याऽभिमानेन युक्ताञ्छत्रून् सहन्ते (वैश्वानर) विश्वेषु नरेषु नायक (त्वम्) (अस्मासु) (धेहि) (वसूनि) (राजन्) (स्पृहयाय्याणि) स्पृहणीयानि ॥३॥

    भावार्थः

    स एव राजा भवितुं योग्यो यस्य सङ्गेन दुष्टा अपि श्रेष्ठाः कातरा अपि शूरवीराः कृपणा अपि दातारो भवन्ति ॥३॥

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    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर वह राजा कैसा होवे, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (वैश्वानर) संपूर्ण जनों में अग्रणी (अग्ने) अग्नि के सदृश प्रतापी विद्वन् (राजन्) राजन् ! जिस कारण से (त्वत्) आपके समीप से (विप्रः) बुद्धिमान् (वाजी) वेगयुक्त (जायते) होता है और (त्वत्) आपके समीप से (अभिमातिषाहः) अभिमानयुक्त शत्रुओं के सहनेवाले (वीरासः) शूरवीर जन प्रकट होते हैं इससे (त्वम्) आप (अस्मासु) हम लोगों में (स्पृहयाय्याणि) इच्छा के विषय होने योग्य (वसूनि) धनों को (धेहि) धारण करिये ॥३॥

    भावार्थ

    वही राजा होने को योग्य है जिसके सङ्ग दुष्ट जन भी श्रेष्ठ, कायर भी शूरवीर और कृपण भी दाता होते हैं ॥३॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्याच्या संगतीने दुष्ट लोकही श्रेष्ठ, भित्राही शूरवीर व कृपणही दाता होतो तोच राजा होण्यायोग्य असतो. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O leading light of the world, Agni, by you arises the dedicated scholar, energy, sustenance and progress, and the warriors who brave the challenges and win. O Vaishvanara, fire of earthly existence, brilliant leader and ruler, lead us to wealths of the world worthy of being fought for and won.

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