ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 39/ मन्त्र 7
नू रोद॑सी अ॒भिष्टु॑ते॒ वसि॑ष्ठैर्ऋ॒तावा॑नो॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॒ग्निः। यच्छ॑न्तु च॒न्द्रा उ॑प॒मं नो॑ अ॒र्कं यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥७॥
स्वर सहित पद पाठनु । रोद॑सी॒ इति॑ । अ॒भिस्तु॑ते॒ इत्य॒भिऽस्तु॑ते । वसि॑ष्ठैः । ऋ॒तऽवा॑नः । वरु॑णः । मि॒त्रः । अ॒ग्निः । यच्छ॑न्तु । च॒न्द्राः । उ॒प॒ऽमम् । नः॒ । अ॒र्कम् । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नू रोदसी अभिष्टुते वसिष्ठैर्ऋतावानो वरुणो मित्रो अग्निः। यच्छन्तु चन्द्रा उपमं नो अर्कं यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः ॥७॥
स्वर रहित पद पाठनु। रोदसी इति। अभिस्तुते इत्यभिऽस्तुते। वसिष्ठैः। ऋतऽवानः। वरुणः। मित्रः। अग्निः। यच्छन्तु। चन्द्राः। उपऽमम्। नः। अर्कम्। यूयम्। पात। स्वस्तिऽभिः। सदा। नः ॥७॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 39; मन्त्र » 7
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 6; मन्त्र » 7
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अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 6; मन्त्र » 7
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्विद्वांसोऽन्येभ्यः किं प्रदद्युरित्याह ॥
अन्वयः
यथा वरुणो मित्रोऽग्निश्चर्तावानश्चन्द्रा वसिष्ठैस्सहाभिष्टुते रोदसी उपममर्कं नो नु यच्छन्तु तथा हे विद्वांसो ! यूयं स्वस्तिभिर्नस्सदा पात ॥७॥
पदार्थः
(नु) सद्यः। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (अभिष्टुते) अभितः प्रशंसनीये (वसिष्ठैः) अतिशयेन वायसितृभिः (ऋतावानः) सत्यं याचमानाः (वरुणः) वरः (मित्रः) सुहृत् (अग्निः) पावक इव विद्यादिशुभगुणप्रकाशितः (यच्छन्तु) ददतु (चन्द्राः) आह्लादकराः (उपमम्) येनोपमीयते तम् (नः) अस्मभ्यम् (अर्कम्) सत्कर्तव्यमन्नं विचारं वा (यूयम्) (पात) (स्वस्तिभिः) (सदा) (नः) ॥७॥
भावार्थः
ये विद्वांस आप्तैस्सहानुपमं विज्ञानं प्रयच्छन्ति तेऽस्मान् सदा रक्षितुं शक्नुवन्तीति ॥७॥ अत्र विश्वेदेवगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्येकोनचत्वारिंशत्तमं सूक्तं षष्ठो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर विद्वान् जन औरों के लिये क्या देवें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
जैसे (वरुणः) श्रेष्ठ (मित्रः) मित्र (अग्निः) अग्नि के समान विद्यादि शुभ गुणों से प्रकाशित और (ऋतावानः) सत्य को याचने वा (चन्द्राः) हर्ष करनेवाले जन (वसिष्ठैः) वसानेवाले के साथ (अभिष्टुते) सब ओर से प्रशंसित (रोदसी) प्रकाश और पृथिवी (उपमम्) जिस से उपमा दी जावे उस (अर्कम्) सत्कार करने योग्य अन्न वा विचार को (नः) हम लोगों के लिये (नु) शीघ्र (यच्छन्तु) देवें, वैसे हे विद्वानो ! (यूयम्) तुम (स्वस्तिभिः) सुखों से (नः) हमारी (सदा) सदैव (पात) रक्षा कीजिये ॥७॥
भावार्थ
जो विद्वान् जन धर्मात्मा, विद्वानों के साथ जिसकी उपमा नहीं उस विज्ञान को देते हैं, वे हम लोगों की रक्षा कर सकते हैं ॥७॥ इस सूक्त में विश्वेदेवों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह उनतालीसवाँ सूक्त और छठा वर्ग समाप्त हुआ ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे विद्वान धर्मात्मा, विद्वानांना अनुपम विज्ञान देतात ते आमचेही रक्षण करू शकतात. ॥ ७ ॥
English (1)
Meaning
Thus heaven and earth are adored and celebrated by brilliant sages. May Varuna, Mitra and Agni, lords of truth and law, justice, love and light, grant us gifts of exemplary beauty, bliss and brilliance. O Vishvedevas, pray always protect and promote us with all modes of peace, progress and all round well being.
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