ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 69/ मन्त्र 7
यु॒वं भु॒ज्युमव॑विद्धं समु॒द्र उदू॑हथु॒रर्ण॑सो॒ अस्रि॑धानैः । प॒त॒त्रिभि॑रश्र॒मैर॑व्य॒थिभि॑र्दं॒सना॑भिरश्विना पा॒रय॑न्ता ॥
स्वर सहित पद पाठयु॒वम् । भु॒ज्युम् । अव॑ऽविद्धम् । स॒मु॒द्रे । उत् । ऊ॒ह॒थुः॒ । अर्ण॑सः । अस्रि॑धानैः । प॒त॒त्रिऽभिः॑ । अ॒श्र॒मैः । अ॒व्य॒थिऽभिः॑ । दं॒सना॑भिः । अ॒श्वि॒ना॒ । पा॒रय॑न्ता ॥
स्वर रहित मन्त्र
युवं भुज्युमवविद्धं समुद्र उदूहथुरर्णसो अस्रिधानैः । पतत्रिभिरश्रमैरव्यथिभिर्दंसनाभिरश्विना पारयन्ता ॥
स्वर रहित पद पाठयुवम् । भुज्युम् । अवऽविद्धम् । समुद्रे । उत् । ऊहथुः । अर्णसः । अस्रिधानैः । पतत्रिऽभिः । अश्रमैः । अव्यथिऽभिः । दंसनाभिः । अश्विना । पारयन्ता ॥ ७.६९.७
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 69; मन्त्र » 7
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 16; मन्त्र » 7
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 16; मन्त्र » 7
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अश्विना) हे शौर्यशालिनो राजपुरुषाः ! (समुद्रे) उदधौ (अवविद्धम्) मग्नं (युवम्) युष्माकं (भुज्युम्) राजानं (अस्रिधानैः, पतत्रिभिः) अनुन्मग्नैर्जलयानैः (अव्यथिभिः, दंसनाभिः, अश्रमैः) स्वकीयापूर्वशारीरिकपरिश्रमैः (उत) च (अर्णासः) जलप्रवाहात् (ऊहथुः) समुत्थाप्य (पारयन्ता) सन्तारयत ॥७॥
हिन्दी (1)
पदार्थ
(अश्विना) हे शूरवीर राजपुरुषो ! (समुद्रे, अवविद्धम्) समुद्र में गिरे हुए (युवं, भुज्युम्) अपने युवा सम्राट् को (अस्रिधानैः, पतत्रिभिः) न डूबनेवाले जहाजों (उत) और (अव्यथिभिः, दंसनाभिः, अश्रमैः) अपने अनथक शारीरिक परिश्रमों द्वारा (अर्णासः) जलप्रवाहों से (ऊहथुः) निकालकर (पारयन्ता) पार करो ॥७॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे शूरवीर राजपुरुषो ! तुम्हारी राज्यरूप श्री का भुज्यु=भोक्ता सम्राट् समुद्र में स्थित है अर्थात् “समुद्द्रवन्त्यस्मादापः स समुद्रः”=जिसमें भले प्रकार जल भरे हुए हों अथवा जो जलों का धारण करनेवाला हो, उसको “समुद्र” कहते हैं। इस व्युत्पत्ति से सागर तथा आकाश दोनों अर्थों में समुद्र शब्द प्रयुक्त होता है, जिसके अर्थ ये हैं कि हे शूरवीर राजपुरुषो ! तुम्हारे राज्य की श्री जो युवावस्था को प्राप्त अर्थात् चमकती हुई दोनों समुद्रों के मध्य विराजमान है, तुम लोग उसको जल की यात्रा करनेवाले जहाजों द्वारा अथवा आकाश की यात्रा करनेवाले विमानों द्वारा निकालो। तात्पर्य्य यह है कि उत्तम यन्त्रों द्वारा जलीय समुद्र की भली-भाँति यात्रा करनेवाले अथवा आकाशरूप समुद्र में गति करनेवाले योद्धा पुरुष ही उस श्री को समुद्र से निकालकर ऐश्वर्य्यसम्पन्न हुए सुख भोग करते हैं, अन्य नहीं। वास्तव में भुज्यु के अर्थ सांसारिक श्रीभोक्ता सम्राट् के हैं, जिसके भाव को अल्पदर्शी टीकाकारों ने न समझकर ये अर्थ किये हैं कि कोई भुज्यु नामक पुरुष समुद्र में गिर गया था, उसके निकालने के लिए अश्विनीकुमारों से प्रार्थना की कि हे अश्विनीकुमारो ! तुम इसको किसी प्रकार निकालो। यह अर्थ वेदाशय से सर्वथा विरुद्ध है, जिसका समाधान पीछे भी कर आये हैं, क्योंकि यहाँ न किसी भुज्यु नामक पुरुष का वर्णन है और नाहीं किसी इतिहास में भुज्यु नाम के पुरुष का लेख है। यह भुज्यु गुणप्रधान नाम है, व्यक्तिप्रधान नहीं, जैसा कि इस सूक्त के उपक्रम और उपसंहार से प्रतीत होता है ॥७॥
English (1)
Meaning
O leaders and pioneers of the world, harbingers of light and power, you retrieve the ruling powers sunk in distress, recover the resources of wealth and joy hidden in the oceans, and you take them across the oceans of water and space to the shore to the wanted destination by unfailing, indefatigable and inviolable floating and flying machines created by your marvellous knowledge, power and skill.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की हे शूरवीर राजपुरुषांनो! तुमच्या राज्यरूपी श्रीचा भुज्यु=भोक्ता सम्राट समुद्रात स्थित आहे. अर्थात, ‘समुद्रद्रवन्त्यस्मादाप: स समुद्र’= ज्यात चांगल्या प्रकारे जल भरलेले असते किंवा जो जलाचे धारण करणारा असतो त्याला ‘समुद्र’ म्हणतात. या व्युत्पत्तीनुसार सागर व आकाश दोन्ही अर्थांनी समुद्र हा शब्द प्रयुक्त होतो. ज्याचा अर्थ असा, की हे शूरवीर राजपुरुषांनो! तुमच्या राज्याची श्री जी युवावस्थेत प्राप्त होते. अर्थात, तेजस्वीपणाने दोन्ही समुद्रामध्ये विराजमान असते, ती तुम्ही जलाची यात्रा करणाऱ्या जहाजाद्वारे अथवा आकाशाद्वारे यात्रा करणाऱ्या विमानांद्वारे शोधून काढा.
टिप्पणी
तात्पर्य हे, की उत्तम यंत्रांद्वारे जलीय समुद्राची चांगल्या प्रकारे यात्रा करणारे किंवा आकाशरूपी समुद्रात गती करणारे योद्धे पुरुषच त्या श्रीला समुद्रातून काढून ऐश्वर्यसंपन्न होऊन सुखभोग करतात, इतर नाही. वास्तविक भुज्युचा अर्थ सांसारिक श्री (ऐश्वर्य) भोक्ता सम्राट आहे. ज्याचा अर्थ न समजता अल्पदर्शी टीकाकारांनी वेगळा अर्थ काढलेला आहे. कुणी भुज्यु नावाचा पुरुष समुद्रात पडला होता. त्याला काढण्यासाठी अश्विनीकुमारांना प्रार्थना केली, की हे अश्विनीकुमारांनो! तुम्ही याला कसेही करून काढा. हा अर्थ वेदाशयाचा विरुद्ध आहे. ज्याचा उलगडा पूर्वी केलेला आहे. कारण येथे कुणी भुज्यु नावाचा पुरुष किंवा इतिहासात भुज्यु नावाचा पुरुष हे वर्णन नाही, तर भुज्यु हे गुणप्रधान नाव आहे. व्यक्तिप्रधान नाव नाही. जसे या सूक्ताच्या उपक्रम व उपसंहारात दिसून येते. ॥७॥
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