ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 76/ मन्त्र 7
ए॒षा ने॒त्री राध॑सः सू॒नृता॑नामु॒षा उ॒च्छन्ती॑ रिभ्यत॒॒ वसि॑ष्ठैः । दी॒र्घ॒श्रुतं॑ र॒यिम॒स्मे दधा॑ना यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षा । ने॒त्री । राध॑सः । सू॒नृता॑नाम् । उ॒षाः । उ॒च्छन्ती॑ । रि॒भ्य॒ते॒ । वसि॑ष्ठैः । दी॒र्घ॒ऽश्रुत॑म् । र॒यिम् । अ॒स्मे इति॑ । दधा॑ना । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एषा नेत्री राधसः सूनृतानामुषा उच्छन्ती रिभ्यत वसिष्ठैः । दीर्घश्रुतं रयिमस्मे दधाना यूयं पात स्वस्तिभि: सदा नः ॥
स्वर रहित पद पाठएषा । नेत्री । राधसः । सूनृतानाम् । उषाः । उच्छन्ती । रिभ्यते । वसिष्ठैः । दीर्घऽश्रुतम् । रयिम् । अस्मे इति । दधाना । यूयम् । पात । स्वस्तिऽभिः । सदा । नः ॥ ७.७६.७
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 76; मन्त्र » 7
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 7
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 7
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथोषःकाले स्वस्तिवाचनैः परमात्मा प्रार्थ्यते।
पदार्थः
(एषा उषाः) अयमुषःकालः (राधसः नेत्री) आराधकानां विदुषां पथां (सूनृतानाम्) वेदवाग्भिः (उच्छन्ती) प्रकाशयिता (वसिष्ठैः रिभ्यते) सर्वातिक्रान्तगुण-सम्पन्नैर्विद्वद्भिः स्तवनीयोऽस्ति, अस्मिन्नेवोषःकाले (दीर्घश्रुतम्) चिरन्तनः सर्वज्ञाता परमात्मा (अस्मे) नः (रयिम् दधाना) धनं लम्भयतु, तथा (नः) अस्माकं धनं (यूयम्) भवन्तः (स्वस्तिभिः) स्वस्तिवाचनेन (सदा) शश्वत् (पात) रक्षन्तु ॥७॥ इति षट्सप्ततितमं सूक्तं त्रयोविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (1)
विषय
अब उषःकाल में स्वस्तिवाचनों द्वारा परमात्मा से प्रार्थना करते हैं।
पदार्थ
(एषा उषाः) यह उषःकाल (राधसः नेत्री) आराधनशील विद्वानों के मार्ग को (सूनृतानां) वेदवाणियों द्वारा (उच्छन्ती) प्रकाश करनेवाला (वशिष्ठैः रिभ्यते) सर्वोपरिगुणसम्पन्न विद्वानों से स्तुतियोग्य है, इसी काल में (दीर्घश्रुतं) चिरकालीन सर्वज्ञाता परमात्मा (अस्मे) हमें (रयिं दधाना) धन प्राप्त कराये और (नः) हमारे धन को (यूयं) आप (स्वस्तिभिः) स्वस्तिवाचनों से (सदा) सदा (पात) रक्षा करें ॥७॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे विचारशील विद्वानों ! तुम उषःकाल के अपने कर्तव्य कर्मों से निवृत्त होकर स्वस्तिवाचनों से प्रार्थना करो कि आप हमें और हमारे यजमानों को ऐश्वर्य्यसम्पन्न करें और आपका दिया हुआ ऐश्वर्य्य पवित्र हो ॥ इस मन्त्र में जो उषादेवी को विद्वानों की नेत्री तथा वेदवाणियों की प्रकाशिका वर्णन किया गया है, वह उपचार से है, मुख्य नहीं। अर्थात् उषा ऐसा काल है कि परमालस्यग्रस्त मनुष्यों को भी उद्योगी बना देता और ईश्वरविमुखमनों में भी ईश्वरीय ज्योति का संचार करता है, इसलिये दिव्यरूप से वर्णन किया गया है, वास्तव में उषःकाल जड़ होने से किसी का प्रेरक वा स्वामी नहीं, सबका स्वामी एकमात्र परमात्मा है, उससे भिन्न कोई नहीं ॥७॥ यह ७६वाँ सूक्त और २३वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
This light divine of eternal life that arises at dawn shines and dispels the darkness of the external and internal world of humanity. It illuminates the mind and soul of the people dedicated to holy truth and the divine law of eternity, perfects their faculties and guides them over the paths and ways of divine pursuits to the accomplishment of success and glory. It bears and brings us the wealth, honour and excellence of life we have heard of since time immemorial and leads us to the eternal light of divinity. Thus is it celebrated by the most brilliant sages of knowledge and wisdom. Pray save us, protect us and advance us with the means and modes of peace and fulfilment all ways, all time.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की हे विचारशील विद्वानांनो! तुम्ही उष:काली आपल्या कर्तव्यकर्मापासून निवृत्त होऊन स्वस्तिवाचनाची प्रार्थना करा. तुम्ही आम्हाला व आमच्या यजमानांना ऐश्वर्यसंपन्न करा. तुम्ही दिलेले ऐश्वर्य पवित्र असावे.
टिप्पणी
या मंत्रात उषादेवीला विद्वानांची नेत्री व वेदवाणीची प्रकाशिका म्हटलेले आहे. ते उपचाराने आहे. मुख्य नाही. अर्थात उषा असा काळ आहे, की अत्यंत आळशी माणसांनाही उद्योगी बनवितो व ईश्वरविमुख मनातही ईश्वरीय ज्योतीचा संचार करतो. त्यासाठी दिव्यरूपाने वर्णन केले गेलेले आहे. वास्तविक उषाकाल जड असल्यामुळे कुणाचाही प्रेरक किंवा स्वामी नाही. सर्वांचा स्वामी एकमात्र परमात्मा आहे, त्यापेक्षा वेगळा कुणी नाही. ॥७॥
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